भारतीय अधिकारियों ने की थी NATO प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक, क्या है इसका महत्व?
भारत सरकार ने दिसंबर, 2019 में पहली बार नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) के साथ बातचीत की थी। इस बैठक में रक्षा और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया था। इस बैठक में हुई बातचीत मुख्य तौर पर राजनीतिक प्रकृति की थी। दोनों ही पक्ष इस दौरान सैन्य या किन्हीं दूसरे द्विपक्षीय मुद्दों पर किसी भी प्रकार की प्रतिबद्धता जताने से बचे। आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
क्या है इस बातचीत का महत्व?
इंडियन एक्सप्रेस ने खबर दी है कि यह भारत और NATO के बीच बैठक 12 दिसंबर, 2019 को हुई थी। दरअसल, NATO चीन और पाकिस्तान, दोनों के साथ द्विपक्षीय बातचीत कर रहा है। भारत की सामरिक जरूरतों में चीन और पाकिस्तान की अहम भूमिका है। इसे देखते हुए अगर भारत NATO से बात करता है तो यह उसकी अमेरिका और यूरोप के साथ बढ़ती नजदीकियों में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
चीन और पाकिस्तान से NATO के संबंध
दिसंबर, 2019 से पहले NATO चीन के साथ नौ दौर की बातचीत कर चुका था। इसके अलावा दोनों के वरिष्ठ अधिकारी भी हर तिमाही पर एक-दूसरे से मिलते थे। वहीं पाकिस्तान के साथ भी NATO का सैन्य सहयोग और राजनीतिक संवाद जारी था। हालांकि, चीन, रूस और तालिबान पर भारत का रूख NATO के आधिकारिक रवैये से अलग रहा और दोनों पक्षों के बीच समुद्री सुरक्षा समेत कुछ ही मुद्दों पर सहमति बनने के आसार बने थे।
अगला कदम क्या हो सकता है?
पहले दौर की बैठक में NATO की पॉलिटिकल अफेयर्स और सिक्योरिटी पॉलिसी की असिस्टेंट सेक्रेटरी जनरल बेट्टिना केडेनबेक के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय अधिकारियों से मुलाकात की थी। खबर है कि NATO साझे एजेंडे पर इस बातचीत को जारी रखने का इच्छुक है। दोनों पक्षों के बीच 2020 में दूसरे दौर की बैठक करने की सहमति बनी थी, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के चलते यह बैठक नहीं हो सकी।
आगे की बातचीत को लेकर भारत और NATO का क्या नजरिया?
NATO का मानना है कि भारत अपनी भू-रणनीतिक स्थिति और अलग-अलग मुद्दों पर विशेष दृष्टिकोण के चलते अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। वह अपने क्षेत्र और उससे पार के बारे में गठबंधन के सहयोगियों को सूचित करने में अहम साझेदार हो सकता है। वहीं भारत के नजरिये से देखा जाए तो दिल्ली शुरुआती दौर के बाद हासिल की प्रगति के आधार पर देशहित के क्षेत्रों में NATO के साथ द्विपक्षीय सहयोग आगे बढ़ाने की इच्छुक है।
NATO क्या है?
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी के जरिये 4 अप्रैल, 1949 को एक सैन्य गठबंधन NATO की शुरुआत हुई थी। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए इसका गठन किया गया था। बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, इंग्लैंड और अमेरिका को इसके संस्थापक सदस्यों में गिना जाता है। फिलहाल इसमें ग्रीस, तुर्की, बुल्गारिया, जर्मनी, स्पेन, चेक रिपब्लिक, हंगरी, पोलैंड समेत कुल 30 देश शामिल हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
इस ट्रीटी (संधि) का मुख्य प्रावधान इसके अनुच्छेद 5 में लिखा गया है। इसमें कहा गया है कि किसी भी एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों के खिलाफ कोई सैन्य आक्रमण होता है तो यह संधि पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों के खिलाफ आक्रमण माना जाएगा। इसके खिलाफ सभी सदस्य देश मिलकर आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए नॉर्थ अटलांटिक इलाके में शांति बहाली के लिए सेना के इस्तेमाल समेत सभी जरूरी कदम उठाएंगे।