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#NewsBytesExplainer: क्या मौजूदा जज के खिलाफ हो सकती है FIR? पद से कैसे हटाया जाता है?
जस्टिस वर्मा मामले के बाद जजों के खिलाफ कार्यवाही की प्रक्रिया जानते हैं

#NewsBytesExplainer: क्या मौजूदा जज के खिलाफ हो सकती है FIR? पद से कैसे हटाया जाता है?

लेखन आबिद खान
Mar 23, 2025
04:36 pm

क्या है खबर?

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा इन दिनों खूब चर्चाओं में हैं। उनके सरकारी आवास पर आग लगने के दौरान भारी मात्रा में नकदी मिली है, जिसका वीडियो भी सामने आया है। इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 3 सदस्यीय समिति गठित की है। वहीं, जस्टिस वर्मा ने इसे फंसाने और बदनाम करने की साजिश बताया है। आइए जानते हैं ऐसे मामलों में जज के खिलाफ कैसे कार्रवाई हो सकती है।

मामला

सबसे पहले जस्टिस वर्मा से जुड़ा मामला जानिए

जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास के स्टोर रूम में 14 मार्च आग लग गई थी। उस समय जस्टिस वर्मा शहर में नहीं थे। उनके परिवार ने अग्निशमन और पुलिस को बुलाया। आग बुझाने के बाद टीम को घर से भारी मात्रा में नकदी मिली। हालांकि, बाद में अग्निशमन विभाग ने नकदी मिलने से इनकार किया था। इसकी जानकारी CJI खन्ना को हुई तो उन्होंने कॉलेजियम बैठक बुलाकर जस्टिस वर्मा का स्थानांतरण कर दिया।

शुरुआत

कैसे होती है कार्यवाही की शुरुआत?

किसी भी मौजूदा जज के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही तब तक शुरू नहीं की जा सकती जब तक कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श न किया जाए। शिकायत मिलने पर CJI संबंधित जज से जवाब मांगते हैं संतुष्ट न होने पर आंतरिक जांच समिति गठित करते हैं। लाइव लॉ के मुताबिक, जब CJI आरोपों को लेकर संतुष्ट हो जाते हैं तो वे राष्ट्रपति को पुलिस को FIR दर्ज करने की अनुमति देने की सलाह देते हैं।े

आंतरिक जांच

मामले की होती है गोपनीय जांच

CJI की देखरेख में एक समिति गोपनीय जांच करती है। इस प्रक्रिया को 'इन-हाउस प्रक्रिया' कहा जाता है। पहली बार इसका उल्लेख 1991 के के वीरस्वामी बनाम भारत संघ मामले में किया गया था। इस मामले का फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत लोक सेवक माना। हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि जजों पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी लेना जरूरी है।

प्रक्रिया

कैसी होती है इन-हाउस प्रक्रिया?

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोपनीय जांच के बाद शिकायत में लगाए गए आरोपों की प्रकृति जांचकर संबंधित जज से जवाब मांगते हैं। अगर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लगता है कि आगे जांच की जानी चाहिए तो वे CJI से परामर्श करते हैं। CJI हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से संबंधित जज से जवाब मांगते हैं। CJI आगे की जांच के लिए 3-सदस्यीय समिति गठित कर सकते हैं।

समिति

समिति क्या-क्या सिफारिश कर सकती है?

अगर समिति को आरोपों में सच्चाई लगती है तो वह 2 तरह की सिफारिशें कर सकती हैं। पहली- आरोप इतने गंभीर है कि जज को पद से हटाया जाना चाहिए। और दूसरी- आरोप इतने गंभीर नहीं है कि संबंधित जज को पद से हटाया जाना चाहिए। अगर समिति जज को हटाने की सिफारिश करती है तो संबंधित जज से इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का आग्रह किया जाता है।

इस्तीफा

अगर जज इस्तीफा देने से इनकार कर दे तो?

अगर आरोपी जज इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से इनकार कर देते हैं तो CJI हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सलाह देते हैं कि संबंझित जज को कोई न्यायिक कार्य आवंटित न किया जाए। इस पूरे मामले को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाया जाता है। इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत जज को हटाने के लिए संसद में महाभियोग लाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

महाभियोग

जज के खिलाफ कैसे लाया जाता है महाभियोग प्रस्ताव?

जज के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सांसद और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। इसके बाद प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा सभापति के सामने रखा जाता है। वे प्रारंभिक जांच के लिए एक समिति बनाते हैं। समिति अगर आरोपों को सही बताती है तो जज के खिलाफ दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव पारित कराया जाता है। यह प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है।