फेक न्यूज पर सख्त सरकार, भ्रामक खबरों की जांच के लिए बनाया जाएगा संगठन
क्या है खबर?
पिछले कुछ समय से बढ़ रहे फेक न्यूज के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने अब सख्त रुख अपनाया है। सरकार फेक न्यूज से निपटने के लिए एक संगठन की नियुक्ति करेगी।
इसका काम सरकार के बारे में इंटरनेट पर मौजूद फेक न्यूज या गलत जानकारी की पहचान करना होगा। सरकार ने इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियमों में संशोधनों की घोषणा की है।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस बात की जानकारी दी।
नियम
नए नियमों से क्या बदलाव होगा?
नए नियमों के अनुसार, सरकार से संबंधित किसी भी झूठी या भ्रामक जानकारी की पहचान करने के लिए एक संगठन की नियुक्ति की जाएगी। इस संगठन के पास फर्जी, झूठी या भ्रामक जानकारी से जुड़े तथ्यों की जांच करने की शक्ति होगी।
संगठन खबर या जानकारी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर या गूगल से हटाने के लिए भी कह सकता है। कंपनियों के लिए इस संगठन की बात मानना अनिवार्य होगा।
बयान
इस कदम का उद्देश्य मीडिया को सेंसर करना नहीं- राजीव चंद्रशेखर
चंद्रशेखर के मुताबिक, इस कदम का उद्देश्य मीडिया पर सेंसरशिप लगाना नहीं है, बल्कि प्रचलित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर किसी भी भ्रामक या गलत जानकारी को फैलने से रोकना है।
उन्होंने कहा, "सरकार द्वारा नियुक्त संगठन केवल केंद्र सरकार की योजनाओं से संबंधित जानकारी के लिए जिम्मेदार होगा। किसी भी खबर को फेक न्यूज मानने के बाद संगठन कंपनियों को उस सामग्री के बारे में जानकारी देने के लिए नोटिस भेजेगा।"
pib
PIB को जिम्मा दे सकती है सरकार
चंद्रशेखर ने कहा कि पत्र सूचना कार्यालय (PIB) को इस काम के लिए प्राथमिकता दी जा सकती है। बता दें कि PIB सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और उपलब्धियों पर मीडिया में सूचना का प्रसार करने के लिए नोडल एजेंसी है।
हालांकि, चंद्रशेखर ने कहा कि भविष्य में निजी फेक्ट चेकिंग एजेंसियों को भी इस काम के लिए अधिसूचित किया जा सकता है और सरकार को भ्रामक सूचनाओं के खिलाफ आगामी दिनों में और भी कदम उठाने होंगे।
विरोध
सरकार के फैसले का हो रहा है विरोध
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) ने कहा कि इस कदम का अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार, खासतौर पर समाचार प्रकाशकों और पत्रकारों, पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
IFF ने कहा, "सरकार की किसी भी इकाई को ऑनलाइन सामग्री की प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए इस तरह की मनमानी और व्यापक शक्तियों को सौंपना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ और असंवैधानिक है।"
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी सरकार को पत्र लिख कहा कि इस कदम से सरकारी सेंसरशिप को बढ़ावा मिलेगा।