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    नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी पर कोर्ट के अलग-अलग फैसले, जानें किसका क्या कहना है

    नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी पर कोर्ट के अलग-अलग फैसले, जानें किसका क्या कहना है
    लेखन भारत शर्मा
    Nov 20, 2022, 09:47 pm 1 मिनट में पढ़ें
    नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी पर कोर्ट के अलग-अलग फैसले, जानें किसका क्या कहना है
    केरल हाई कोर्ट ने बाल विवाह और मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर की अहम टिप्पणी

    केरल हाई कोर्ट ने बाल विवाह को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नाबालिगों की शादी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की व्यापकता से बाहर नहीं है। यदि कोई अपनी नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध बनाता है तो वह कानून के दायरे में आएगा। इससे पहले दिल्ली और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 16 साल की नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी को वैध बताया था।

    केरल हाई कोर्ट ने खारिज की आरोपी की जमानत याचिका

    केरल हाई कोर्ट के जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने नाबालिग से रेप के मामले के 31 वर्षीय आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि POCSO अधिनियम एक विशेष कानून है। यह विशेष कानून बाल शोषण, कमजोर, भोले-भाले और मासूम बच्चे की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नाबालिगों की शादी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की व्यापकता से बाहर नहीं हो सकती है।

    नाबालिग से शारीरिक संबंध बनाना है अपराध- हाई कोर्ट

    हाई कोर्ट ने कहा कि POCSO अधिनियम को बाल विवाह और बाल यौन शोषण के खिलाफ बनाया गया था। इस हिसाब से शादी के बाद किसी नाबालिग से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है और ऐसा करने वाले के खिलाफ इस अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि भले ही बाल विवाह पर्सनल लॉ में वैध माना जाता हो, लेकिन एक पक्ष के नाबालिग है होने पर उसे POCSO के तहत अपराध माना जाएगा।

    अन्य हाई कोर्ट के फैसलों से जताई असहमति

    जस्टिस थॉमस ने कहा कि वह इस मामले में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट तथा दिल्ली हाई कोर्ट के दृष्टिकोण से सहमत नहीं है। दोनों कोर्ट ने एक मुस्लिम लड़की जो 15 साल की हो चुकी है, उसे अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार दिया था और पति के नाबालिग से शारीरिक संबंध बनाने पर POCSO के तहत केस दर्ज करने से छूट दी गई थी। इसी तरह उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर भी असहमति जताई।

    केरल हाई कोर्ट के उलट था दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

    अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग मुस्लिम युवती के विवाह करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था। जस्टिस जस्मीत सिंह की पीठ ने कहा था कि मुस्लिम लॉ के तहत यौवन प्राप्त कर चुकी लड़की माता-पिता की अनुमति के बिना शादी कर सकती है और वह नाबालिग है तो भी उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है। शादी के बाद यदि शारीरिक संबंध बनते हैं तो पति पर POCSO नहीं लगाया जा सकता है।

    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भी दिया था ऐसा ही फैसला

    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भी जून में 16 वर्षीय नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी को जायजा ठहराया था। उस दौरान जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा था कि कानून साफ है कि एक मुस्लिम लड़की की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आती है। सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला की किताब 'मुस्लिम कानून के सिद्धांत' के अनुच्छेद 195 के अनुसार, 16 साल से अधिक उम्र की होने पर मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के युवक से शादी कर सकती है।

    हाई कोर्ट ने दी थी यह दलील

    जस्टिस बेदी ने कहा था कि चूंकि लड़के की उम्र भी 21 साल से अधिक है, ऐसे में मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक दोनों याचिकाकर्ता शादी के योग्य उम्र के हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ इसलिए कि याचिककर्ताओं ने अपने परिजनों की इच्छा के खिलाफ शादी की है, उन्हें भारतीय संविधान में दिए गए उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने पठानकोट के SSP को याचिककर्ताओं की मांग पर कदम उठाने के निर्देश दिए थे।

    कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्या दिया था फैसला?

    कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी दिल्ली हाई कोर्ट की तर्ज पर फैसला दिया था। 17 वर्षीय मुस्लिम युवती के पसंद से शादी करने के बाद परिजनों द्वारा पति पर लगाए गए रेप के आरोप के मामले में कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 16 वर्षीय युवती अपनी पसंद से शादी कर सकती है। इसके बाद शारीरिक संबंध बनाने पर पति के खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत किसी तरह का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है।

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