भिखारियों और बेघरों को काम करना चाहिए, राज्य सब कुछ नहीं दे सकता- बॉम्बे हाई कोर्ट
क्या है खबर?
कोरोना वायरस महामारी ने देश में हर तबके को परेशान किया है। महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई और भिखारियों और बेघरों के सामने दो वक्त की रोटी का खतरा आ गया।
इसी बीच बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भिखारियों और बेघरों को भी देश हित में काम करना चाहिए। राज्य सरकार उन्हें सब कुछ उपलब्ध नहीं करा सकती है।
याचिका
भिखारियों और बेघरों की सुविधाओं के लिए दायर की गई थी जनहित याचिका
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, सामाजिक कार्यकर्ता बृजेश आर्य ने गत दिनों बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी।
इसमें उन्होंने बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) को शहर में मौजूद भिखारियों और बेघरों को तीन समय का पौष्टिक भोजन देने, पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने और उनके लिए आश्रय तथा शौचायल की व्यवस्था करने के निर्देश देने की मांग की थी।
उन्होंने कहा था कि महामारी के बाद इन लोगों की स्थित बहुत अधिक खराब है।
सुनवाई
हाई कोर्ट ने भिखारियों और बेघरों को दी जा रही सुविधाओं को बताया पर्याप्त
याचिका पर शनिवार को हुई सुनवाई में BMC ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ को बताया कि पूरे मुंबई में भिखारियों और बेघरों को गैर सरकारी संगठनों के साथ भोजन के पैकेट वितरित किए जा रहे हैं और समाज के इस वर्ग की महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन प्रदान किए जा रहे हैं।
इस पर कोर्ट ने कहा कि भिखारियों और बेघरों को दी जा रही सुविधाएं पर्याप्त हैं और इन्हें बढ़ाने की जरूरत नहीं है।
टिप्पणी
भिखारियों और बेघरों को भी करना चाहिए काम- हाई कोर्ट
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, "भिखारियों और बेघरों को भी देश के लिए काम करना चाहिए। हर कोई काम कर रहा है। सब कुछ राज्य द्वारा प्रदान नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता समाज के इस वर्ग की आबादी को बढ़ा रहे हैं।"
कोर्ट ने कहा, "याचिकाकार्ता की याचिका में की गई सभी मांगों को पूरा करना लोगों को काम न करने का निमंत्रण देने जैसा होगा। ऐसे में इन्हें पूरा नहीं किया जा सकता है।"
निर्देश
कोर्ट ने भिखारियों और बेघरों के लिए सार्वजनिक शौचालय मुफ्त करने को कहा
बता दें कि इस समय मुंबई में BMC द्वारा संचालित सार्वजनिक शौचालयों के उपयोग के लिए लोगों से न्यूनतम शुल्क लिय जाता है। ऐसे में भिखारी और बेघर लोग इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं।
इसको देखते हुए हाई कोर्ट ने BMC अधिकारियों को सार्वजनिक शौचालयों को भिखारियों और बेघरों के लिए मुफ्त करने पर विचार करने को कहा है। इसी तरह कोर्ट ने राज्य सकरार को भी इस पर विचार करने के निर्देश दिए हैं।