पाकिस्तान और कतर सबसे पहले दे सकते हैं अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता
अफगानिस्तान पर कब्जा करने और नई सरकार का गठन करने के बाद तालिबान दुनिया के अन्य देशों से मान्यता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा है। इसी बीच खबर आई है कि अफगानिस्तान में अपना प्रभाव जमाने के लिए पाकिस्तान और कतर प्रयासरत हैं और इसके लिए वह वहां पर तालिबान की सरकार को सबसे पहले मान्यता दे सकते हैं। हालांकि, तुर्की ने भी अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार के संचालन में अहम भूमिका निभाई है।
तालिबान ने 15 अगस्त को किया था अफगानिस्तान पर कब्जा
बता दें कि तालिबान ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर राजधानी काबुल पर कब्जा करते हुए अब्दुल गनी सरकार को पदहस्थ कर दिया था। इसके बाद तालिबान ने 7 सितंबर को अपनी अंतरिम सरकार का ऐलान करते हुए मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को कार्यवाहक प्रधानमंत्री और मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को कार्यवाहक उप प्रधानमंत्री (प्रथम) नियुक्त किया था। हालांकि, उसके बाद से ही तालिबान नेता सरकार के गठन को लेकर आपस में उलझते नजर आ रहे हैं।
काबुल हवाई अड्डे के संचालन में तुर्की ने निभाई अहम भूमिका
तालिबान की सरकार के गठन के बाद तुर्की ने वहां प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरा है। अमेरिकी सेना के जाने के बाद तुर्की ने अपनी तकनीकी टीम भेजकर काबुल हवाई अड्डे के फिर से संचालन में अहम भूमिका निभाई है। ऐसे में अब उसका तालिबान की सरकार में अहम भूमिका मानी जा रही है, लेकिन अब पाकिस्तान और कतर भी वहां अपना प्रभाव जमाने की फिराक में है। ऐसे में वह जल्द ही तालिबानी सरकार को मान्यता दे सकते हैं।
पाकिस्तान और कतर के अधिकारी पहुंचे तालिबान
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, मामले से परिचित लोगों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पाकिस्तान और कतर तालिबान की अंतरिम सरकार को मान्यता देने वाले पहले दो देश बन सकते हैं। जिम्मेदारियों और सत्ता के बंटवारे को लेकर तालिबान के भीतर मतभेदों की खबरों के बाद दोनों देशों ने अपने शीर्ष नेताओं को मामले के निपटारे के लिए अफगानिस्तान भेजा है। ये अधिकारी अब तालिबानी नेताओं के साथ सरकार को मान्यता देने पर चर्चा कर रहे हैं।
लगातार तालिबान के संपर्क में हैं पाकिस्तान और कतर
मामले के जानकार लोगों का कहना है कि पाकिस्तान और कतर के अधिकारी लगातार तालिबान के संपर्क में हैं। पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद सितंबर में पहले ही वहां का दौरा कर चुके हैं। इसी तरह कतर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल-थानी भी काबुल का दौरा कर चुके हैं। उस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री अखुंद सहित तालिबान के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत की थी।
पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कही थी तालिबान को स्वीकार करने की बात
बता दें कि पाकिस्तान और कतर दोनों तालिबान से जुड़ने के लिए विश्व समुदाय के सामने उनकी पैरवी करते रहे हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पिछले दिनों अल जजीरा को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को काबुल में नई वास्तविकता को स्वीकार करना होगा और अफगानिस्तान की संपत्ति को अनफ्रीज करना होगा। इससे तालिबान देश चल रहे आर्थिक और मानवीय संकट से निपट सकेगा।
कतर ने की थी तालिबान को मान्यता देने की अपील
इसी तरह कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी ने पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान विश्व के नेताओं से तालिबान को मान्यता देने की अपील की थी। उन्होंने विश्व के देशों से तालिबान के साथ बातचीत जारी रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि बहिष्कार से केवल ध्रुवीकरण और तरह-तहर की बातें होती हैं, जबकि बातचीत सकारात्मक परिणाम ला सकती है। इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
तुर्की ने अपनाया अलग रास्ता
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद पूर्व सरकार के मंत्रियों और सांसदों के लिए आधार के रूप में उभरे तुर्की ने तालिबानी सरकार को मान्यता देने में अलग रास्ता अपनाया है। तुर्की ने भले ही तालिबान की हरसंभव मदद की है, लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने तालिबान में समावेशी सरकार के गठन की बात कही है। उनका कहना है कि तालिबान को सरकार में सभी गुटों और महिलाओं को शामिल करना चाहिए।
तुर्की ने कही समावेशी सरकार को मान्यता देने की बात
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने पिछले महीने कहा था, "तालिबान में समावेशी सरकार के नहीं होने तक वह उसे मान्यता नहीं देंगे, लेकिन यदि वह अधिक समावेशी सरकार का गठन करता है तो हम तुर्की के रूप में उन्हें मान्यता देकर स्वीकार करेंगे।"
भारत ने तालिबान को मान्यता देने के मामले में दुनिया को किया सचेत
भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता देने में जल्दबाजी के खिलाफ दुनिया को सावचेत किया है। भारत ने कहा कि तालिबान की सरकार समावेशी नहीं है और बिना बातचीत के ही उसका गठन किया गया है। वह तालिबान के साथ पाकिस्तान की भूमिका और प्रभाव को लेकर भी सतर्क है। गेटवे हाउस में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन के समीर पाटिल ने कहा कि आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि पाकिस्तान और कतर तालिबान को सबसे पहले मान्यता दें।