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वेश्यावृत्ति कोई अपराध नहीं, व्यस्क महिला को अपना व्यवसाय चुनने का अधिकार- बॉम्बे हाईकोर्ट

वेश्यावृत्ति कोई अपराध नहीं, व्यस्क महिला को अपना व्यवसाय चुनने का अधिकार- बॉम्बे हाईकोर्ट

Sep 26, 2020
03:04 pm

क्या है खबर?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने वेश्यावृत्ति के मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए सुधारात्मक संस्था में हिरासत में चल रही तीन यौनकर्मियों को बरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि वेश्यावृत्ति को इम्मोरल ट्रैफिक (प्र‌िवेंशन) एक्ट, 1956 के तहत किसी भी तरह से अपराध नहीं माना गया है और एक वयस्क महिला को अपना व्यवसाय चुनने का पूरा अधिकार है। इसी तरह संबंधित महिला को उसकी सहमति के बिना हिरासत में नहीं लिया जा सकता है।

प्रकरण

तीन महिला यौनकर्मियों ने निचली अदालत के फैसले को दी थी चुनौती

TOI के अनुसार मुंबई पुलिस ने सितंबर 2019 में मलाड गेस्ट हाउस से तीन युवतियों को वेश्यावृत्ति के मामले में गिरफ्तार किया था। पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर मझगांव महानगर मजिस्ट्रेट ने उन्हें एक साल के लिए हिरासत में भेज दिया था। तीनों युवतियों ने इस फैसले को अपर सत्र न्यायालय डिंडोशी में चुनौती थी, लेकिन अपर सत्र न्यायाधीश ने भी मझगांव कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। इसके बाद युवतियों ने नवंबर में आदेश को चुनौती दी।

इनकार

निचली अदालत ने युवतियों को परिवार को सौंपने से भी कर दिया था इनकार

मामले की सुनवाई में सामने आया था कि तीनों युवतियां बेडिया समुदाय से है और उस समुदाय में लड़कियों को व्यस्क होते ही देह व्यापार के लिए भेज दिया जाता है। तीनों युवतियों के परिजनों को भी इसकी जानकारी थी। ऐसे में कोर्ट ने यह मानते हुए कि युवतियों को फिर से देह व्यापार के लिए भेजा जाएगा तो उन्होंने युवतियों की सुपुर्दगी परिवार को सौंपने से भी इनकार करते हुए उन्हें एक साल के लिए हिरासत में भेज दिया।

टिप्पणी

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले में की यह टिप्पणी

होईकोर्ट में ज‌स्टिस पृथ्वीराज के चव्हाण की एकल खंडपीठ-3 ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि इम्मोरल ट्रैफिक (प्र‌िवेंशन) एक्ट का उद्देश्य देह व्यापार को खत्म करना नहीं है। इस कानून के तहत वेश्यावृत्ति को अपराध मानने या इससे जुडे लोगों को दंडित करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस कानून में सिर्फ व्यवसायिक उद्देश्य के लिए यौन शोषण करना और सार्वजनिक जगह पर अशोभनीय हरकत करने को अपराध और दंडनीय श्रेणी में माना गया है।

आदेश

हाईकोर्ट ने दिया तीनों युवतियों को रिहा करने का आदेश

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि संविधान के तहत सभी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने व अपनी पसंद की जगह रहने का अधिकार है। तीनों व्यस्क युवतियों को अपनी पसंद की जगह रहने और व्यवसाय चुनने का अधिकार है। जस्टिस चव्हाण ने कहा कि तीनों युवतियों को हिरासत में भेजने से पहले युवतियों की इच्छा जाननी चाहिए थी। ऐसे में उन्होंने 20, 22 व 23 साल की युवतियों को रिहा करने का आदेश दिया।