पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता अदालती आदेश- गुजरात हाई कोर्ट
गुजरात हाई कोर्ट ने एक परिवार न्यायालय द्वारा महिला को वापस ससुराल जाकर वैवाहिक दायित्व निभाने के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत का आदेश भी महिला को पति के साथ रहने को मजबूर नहीं कर सकता है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पहली पत्नी इस आधार पर पति के साथ रहने से इनकार कर सकती है कि मुस्लिम कानून बहुविवाह की अनुमति देता है, लेकिन इसे कभी बढ़ावा नहीं दिया है।
महिला ने ससुराल वालों के ऑस्ट्रेलिया जाने का दबाव बनाने पर छोड़ा था घर
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, महिला का निकाह 25 मई, 2010 को बनासकांठा के पालनपुर में हुआ था। वह सरकारी अस्पताल में नर्स का काम करती थी। इसके बाद जुलाई 2015 में उसके एक बेटा हुआ था। कुछ दिनों बार पति और ससुराल वालों ने उस पर ऑस्ट्रेलिया जाकर नौकरी करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। ऐसे में उसे यह प्रस्ताव मंजूर नहीं होने पर ससुराल वालों के दबाव में जुलाई 2017 में बेटे के साथ घर छोड़ दिया।
पति ने बनासकांठा परिवार न्यायालय में दायर की याचिका
मामले में महिला के पति ने बनासकांठा के परिवार न्यायालय में याचिका दायर कर पत्नी को फिर से ससुराल बुलाने का आदेश देने की मांग की थी। पति ने याचिका में कहा था कि उसकी पत्नी ने बिना किसी वैध आधार के घर छोड़ दिया। जब उसे वापस लाने के लिए मनाना विफल हो गया तो उसने न्यायालय का रुख किया है। इस पर न्यायालय ने जुलाई में महिला को ससुराल जाने और वैवाहिक दायित्व निभाने का आदेश दिया था।
महिला ने परिवार न्यायालय के आदेश को दी हाई कोर्ट में चुनौती
महिला ने बनासकांठा परिवार न्यायालय के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी। इस पर सुनवाई में जस्टिस जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति निरल मेहता की खंडपीठ ने नागरिक प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश XXI नियम 32(1) और (3) का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को सहवास करने व वैवाहिक अधिकार स्थापित करने के लिए कोर्ट के आदेश के बाद भी मजबूर नहीं कर सकता है। वह इस पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है।
हाई कोर्ट ने दिया दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का हवाला
हाई कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था कि समान नागरिक संहिता (UCC) संविधान में केवल आशा नहीं रहनी चाहिए। वैवाहिक अधिकारों की बहाली पति के अधिकार पर ही निर्भर नहीं करती है।
पारिवारिक न्यायालय ने इस आधार पर निकाला निष्कर्ष
हाई कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय इस अनुमान के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचा कि कामकाजी महिला होने के नाते महिला अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के साथ नहीं आ सकती थी और उसने अपने वैवाहिक घर से बाहर निकलने के लिए परेशान होने के बजाय उसे छोड़ना उचित समझा। हाई कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में कानून की धारणाओं को इस तरह से बदलना होगा कि उन्हें आधुनिक सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप लाया जा सके।
पति के पक्ष में आदेश देने का नहीं है कोई नियम- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई भी नियम नहीं है जो अदालतों को पति के पक्ष में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आदेश जारी करने के लिए मजबूर करे। अगर कोर्ट को लगता है कि पति खुद अयोग्य है या उसका उल्टा मकसद है तो वह उसे खारिज कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी मुस्लिम बहुविवाह कानून के कभी प्रोत्साहित नहीं किए जाने के आधार पर पति के साथ रहने से मना कर सकती है।