कोरोना वायरस के कारण आर्थिक मंदी की चपेट में वैश्विक अर्थव्यवस्था- IMF
दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में फैल चुकी कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने विश्व को मंदी में धकेल दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रमुख क्रिस्टलिना जॉर्जविया ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि यह मंदी 2009 से बड़ी है। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों की मदद के लिए भारी फंडिंग की जरूरत है। बता दें कि दुनियाभर में लगभग छह लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं लगभग 28,000 लोग इसके कारण जान गंवा चुके हैं
कई देशों में लॉकडाउन
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत समेत दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन जारी है। इसके चलते फैक्ट्रियां बंद हैं और मजदूर घरों में बैठने को मजबूर हैं। भारत में मजदूरों का पलायन देखने को मिल रहा है। क्रिस्टलिना ने कहा कि इस मंदी की गहराई दो बातों पर निर्भर करती है कि इस वायरस की मार कहां तक और कितनी पड़ती है और इससे निपटने के लिए देशों के बीच कितने समन्वित प्रयास होते हैं।
80 देश लगा चुके आपात मदद की गुहार
क्रिस्टलिना ने कहा कि दुनियाभर के नेताओं में इस बात पर सहमति है कि इससे निपटने के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा, "हम आर्थिक मंदी में प्रवेश कर चुके हैं। दुनियाभर की अर्थव्यवस्था एकदम रुक गई है। उभरते बाजारों को इस संकट से निकलने में कम से कम 2.5 लाख करोड़ डॉलर की मदद की जरूरत होगी।" उन्होंने कहा कि अब तक 80 देश IMF से आपात मदद की गुहार लगा चुके हैं।
कई बाजार कर्ज को बोझ तले दबे- क्रिस्टलिना
IMF प्रमुख क्रिस्टलिना ने कहा कि विकासशील बाजारों से हाल के दिनों में 83 अरब डॉलर से ज्यादा की पूंजी की निकाली गई है, जिसके कारण वहां की सरकारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में हालात सामान्य करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं, लेकिन इन देशों के पास घरेलू संसाधन पर्याप्त नहीं है। वहीं कुछ बाजार ऐसे हैं, जो पहले से ही कर्ज के बोझ में दबे हुए हैं।
बड़े संकट से निपटने के लिए बड़े कदमों की जरूरत- IMF
IMF प्रमुख ने कहा कि अगर दुनिया इस महामारी पर काबू पा लेती है तो मंदी में रिकवरी संभव है। उन्होंने कहा, "हमें छोटे कदम नहीं उठाने चाहिए। हमें पता है कि यह एक बहुत बड़ा संकट है। हमने पहले कभी दुनिया को ऐसे रुके हुए नहीं देखा। हम इससे कैसे उबर पाते हैं यह एक और महत्वपूर्ण विषय है।" उन्होंने कहा इस महामारी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए देशों को बड़ी मात्रा में संसाधन लगाने होंगे।