भारत ने UAE में तालिबान के राजदूत को गणतंत्र दिवस पर बतौर अतिथि किया आमंत्रित
देश भर में गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं। इस बीच संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में भारतीय दूतावास ने गणतंत्र दिवस समारोह में तालिबान के दूत बदरुद्दीन हक्कानी को अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। UAE में भारत के राजदूत संजय सुधीर ने वहां तालिबान सरकार के राजदूत बदरुद्दीन हक्कानी और उनकी पत्नी को समारोह का न्योता भेजा है। ये कार्यक्रम अबुधाबी में होना है।
निमंत्रण में 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान' का जिक्र
अफगानिस्तान के पत्रकार बिलाल सरवरी ने निमंत्रण पत्र की फोटो ट्वीट की है। सुधीर और उनकी पत्नी वंदना के नाम से जारी इस निमंत्रण पत्र में हक्कानी और उनकी पत्नी को 26 जनवरी को होने वाले समारोह में शामिल होने का निमंत्रण भेजा गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, निमंत्रण 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान' के दूत को संबोधित था, जिसका प्रतिनिधित्व तालिबान के कब्जे से पहले अशरफ गनी ने किया था।
तालिबान दूत को क्यों भेजा गया निमंत्रण?
भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को राजनयिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन ये एक ऐसी सच्चाई है, जिसे स्वीकार करना होगी। इस मुद्दे पर सावधानी से आगे बढ़ते हुए भारत काबुल में तालिबान के साथ बातचीत कर भी रहा है और एक तकनीकी टीम को वहां तैनात किया है। भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरह ही तालिबान सरकार के साथ बातचीत कर रहा है। हक्कानी को आमंत्रण भेजा जाना इसी नीति का विस्तार माना जा रहा है।
क्या हैं कदम के मायने?
दरअसल, हाल ही में हुई कई घटनाओं को इस कदम से जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले महीने चीन ने बीजिंग में तैनात तालिबान के अधिकारी को राजदूत की मान्यता दी थी। ऐसा करने वाला चीन पहला देश था। इसके अलावा हाल ही में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और अवैध तरीके से घुसे नागरिकों को लेकर तनाव बढ़ा है। भारत के इस कदम को विश्लेषक कूटनीतिक लिहाज से अहम मान रहे हैं।
कौन हैं हक्कानी?
बदरुद्दीन हक्कानी को पिछले साल अक्टूबर में UAE में अफगानिस्तान सरकार का राजदूत नियुक्त किया गया था। वे जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे हैं। उनके भाई का नाम सिराजुद्दीन हक्कानी है, जो अफगानिस्तान के गृह मंत्री हैं। बता दें कि सिराजुद्दीन हक्कानी ही वो शख्स है, जिन्होंने हक्कानी नेटवर्क की स्थापना की थी। ये गुट साल 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास में हुए आतंकवादी हमले में शामिल था और फिलहाल तालिबान सरकार का हिस्सा है।