स्वतंत्रता दिवस 2024: भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय कैसे हुआ था धन और सेना का बंटवारा?
देश आगामी 15 अगस्त को 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए तैयार है। 77 साल पहले भारत को अंग्रेजों से आजादी तो मिली, लेकिन भारत और पाकिस्तान के रूप में देश के 2 टुकड़े हुए। इसकी जिम्मेदारी ब्रिटिश वकील सर सिरिल रैडक्लिफ को मिली थी। उन्होंने भारत के नक्शे पर रेखा खींचकर भौगोलिक विभाजन तो कर दिया था, लेकिन धन, सेना और सांस्कृतिक बंटवारे पर मुश्किल आ गई। आइए जानते हैं कि इन चीजों का कैसे बंटवारा किया गया था।
बंटवारे के लिए किया गया था समिति का गठन
गवर्नर-जनरल जेनकिंस ने 16 जून, 1947 को बंटवारे के लिए एक समिति गठित की थी, जिसे पंजाब विभाजन समिति (विभाजन परिषद) नाम दिया गया था। इसका काम दोनों देशों के बीच धन, सेना और अन्य चीजों के बंटवारे को लेकर सलाह देना था। इसमें कांग्रेस से सरदार वल्लभभाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद शामिल थे, जबकि अखिल भारतीय मुस्लिम लीग से लियाकत अली खान और अब्दुर रब निस्तार थे। हालांकि, बाद में मुहम्मद अली जिन्ना ने निस्तार की जगह ले ली।
कैसे किया गया था सेना का विभाजन?
विभाजन परिषद ने सेना के बंटवारे में दो-तिहाई यानी 2.60 लाख सैनिकों को भारत में रखने और एक-तिहाई यानी 1.40 लाख को पाकिस्तान भेजने का निर्णय किया था। भारत में रहे सैनिकों में अधिकांश हिंदू और सिख समुदाय से थे, जबकि पाकिस्तान जाने वालों में अधिकांश मुस्लिम थे। हालांकि, इसके बाद भी पूर्ण सहमति नहीं बनी। बाद में पाकिस्तान की 19वीं लांसर्स ने भारत की स्किनर हॉर्स के मुसलमानों के लिए जाट और सिख सैनिकों की अदला-बदली की थी।
कैसे किया गया गया धन का बंटवारा?
विभाजन समझौते के अनुसार, पाकिस्तान को ब्रिटिश भारत की संपत्ति और देनदारियों का 17.5 प्रतिशत हिस्सा मिला था। उस समय भारत के पास करीब 400 करोड़ रुपये थे। पाकिस्तान के हिस्से में 75 करोड़ रुपये आए, वहीं 15 अगस्त, 1947 को ही पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये की कार्यशील राशि भी देने को कही। विभाजन परिषद ने यह भी निर्णय किया था कि एक ही केंद्रीय बैंक एक वर्ष से अधिक समय तक भारत और पाकिस्तान दोनों को सेवा देगा।
धन के विभाजन में उपजा विवाद
भारत ने वादे के तहत 15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये दिए थे, लेकिन बकाया 55 करोड़ रुपये की राशि पाकिस्तान के कश्मीर पर आक्रमण को लेकर अटक गई। पहले गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल ने स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर पर प्रस्ताव के बिना पाकिस्तान को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा। हालांकि, महात्मा गांधी ने वादे के अनुसार भुगतान के लिए अनशन कर दिया। ऐसे में भारत को मजबूरन भुगतान करना पड़ा।
दोनों देश आज भी करते हैं बड़ा दावा
दोनों देश आज भी एक-दूसरे पर बकाया होने का दावा करते हैं। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, पाकिस्तान पर विभाजन पूर्व ऋण के 300 करोड़ रुपये का बकाया है, जबकि पाकिस्तान का स्टेट बैंक भारत पर 560 करोड़ रुपये बकाया बताता है।
मुद्रा को लेकर क्या हुआ था निर्णय?
विभाजन परिषद ने दोनों देशों को 31 मार्च, 1948 तक मौजूदा सिक्कों और मुद्रा को जारी रखने और पाकिस्तान में 1 अप्रैल से 30 सितंबर, 1948 के बीच नए सिक्के और नोट जारी करने का फैसला सुनाया था। हालांकि, उसके बाद भी पुरानी मुद्रा चलन में रखने की बात कही गई थी। इसी कारण बंटवारे के 5 साल बाद भी पाकिस्तानी सिक्के कोलकाता में चल रहे थे और पाकिस्तान सरकार लिखे RBI के नोट पाकिस्तान में चल रहे थे।
अन्य परिसंपत्तियों का कैसे हुआ बंटवारा?
सेना और धन के साथ विभाजन परिषद ने भारत और पाकिस्तान के बीच अन्य चल संपत्तियों का भी बंटवारा किया था। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सभी चल संपत्तियों को 80-20 के अनुपात में विभाजित किया गया था, जिनमें कार्यालयों के फर्नीचर, स्टेशनरी आइटम और यहां तक कि लाइट बल्ब भी शामिल थे। इसी तरह विभाजन के बाद 1950 के दशक में पुरातात्विक अवशेषों को भी दोनों देशों के बीच बांटने की मांग की गई थी।
भारत ने टॉस जीतकर हासिल की थी शाही बग्गी
विभाजन के तुरंत बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सोने की परत चढ़ी घोड़े से खींची जाने वाली बग्गी के हक को लेकर भी विवाद हुआ था। यह बग्गी भारत के वायसराय की थी। भारत ने टॉस जीतकर इस बग्गी को अपने नाम किया था।
भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था हाथी का भी बंटवारा
विभाजन की प्रक्रिया जानवरों तक भी पहुंची थी। अन्वेषा सेनगुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में औपनिवेशिक बंगाल के वन विभाग से संबंधित एक हाथी 'जॉयमोनी' का जिक्र किया है। इस हाथी को लेकर भी विवाद हुआ था। फिर इसका मूल्य एक स्टेशन वैगन कार के बराबर रखा गया और पश्चिम बंगाल को कार मिली और पूर्वी बंगाल (तब का पाकिस्तान) को हाथी। सिंधु घाटी स्थल से मिले कंगन को भी 2 टुकड़ों में बांटा गया था।