कोरोना: भारत दूसरी लहर में कैसे रोक सकता था 1.3 करोड़ संक्रमण और 1.1 लाख मौतें?
कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने भारत में जमकर कहर बरपाया है। इस लहर में करोड़ों लोग संक्रमण की चपेट में आए और लाखों लोगों की मौत हो गई। इतना ही नहीं, अस्पतालों में बेड्स, दवाइयों और ऑक्सीजन की कमी आ गई थी। इसी बीच एक अध्ययन में सामने आया कि यदि भारत मार्च के मध्य में ही सामान्य लॉकडाउन लागू कर देता तो अगले दो महीने में 1.3 करोड़ संक्रमण और 1.10 लाख मौतों को रोका जा सकता था।
फरवरी 2021 में अचानक आने लगा था संक्रमण के मामलों में उछाल
बता दें कि 2020 के आखिर और 2021 की शुरुआत के चार महीनों के बाद फरवरी 2021 में कई राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी से उछाल देखने को मिला था।इनमें महाराष्ट्र, पंजाब और छत्तीसगढ़ प्रमुख थे। इन राज्यों में बढ़ते संक्रमण के कारण 14 फरवरी को वायरस की रिप्रोडक्शन वैल्यू (R वैल्यू) सुरक्षित माने जाने वाली दर एक से ऊपर चली गई थी। इसके बाद संक्रमण अन्य राज्यों में पहुंच गया और हालात बिगड़ते गए।
क्या होती रिप्रोडक्शन वैल्यू?
रिप्रोडक्शन वैल्यू (संक्रमण के प्रसार की दर) में वायरस के एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुंचने की क्षमता को देखा जाता है। 1.9 R वैल्यू का मतलब है 10 संक्रमित मिलकर 19 अन्य लोगों को संक्रमित कर रहे हैं। सुरक्षित R वैल्यू एक होती है।
मिशिगन यूनिवर्सिटी ने किया है महामारी के कहर को रोकने की संभावनाओं पर अध्ययन
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, मिशिगन यूनिवर्सिटी में महामारी विज्ञानी भ्रमर मुखर्जी और उनके सहयोगियों ने भारत में महामारी की दूसरी लहर के कहर को रोकने की संभावनों पर अध्ययन किया था। इसमें शोधकर्ताओं ने महामारी की दूसरी लहर और परिष्कृत कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके सरकारी हस्तक्षेप की संभावित भूमिका का विश्लेषण किया है। इसमें सामने आया कि सरकार ने दूसरी लहर की शुरुआत में ही सख्त कदम नहीं उठाए थे।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में किया यह आंकलन
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि R वैल्यू के खतरे के निशान एक से ऊपर जाने के बाद भी सरकार ने दो महीनों तक महामारी पर नियंत्रण के लिए कोई सख्त कदम नहीं उठाए। इसके अलावा सरकार ने पांच राज्यों में हुई विधानसभा चुनावों में कई बड़ी राजनीतिक रैलियों का आयोजन करने के साथ देश में कई बड़े धार्मिक आयोजन भी कराए। इसी तरह सोशल डिस्टेंसिंग का भी खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा था। इससे मामलों की रफ्तार बढ़ गई।
सरकार ने 14 अप्रैल से की थी सख्ती की शुरुआत
देश में तेजी से बढ़ते संक्रमण के मामलों को देखते हुए सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार ने 14 अप्रैल को लॉकडाउन की शुरुआत की थी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वायरस का प्रसार अधिकतर राज्यों तक पहुंच गया था। शोधकर्ताओं ने कहा कि यदि लॉकडाउन की शुरुआत मध्य मार्च से की जाती तो मामलों में तत्काल गिरावट शुरू हो जाती और दैनिक मामलों की संख्या सर्वाधिक 4,14,280 की जगह 20,000-49,000 के बीच ही होती।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के जरिए यह निकाला निर्णय
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के जरिए यह निर्णय निकाला कि यदि सरकार 15 मार्च के करीब पिछले साल की तरह संपूर्ण लॉकडाउन या महाराष्ट्र की तर्ज पर आंशिक लॉकडाउन के साथ कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराती तो 1.3 करोड़ लोगों को संक्रमित होने से बचाया जा सकता था। अप्रैल में लॉकडाउन की शुरुआत महामारी से बचाव के लिए नाकाफी थी। इसका कारण यह था कि अप्रैल तक दूसरी लहर अपने चरम की ओर बढ़ चुकी थी।
रोकी जा सकती थी 1.10 लाख मौतें
अध्ययन में कहा गया है कि यदि सरकार 15 मार्च से लॉकडाउन लागू करती तो 15 मई तक हुई मौतों में 98.5 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती थी। एक अनुमान के अनुसार 15 मई तक सरकार 97,000 से 1.09 लाख मौतों को रोक सकती थी। अध्ययन में यह भी सलाह दी गई है कि जब तक वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होती है तब तक सरकार को लॉकडाउन के बाहर निकलने की प्रभावी रणनीति पर काम करना चाहिए।
भारत में यह है कोरोना संक्रमण की स्थिति
भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस से संक्रमण के 44,111 नए मामले सामने आए और 738 मरीजों की मौत हुई। इसी के साथ देश में कुल संक्रमितों की संख्या 3,05,02,362 हो गई है। इनमें से 4,01,050 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। सक्रिय मामलों की संख्या कम होकर 4,95,533 रह गई है। देश में बीते कई हफ्तों से कोरोना मामलों में गिरावट आ रही है और हालात बेहतर हो रहे हैं।