
#NewsBytesExplainer: क्या है बगलिहार और किशनगंगा बांध का महत्व, जिनसे पाकिस्तान का पानी रोक रहा भारत?
क्या है खबर?
पहलगाम हमले के बाद भारत पाकिस्तान के खिलाफ लगातार बड़े कदम उठा रहा है। कूटनीतिक सख्ती के बाद अब भारत ने पाकिस्तान पर 'वाटर स्ट्राइक' की है। भारत ने बगलिहार बांध से पाकिस्तान को जा रहा चिनाब नदी का पानी रोक दिया है।
खबर है कि झेलम की सहायक नदी पर बने किशनगंगा बांध से भी इसी तरह की कार्रवाई की जा सकती है।
आइए इन दोनों बांधों के बारे में जानते हैं।
बगलिहार
पहले बगलिहार बांध के बारे में जानिए
बगलिहार बांध जम्मू से करीब 150 किलोमीटर दूर बटौत शहर के पास कश्मीर से पाकिस्तान में बहने वाली चिनाब नदी पर बना हुआ है। इसकी ऊंचाई 144 मीटर और लंबाई 317 मीटर है।
इस बांध की पानी रोकने की क्षमता 1.50 लाख करोड़ घन मीटर है। ये एक साल में 900 मेगावाट बिजली उत्पादन कर सकता है।
ये जम्मूे-कश्मीर पावर डेवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा शुरू की गई पहली परियोजना भी है।
निर्माण
कब और कैसे हुआ बांध का निर्माण?
इस परियोजना की परिकल्पना साल 1992 में की गई थी और 1996 में इसे मंजूरी दी गई।
1999 में बांध का निर्माण शुरू हुआ और 2004 में पहले चरण का काम पूरा हो गया। 10 अक्टूबर, 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था।
परियोजना का दूसरा चरण 2015-16 में पूरा हुआ, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया।
परियोजना पर करीब 8,400 करोड़ रुपये की लागत आई थी।
पाकिस्तान
पाकिस्तान ने किया था विरोध
पाकिस्तान ने बांध के निर्माण का ये कहते हुए विरोध किया कि ये सिंधु जल संधि का उल्लंघन करता है और इससे पाकिस्तान जाने वाले पानी का प्रवाह धीमा हो जाएगा।
इस मामले को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच कई दौर की वार्ता हुई, लेकिन समाधान नहीं निकला। 2005 में पाकिस्तान मामले को विश्व बैंक के पास ले गया।
विश्व बैंक ने मामूली सुझावों के बाद भारत को काम जारी रखने की अनुमति दी थी।
किशनगंगा
अब किशनगंगा बांध के बारे में जानिए
किशनगंगा झेलम की एक सहायक नदी है, जिसे पाकिस्तान में नीलम नदी कहा जाता है।
भारत ने इस पर 2007 में करीब 5,000 करोड़ रुपये की लागत से एक बिजली परियोजना शुरू की थी। इसके तहत 24 किलोमीटर लंबी सुरंग के जरिए किशनगंगा के पानी को कश्मीर के बोनार नाला के पास एक बिजली घर तक लाया गया है।
ये बांध 37 मीटर ऊंचा और 146 मीटर लंबा है, जिससे 300 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।
आपत्ति
किशनगंगा पर भी पाकिस्तान ने जताई थी आपत्ति
पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि का हवाला देते हुए किशनगंगा बांध पर भी आपत्ति जताई थी।
पाकिस्तान ने तर्क दिया कि भारत नदी के प्रवाह को मोड़ रहा है, जो संधि का उल्लंघन है। इससे प्राकृतिक रूप से आने वाले पानी की तुलना में उसे 27 प्रतिशत कम पानी मिल रहा है।
2010 में पाकिस्तान इस मामले को नीदरलैंड के हेग में स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में लेकर चला गया।
फैसला
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने क्या फैसला सुनाया?
न्यायालय ने आंशिक फैसले में कहा था कि परियोजना से भारत पानी का रुख मोड़ सकता है।
न्यायालय ने ये भी कहा था कि परियोजना के परिचालन के दौरान भारत पर पानी का न्यूनतम बहाव बनाए रखने की बाध्यता है।
न्यायालय ने न्यूनतम बहाव की दर 9 घन मीटर प्रति सेकंड निर्धारित की थी।
न्यायालय ने कहा था कि संधि भारत को नदियों के जलाशयों में पानी का स्तर पूर्व निर्धारित स्तर से नीचे करने की अनुमति नहीं देती।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
विश्व बैंक की मध्यस्थता से 1960 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी।
इसके तहत सिंधु घाटी में बहने वाली 3 पूर्वी नदियों (रवि, सतलज, व्यास) पर भारत का, जबकि 3 पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान का अधिकार है।
नदियां भारत से होकर बहती हैं, इसलिए पश्चिमी नदियों के 20 प्रतिशत पानी पर भारत का अधिकार है, वो सिंचाई समेत अन्य परियोजनाओं में इसका उपयोग करता है।