शादी का प्रस्ताव ठुकराना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं- सुप्रीम कोर्ट
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने शादी से मना करने से दुखी होकर आत्महत्या के मामले में बड़ी टिप्पणी की है।
कोर्ट स्पष्ट किया है कि शादी के प्रस्ताव को ठुकराना किसी को भी आत्महत्या के लिए उकसाने वाले अपराध के बराबर नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के संबंध में दाखिल आरोपपत्र को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
आइए पूरा मामला जानते हैं।
प्रकरण
क्या है आत्महत्या का मामला?
दरअसल, महिला पर उसके बेटे से प्यार करने वाली युवती को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था।
महिला ने युवती को शादी की स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था और अशोभनीय भाषा से प्रताड़ित किया था। इससे दुखी युवती ने आत्महत्या कर ली।
इस पर युवती के परिजनों ने युवक की मां के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया था। इस पर महिला ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
टिप्पणी
कोर्ट ने मामले पर क्या की टिप्पणी?
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, "भले ही आरोपपत्र, गवाहों के बयानों सहित मामले से जुड़े सभी सबूतों को सही माना जाए, लेकिन अपीलकर्ता के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। हमें लगता है कि अपीलकर्ता के कृत्य इतने दूरगामी और अप्रत्यक्ष हैं कि वे धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत अपराध नहीं माने जा सकते। अपीलकर्ता पर ऐसा कोई आरोप नहीं है कि मृतका के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।"
स्पष्ट
कोई ने मामले को कैसे किया स्पष्ट?
कोर्ट ने कहा, "अपीलकर्ता ने मृतक पर उसके और अपने बेटे के बीच संबंध खत्म करने के लिए कोई दबाव डालने की कोशिश नहीं की। मृतका का परिवार ही रिश्ते से नाखुश था, लेकिन यह आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता।"
कोर्ट ने कहा, "मृतका से यह कहना कि वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना जिंदा नहीं रह सकती तो न रहे वाली टिप्पणी भी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।"