मदरसों और वैदिक स्कूलों में समान पाठ्यक्रम की मांग, हाई कोर्ट का सरकार को नोटिस
दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत मदरसों और वैदिक स्कूलों में समान पाठ्यक्रम की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने मामले में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय और गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उन्होंने तर्क दिया कि RTE अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) को मनमाना और असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।
याचिका में और क्या मांग की गई है?
याचिका में कई अलग-अलग मांगें की गई हैं। इनमें से एक है कि गुरुकुल और वैदिक स्कूलों को मदरसा और मिशनरी स्कूलों के समान मान्यता दी जाए। याचिका में समान शिक्षा प्रणाली लागू करने की मांग करते हुए कहा गया है, "समान शिक्षा प्रणाली लागू करना संघ का कर्तव्य है, लेकिन वह इस अनिवार्य दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है। उसने 2005 के पहले से मौजूद राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे (NCF) को अपना लिया है।"
केंद्र को 30 मार्च तक जवाब दाखिल करने का मिला समय
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ ने इस मामले में कई पक्षों को नोटिस जारी किया है। हाई कोर्ट ने केंद्र और अन्य को जवाब दाखिल करने के लिए 30 मार्च तक का समय दिया है।
सामान्य पाठ्यक्रम देने में कमी करना शिक्षा न देने से भी बदतर- उपाध्याय
हाई कोर्ट में दायर इस याचिका में उपाध्याय ने तर्क दिया है कि RTE अधिनियम को इस तरह से लागू और कार्यान्वित किया जाना चाहिए ताकि संवैधानिक लक्ष्य केवल कानून के मृत पत्र न रह जाएं। उन्होंने कहा कि इसके सिद्धांतों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। याचिका में उन्होंने आगे कहा, "अनिवार्य शिक्षा हर बच्चे को स्कूल जाने की अनिवार्यता तय करती है। लेकिन एक प्रभावी सामान्य पाठ्यक्रम देने में कमी करना शिक्षा न देने से भी बदतर है।"
सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई करने से किया था इनकार
बता दें कि उपाध्याय ने पहले सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका लगाई थी, लेकिन उसने इस मामले पर सुनवाई या कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था। इस याचिका में उपाध्याय ने कहा था, "अनिवार्य शिक्षा हर बच्चे को स्कूल जाने के लिए प्रतिबद्ध करती है, लेकिन एक प्रभावी सामान्य पाठ्यक्रम की कमी है। अनिवार्य शिक्षा प्रणाली की पहचान पाठ्यक्रम है। इसे समान रूप से सभी बोर्ड में लागू किया जाना चाहिए।"
न्यूजबाइट्स प्लस
शिक्षा का अधिकार कानून यह कहता है कि राज्य विधि बनाकर छह से 14 वर्ष के सभी बालकों को निशुल्क शिक्षा प्रदािन करें। संसद में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 में पारित हुआ था और अप्रैल, 2010 से लागू हुआ था।