
भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग बढ़ाने पर हुए सहमत, ये होगा फायदा
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका में असैन्य परमाणु सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के बाद व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि उन्होंने भारत में अमेरिका द्वारा डिजाइन किए गए परमाणु रिएक्टरों पर बड़े पैमाने पर स्थानीयकरण और संभावित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से मिलकर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया और आगे बढ़ाने का फैसला लिया है।
बयान
अमेरिका ने क्या कहा?
अमेरिका ने कहा, "दोनों नेताओं ने बड़े पैमाने पर स्थानीयकरण और संभावित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में अमेरिकी डिजाइन वाले परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के लिए योजनाओं को आगे बढ़ाकर अमेरिका-भारत 123 असैन्य परमाणु समझौते को पूरी तरह से साकार करने की प्रतिबद्धता घोषित की। दोनों पक्षों ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु रिएक्टरों से जुड़े परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA) में संशोधन करने के लिए भारत सरकार द्वारा बजट घोषणा का स्वागत किया।"
वित्त मंत्री
बजट में वित्त मंत्री ने की थी घोषणा
बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि 2047 तक कम से कम 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा का विकास हमारे ऊर्जा संक्रमण प्रयासों के लिए आवश्यक है।
उन्होंने कहा था कि 20,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 'लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के अनुसंधान और विकास के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन की स्थापना की जाएगी। इनमें से 2033 तक कम से कम 5 स्वदेशी रूप से विकसित SMR चालू हो जाएंगे।
बदलाव
क्या हो सकता है बदलाव?
1962 का परमाणु ऊर्जा अधिनियम परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रतिबंधित करता है। माना जा रहा है कि इस प्रावधान को हटाया जा सकता है।
बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने CLNDA के अनुसार द्विपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है, जो नागरिक दायित्व के मुद्दे को संबोधित करेगा और परमाणु रिएक्टरों के उत्पादन और स्थापना में भारतीय एवं अमेरिकी उद्योग के सहयोग को सुविधाजनक बनाएगा।
प्रतिबंध
अमेरिका ने 3 भारतीय परमाणु संस्थाओं से हटाया था प्रतिबंध
जनवरी में अमेरिका ने 3 भारतीय परमाणु संस्थाओं पर 20 साल से लगा प्रतिबंध हटाया था। इसमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR) और इंडियन रेयर अर्थ (IRE) शामिल थे।
ये फैसला बाइडन प्रशासन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन की भारत यात्रा के बाद लिया गया था।
सुलिवन ने कहा था कि अमेरिका उन नियमों को हटाएगा, जो भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सहयोग में बाधा डाल रहे हैं।