अफगानिस्तान की सीमाओं पर आत्मघाती हमलावरों की बटालियन तैनात करेगा तालिबान- रिपोर्ट
सैन्य ताकत के दम पर अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले आतंकी संगठन तालिबान ने अपने असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तालिबान देश की सीमाओं पर आत्मघाती हमलावरों की विशेष बटालियन तैनात करेगा। इन लड़ाकों को खासतौर पर बदख्शां प्रांत में तैनात किया जाएगा। इस प्रांत की सीमा तजाकिस्तान और चीन से लगती है। तालिबान ने अमेरिका के खिलाफ जीत का श्रेय भी इसी बटालियन को दिया है।
लश्कर-ए-मंसूरी होगा बटालियन का नाम
बदख्शां प्रांत के डिप्टी गवर्नर मुल्ला निसार अहमद अहमदी ने शनिवार को मीडिया से बात करते हुए आत्मघाती हमलावरों की इस बटालियन की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस बटालियन का नाम लश्कर-ए-मंसूरी (मंसूर आर्मी) है और इसे देश की सीमाओं पर तैनात किया जाएगा। अहमदी के अनुसार, ये बटालियन ठीक उसी तरह की है जो पिछली अफगान सरकार में सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर आत्मघाती हमले किया करती थी।
आत्मघाती बटालियन के बिना अमेरिका की हार संभव नहीं थी- अहमदी
लश्कर-ए-मंसूरी की प्रशंसा करते हुए अहमदी ने कहा, "अगर यह बटालियन नहीं होती तो अमेरिका की हार संभव नहीं होती। ये बहादुर लड़ाके कमर पर विस्फोटक भरी बेल्ट पहनते थे और अफगानिस्तान में अमेरिकी बेस को निशाना बनाते थे।" हमलावरों की तारीफ में अहमदी ने कहा कि ये ऐसे लोग हैं जिन्हें सच में कोई डर नहीं है और इन्होंने अपने आप को अल्लाह के लिए समर्पित कर दिया है।
काबुल एयरपोर्ट पर तैनात की जाएगी एक दूसरी आत्मघाती बटालियन
गौरतलब है कि तालिबान ने लश्कर-ए-मंसूरी के अलावा बादरी 313 नाम से भी एक बटालियन बनाई है और इसमें भी आत्मघाती हमलावर शामिल हैं। ये सबसे अधिक हथियारों से सुसज्जित बटालियनों में से एक है और इसे काबुल एयरपोर्ट पर तैनात किया जाएगा।
तालिबान ने 15 अगस्त को किया था अफगानिस्तान पर कब्जा
बता दें कि तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल में प्रवेश करके अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था और वह यहां अपनी सरकार भी गठित कर चुका है। हालांकि उसके विभिन्न गुटों में आपसी संघर्ष बना हुआ है और ये सरकार बहुत अधिक दिनों तक टिकेगी, इस पर संदेह है। हक्कानी नेटवर्क तो उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर पर हमला भी कर चुका है और वह काबुल की जगह कंधार में रह रहा है।
पुराने बर्बर रास्ते पर वापस आता जा रहा है तालिबान
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने के लिए तालिबान ने समावेशी सरकार बनाने और महिलाओं को शरिया कानून के तहत आजादी देने का वादा भी किया था। हालांकि वह अपने इन वादों पर खरा नहीं उतरा है और उसकी सरकार में एक भी महिला नहीं है। महिलाओं के काम करने और पढ़ने पर भी कई जगह रोक लगा दी गई है। इसके अलावा उसने हाथ काटने जैसी पुरानी सजाएं लागू करने की बात भी कही है।