लाल सागर में हमलों से यूरोप में भारत का डीजल निर्यात प्रभावित, एशिया में बढ़ा
लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमलों के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसका असर भारत के आयात-निर्यात पर भी पड़ा है। हमलों के साथ-साथ माल ढुलाई लागत बढ़ने और एशिया में अनियोजित रिफाइनरी रखरखाव के कारण यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ भारत का डीजल निर्यात 2022 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। भारत के लिए पश्चिम के बजाय पूर्व में माल भेजना अधिक सहज और लाभकारी साबित हो रहा है।
जनवरी की तुलना में 90 प्रतिशत कम हुआ निर्यात
वोर्टेक्सा लिमिटेड से ब्लूमबर्ग द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, फरवरी के पहले 2 हफ्तों में भारत से यूरोप में पेट्रोलियम का औसत निर्यात केवल 18,000 बैरल प्रति दिन था, जो जनवरी के औसत से 90 प्रतिशत कम है। स्पार्टा कमोडिटीज के विश्लेषक नोएल-बेसविक का दावा है कि गिरावट पिछले महीने पश्चिम में माल ढुलाई की लागत बढ़ने से आई है। उन्होंने कहा कि पश्चिम की तुलना में पूर्व (सिंगापुर क्षेत्र) में निर्यात करना लाभकारी सिद्ध हो रहा है।
क्यों बढ़ रहा समुद्री मार्ग से माल ढुलाई की लागत?
हूतियों के खतरे के कारण यूरोप या अटलांटिक बेसिन की ओर जाने वाले जहाज दक्षिण अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप मार्ग से जाने के लिए मजबूर हैं क्योंकि स्वेज नहर के छोटे रास्ते पर हूती हमले का खतरा है। केप ऑफ गुड होप मार्ग बहुत लंबा रास्ता है और जहाजों को पूरा अफ्रीका पार कर यूरोप पहुंचना होता है। इससे माल ढुलाई का समय बढ़ने के साथ-साथ लागत भी काफी बढ़ रही है।
फरवरी के पहले 2 हफ्ते में केवल ब्रिटेन तक पहुंची शिपमेंट
आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी के पहले 2 हफ्तों में यूरोपीय संघ में डीजल या इससे जुड़े ईंधन का कोई आयात नहीं हुआ है और ब्रिटेन में केवल एक शिपमेंट ही पहुंची है। हालांकि, पोर्ट रिपोर्ट और ब्लूमबर्ग द्वारा संकलित टैंकर-ट्रैकिंग डाटा के अनुसार, मार्लिन सिसिली और मार्लिन ला प्लाटा ने हाल ही में भारत में माल लोड किया है और इस महीने के अंत में यह रॉटरडैम के लिए रवाना हो गए।
पूर्वी एशिया में बढ़ा भारत का निर्यात
फरवरी के पहले 2 हफ्तों के दौरान एशियाई देशों में भारत से आने वाले डीजल-प्रकार के ईंधन की मात्रा में उछाल आया है। इसमें सऊदी अरब और बांग्लादेश के कुछ शिपमेंट भी शामिल हैं। पीस विक्टोरिया और ऑरेंज विक्टोरिया जैसे जहाजों के जरिए अधिक माल को पूर्वी एशिया की ओर भेजा जा रहा है। नोएल-बेसविक ने कहा कि बेहतर मध्यस्थता और अर्थशास्त्र में सुधार के परिणामस्वरूप आने वाले हफ्तों में भारत से यूरोप को अधिक डीजल निर्यात हो सकता है।
स्वेज नहर पर खतरे से क्यों हो रहा निर्यात प्रभावित?
दरअसल, स्वेज नहर पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के लिए यूरोप और अमेरिका के साथ सीधा व्यापार करने का एक आसान रास्ता है। इजरायल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद हूती विद्रोही रास्ते में पड़ने वाले बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य में जहाजों को निशाना बना रहे हैं। इस कारण कई बड़े व्यापारिक जहाज और तेल आपूर्तिकर्ता स्वेज नहर से माल नहीं भेज रहे हैं और इससे भारत के निर्यात पर भी सीधा असर पड़ रहा है।