लॉकडाउन: पैदल चलते-चलते गंवाई जान, आखिरी शब्द थे- लेने आ सकते हो तो आ जाओ
कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान शहरों से अपने गावों की तरफ पलायन करते प्रवासी मजदूरों की तस्वीरों ने पूरे देश का दिल झकझोर कर रख दिया है। अपनी इस कोशिश में लगभग 20 मजदूर अपनी जान भी गंवा चुके हैं। इनमें से कुछ दुर्घटनाओं का शिकार हुए तो कुछ ने भूखे पैदल चलने के कारण दम तोड़ दिया। 38 वर्षीय रणवीर सिंह दूसरी श्रेणी में आते हैं। आइए आपको उनकी पूरी कहानी बताते हैं।
शुक्रवार को पैदल घर को निकले थे रणवीर, शनिवार को तोड़ा दम
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के बदफारा गांव के रहने वाले दिल्ली के तुगलकाबाद के एक रेस्टोरेंट में डिलीवरी बॉय के तौर पर काम करते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लॉकडाउन की घोषणा करने के बाद 27 फरवरी को वे कालकाजी की DDA कॉलोनी स्थित कमरे से पैदल ही अपने घर की तरफ निकल दिए। शनिवार को उनकी मुरैना से 100 किलोमीटर दूर आगरा में थकावट और दिल का दौरा पड़ने की वजह से मौत हो गई।
लॉकडाउन के बाद रेस्टोरेंट बंद हुआ तो घर के लिए निकलना पड़ा
रणवीर के पीछे उनकी पत्नी ममता और तीन बच्चे रह गए हैं। ममता ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से बात करते हुए बताया कि 22 जनवरी को जनता कर्फ्यू के दिन ही उन्होंने रणवीर से घऱ वापस आने को कहा था, लेकिन रेस्टोरेंट का काम जारी रहने के कारण वे वापस नहीं आ पाए। लेकिन 25 फरवरी से लॉकडाउन शुरू होने के बाद रेस्टोरेंट बंद हो गया और उनके पास घर आने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।
शुक्रवार को दोपहर दो बजे पैदल ही दिल्ली से निकले
शुक्रवार को दोपहर करीब दो बजे रणवीर ने 12वीं में पढ़ने वाली अपनी सबसे बड़ी बेटी दीपा को फोन कर घर निकलने की जानकारी दी। जब दीपा ने पूछा कि वे घर वापस कैसे आएंगे तो रणवीर ने कहा, "कोई समाधान नहीं है। ना बस चल रही है, ना ट्रेन... पैदल आ रहा हूं।" वे पुलिस को चकमा देते हुए आगे बढ़े और शाम पांच बजे के आसपास घर एक और फोन किया।
शुक्रवार रात नौ बजे मिला आने वाले तूफान का पहला संकेत
शुक्रवार रात नौ बजे रणवीर की फोन पर अपनी छोटी बहन पिंकी सिंह से बातचीत हुईं। रणवीर ने पिंकी को बताया कि उन्हें थोड़ी दूर के लिए एक ट्रक मिल गया था लेकिन वह थक चुका है और लेटना चाहता है।
पिंका ने सुबह पांच बजे फिर किया फोन
इसके बाद रातभर पूरे परिवार को नींद नहीं आई और पिंकी ने शनिवार सुबह पांच बजे रणवीर को फोन मिला दिया। पिंकी ने बताया, "उसने बताया कि वह आगरा में सिकंदरा रोड़ तक पहुंच चुका है। लेकिन वह सांस नहीं ले पा रहा था, कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसने केवल इतना कहा कि उसके सीने में दर्द है।" इसके बाद घबराई पिंकी ने पूरे परिवार को जगाया और रणवीर को फोन करने और उसे उठाकर लाने को कहा।
जीजा ने फोन कर कही मुरैना तक लिफ्ट लेने की बात
सुबह 5:30 बजे रणवीर के जीजा अरविंद सिंह ने उसे कॉल किया और ये आखिरी बार था जब उन्होंने रणवीर की आवाज सुनी। इस कॉल की 42 सेकंड की रिकॉर्डिंग में अरविंद रणवीर से किसी से मुरैना तक की लिफ्ट लेने की बात कह रहे हैं, लेकिन उधर से कोई आवाज नहीं आ रही। अरविंद फिर कहते हैं, "100 नंबर को फोन करो। कोई एंबुलेंस नहीं है? वे तुम्हें नहीं छोड़ सकते?" इसके बाद भी दूसरी तरफ खामोशी रहती है।
"लेने आ सकते हो तो आ जाओ"
अंत में उधर से भारी सांस में रणवीर कहते हैं, "लेने आ सकते हो तो आ जाओ।" इसके बाद उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती। इतना सुनने के बाद रणवीर के एक परिजन गांव के डॉ़क्टर का पास लेकर मोटरसाइकिल से आगरा के लिए रवाना होते हैं। वहीं दूसरे परिजन गेंहूं ढोने वाली जीप लेकर पास के लिए पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं। लेकिन जब तब वे सभी आगरा पहुंचते हैं, रणवीर की मौत हो चुकी होती है।
अरविंद भी करते हैं दिल्ली में काम, 22 मार्च को आ गए थे वापस
अरविंद ने बताया, "जब मैंने उससे आखिरी बार बात की तो मैं बता सकता था कि वह जमीन पर पड़ा है और मौत के नजदीक है। हम उसके शव को वापस लाए और शनिवार को अंतिम संस्कार किया।" अरविंद खुद भी दिल्ली में काम करते हैं और वे 22 मार्च को ही वापस आ गए थे। पछतावे की आवाज में उन्होंने कहा कि उन्हें रणवीर को साथ ले आना चाहिए था।
आगे कैसे चलेगा परिवार का काम?
रणवीर की मौत के बाद उनके परिवार की देखभाल करने वाला कोई नहीं है और उनके पास मात्र 800 रुपये हैं जो रणवीर के शव से प्राप्त हुए। पिंकी ने बताया कि रणवीर हमेशा परिस्थितियों से लड़ता रहा और कभी हार नहीं मानी। इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढ़ने वाले रणवीर अपने पिता की मौत के बाद काम के लिए दिल्ली चले गए और तीन साल से वहां काम कर रहे थे। इस दौरान वे परिवार को लगातार पैसे भेजते थे।