फेक न्यूज रोकने के लिए नई योजना बना रहीं सोशल मीडिया कंपनियां, सरकार को भेजा प्रस्ताव
मेटा और गूगल सहित बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स फैक्ट चेकर्स का एक नेटवर्क बनाने की तैयारी में हैं। इस संबंध में इन्होंने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। फैक्ट चेकर्स के जरिए ये कंपनियां अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की गई झूठी और गलत जानकारियों की जांच करेंगी। इन सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे फैक्ट चेक्स के नेटवर्क को 'मिसइंफॉर्मेशन कॉम्बैट एलायंस' के रूप में पेश किया जा रहा है।
केंद्र सरकार से जुड़ी जानकारियों की नहीं कर पाएंगी जांच
मिसइंफॉर्मेशन कॉम्बैट एलायंस से कई बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जुड़ने की उम्मीद है। सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स और IT मंत्रालय को भेजे गए 5 पन्नों के प्रस्ताव के अनुसार, यह एलायंस एक "सर्टिफिकेशन बॉडी" के रूप में कार्य करेगा, जो इस बात की जांच करेगा कि कौन "विश्वसनीय" फैक्ट चेकर्स हैं। यदि यह नेटवर्क स्थापित होता है तो इसे केवल उन्हीं जानकारियों का फैक्ट चेक करने का अधिकार होगा, जो केंद्र सरकार से संबंधित नहीं हैं।
सरकार भी बनाएगी फैक्ट चेक यूनिट
IT मंत्रालय ने भी सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में नए संशोधनों को अधिसूचित किया है। इसके तहत सरकार से संबंधित गलत सूचनाओं और जानकारियों की जांच करने के लिए एक खास फैक्ट चेक यूनिट स्थापित की जाएगी।
भारतीय और विदेशी फैक्ट चेकर्स का नेटवर्क बनाएंगी कंपनियां
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि कंपनियों ने गुरुवार को मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा कि वे गलत सूचनाओं के लिए फैक्ट चेकर्स का एक स्व-नियामक नेटवर्क बनाना चाहते हैं और यह केंद्र सरकार से संबंधित नहीं है। ये सोशल मीडिया कंपनियों का प्रस्ताव है कि वो मिसइंफॉर्मेशन कॉम्बैट एलायंस के तहत भारतीय और विदेशी फैक्ट चेकर्स का एक नेटवर्क बनाएंगे।
फरवरी में हुई थी मंत्रालय और कंपनियों के बीच बात
रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों और प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों के प्रतिनिधियों के बीच एक बंद कमरे में हुई बैठक हुई थी। इसमें फैक्ट चेकर्स का स्वदेशी नेटवर्क बनाने पर चर्चा की गई थी, जिसका काम उनके प्लेफॉर्म्स पर गलत सूचनाओं को फ्लैग करना था। ये सरकार से जुड़ी सूचनाओं की जांच करना नहीं था। बता दें कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पहले से ही कई फैक्ट चेकर्स पर निर्भर हैं।
अभी भी फैक्ट चेकर्स के साथ काम करती हैं कंपनियां
मेटा अभी इंटरनेशनल फैक्ट चेकिंग नेटवर्क (IFCN) द्वारा सर्टिफाइड फैक्ट-चेकर्स के साथ काम करती है। इसे 2015 में अमेरिका स्थित पोयंटर इंस्टीट्यूट ने स्थापित किया था। IFCN के सदस्य मूल रिपोर्टिंग, प्राथमिक स्त्रोत के इंटरव्यू और सार्वजनिक डाटा के साथ फोटो-वीडियो के जरिए घटनाओं की सच्चाई का मूल्यांकन करते हैं और इसमें घटना का विश्लेषण करना शामिल है। यह पता चला है कि सरकार नहीं चाहती कि दुनिया में कहीं और स्थापित नेटवर्क देश से जुड़े कंटेंट पर कार्रवाई करें।
भारत के लिए फेक न्यूज है बड़ा मुद्दा
भारत में फेक न्यूज एक बड़ा मुद्दा है। गलत और भ्रामक जानकारी के चलते देश के कई हिस्सों में दंगे तक भड़के हैं। मेटा के स्वामित्व वाली फेसबुक, व्हॉट्सऐप के अलावा यूट्यूब, ट्विटर और इंस्टाग्राम आदि प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं और इनके करोड़ों एक्टिव यूजर्स हैं। सेग इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ लाइब्रेरी एसोसिएशंस एंड इंस्टीट्यूशंस जर्नल में 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कोरोना महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर खूब गलत खबरें प्रसारित की गई थीं।