#NewsBytesExplainer: भारत-म्यांमार के बीच मुक्त सीमा व्यवस्था को खत्म क्यों किया जा रहा है?
क्या है खबर?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को ऐलान किया कि भारत-म्यांमार सीमा पर मुक्त आवाजाही पर रोक लगेगी। अब दोनों देशों के बीच मौजूदा मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FMR) को जल्द खत्म कर दिया जाएगा।
इसका मतलब है कि म्यांमार के साथ भारत की सीमा पर भारत-बांग्लादेश सीमा की तरह बाड़ लगाई जाएगी। भारत-म्यांमार की सीमा पूर्वोत्तर के कई राज्यों से लगी है।
आइए जानते हैं कि यह निर्णय क्यों लिया गया और इससे क्या फर्क पड़ेगा।
योजना
भारत-म्यांमार सीमा पर मुक्त आवाजाही व्यवस्था क्या है?
मुक्त आवाजाही व्यवस्था से मतलब सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों के बीच आवाजाही से है।
इसके तहत दोनों तरफ सीमा पर रहने वाले लोगों को दूसरे देश के अंदर 16 किलोमीटर तक यात्रा और व्यापार आदि करने की अनुमति है।
इसे 2018 में नरेंद्र मोदी की सरकार की एक्ट ईस्ट नीति के हिस्से के रूप में लागू किया गया था। तब भारत-म्यांमार के बीच राजनयिक संबंध अच्छे थे और रोहिंग्या शरणार्थी संकट के बावजूद इसे लागू किया गया।
लागू
दोनों देशों के बीच व्यवस्था को बनाने के पीछे क्या थी वजह?
1826 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत-म्यांमार के बीच की सीमा का सीमांकन हुआ था। तब बिना लोगों की रायशुमारी के दोनों देशों को विभाजित कर दिया गया।
उस वक्त से दोनों देशों के लोगों के बीच मजबूत जातीय और पारिवारिक संबंध हैं।
भारत की आजादी के बाद 1968 में दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ाने के अलावा व्यापार और व्यवसाय के लिए भारत ने यह व्यवस्था बनाई गई थी। इसमें समय-समय पर बदलाव होता रहा है।
आलोचना
अब क्यों इस व्यवस्था की हो रही है अलोचना?
भारत-म्यांमार से साथ 1,643 किलोमीटर लंबी बिना बाड़बंदी वाली सीमा साझा करता है। यह सीमा मणिपुर, मिजोरम, असम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है।
आरोप है कि म्यांमार के विद्रोही, अवैध अप्रवासी और नशीली दवाओं के तस्कर मुक्त आवाजाही व्यवस्था का दुरुपयोग कर रहे हैं।
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सत्तारूढ़ जुंटा शासन और विद्रोही के बीच संघर्ष चल रहा है। इस वजह से 40,000 से अधिक शरणार्थियों ने भारतीय इलाकों में शरण ली है।
अपील
सीमा व्यवस्था खत्म करने के पीछे क्या है कारण?
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने मई, 2022 से राज्य में जारी जातीय हिंसा के लिए म्यांमार से हुई घुसपैठ को जिम्मेदार ठहराया है। मणिपुर हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
राज्य सरकार के अनुसार, अब तक इस साल 2,187 अप्रवासियों की पहचान की गई है, जबकि पिछले साल सितंबर में मोरेह क्षेत्र में ही 5,500 अवैध अप्रवासी पकड़े गए थे और 4,300 को वापस म्यांमार भेजा गया था।
सरकार
गृह मंत्रालय ने क्यों लेना पड़ा है निर्णय?
मणिपुर के मुख्य सचिव ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर म्यांमार से हो रही घुसपैठ पर चिंता व्यक्त की और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था।
मणिपुर सरकार ने कहा कि पहाड़ी जिलों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर म्यांमार से आए अवैध प्रवासी बसे हैं और जातीय हिंसा के बाद से ऐसे 410 अवैध प्रवासियों को गिरफ्तार किया है।
मिजोरम सरकार ने म्यांमार से घुसपैठ रोकने के लिए केंद्र से बाड़बंदी करने की अपील की है।
खतरा
म्यांमार से आतंकवाद और तस्करी का कितना खतरा?
सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (CLAWS) के अनुसार, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) जैसे कई विद्रोही समूहों ने म्यांमार में अपने प्रशिक्षिण शिविर बनाए हैं।
ये समूह नशा और हथियारों की तस्करी में लगे हैं। 2022 में मणिपुर में तस्करी के आरोप में 625 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इस अवधि में 1,227 करोड़ रुपये की नशीली सामग्री जब्त की गई है।
इन पर सुरक्षाबलों पर हमला करने के आरोप भी हैं।
फर्क
व्यवस्था खत्म होने से क्या फर्क पड़ेगा?
भारत-म्यांमार के बीच यह व्यवस्था सालों से चली आ रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र को मामले में 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे' का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए क्योंकि व्यवस्था खत्म होने से दोनों देशों की सीमाओं पर बसे हजारों नागरिकों की आजीविका प्रभावित होगी।
उन्होंने कहा कि व्यवस्था हो या न हो, अवैध घुसपैठ और तस्करी रोकना आसान नहीं है और अन्य देशों से लगी सीमा पर बाड़बंदी के बावजूद तस्करी हो रही है।