देश के खिलाफ असंतोष पैदा करना था CAA विरोधी प्रदर्शनों का मकसद- दिल्ली अदालत
दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को दंगों की साजिश के आरोपों में गिरफ्तार 27 वर्षीय छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि नागरिकता संसोधन कानून के खिलाफ मुखर आंदोलन और उसके साथ अन्य हिंसक गतिविधियां दिखाती हैं कि इनका मकसद भारत के खिलाफ असंतोष को भड़काना था। तन्हा को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की साजिश के आरोप में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया है।
दूसरी बार रद्द हुई है तन्हा की जमानत याचिका
यह दूसरी बार है जब तन्हा की जमानत याचिका को खारिज किया गया है। दिल्ली पुलिस ने तन्हा को उमर खालिद और शरजील इमाम के साथ मिलकर 'सरकार को उखाड़ फेंकने' के लिए मुस्लिम बहुल इलाकों में चक्का जाम की साजिश रचने के आरोपों में गिरफ्तार किया था। पुलिस का आरोप है कि तन्हा ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सिमकार्ड खरीदा था, जिसका इस्तेमाल दंगों के दौरान किया गया। बाद में यह सिम सफूरा जरगर को दी गई थी।
"आतंकी कृत्य हैं भारत की एकता और अखंडता को कमजोर करने वाले काम"
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जब तन्हा के वकील सिद्धार्थ ने कहा कि जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी और स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन आदि संगठन UAPA के तहत आतंकी संगठन घोषित नहीं किये गए हैं। इस पर अतिरिक्त सेशन जज (ASJ) अमिताभ रावत ने कहा कि भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाले काम, सामाजिक वैमनस्य फैलाना और लोगों में आतंक फैलाना भी आतंकी कृत्य है। उन्होंने कहा कि कानून के तहत ऐसी आतंकी गतिविधियों को समझना होगा।
अदालत ने आदेश में कही ये बातें
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह पूरी साजिश दिसंबर, 2019 से असुविधा पैदा करने और सेवाओं की आपूर्ति में बाधा डालने के उद्देश्य से सड़कों को बंद करने से शुरू हुई थी, जो अलग-अलग तरीकों से हिंसा में तब्दील हो गई और फरवरी में इसका मकसद सड़कों को बंद करने, लोगों को डराने और पुलिसकर्मियों पर हमलों तक हो गया। इसके बाद दंगे शुरू हुए। कानून के तहत ये सब आतंकी गतिविधियों की परिभाषा में आते हैं।
कानून का विरोध करने का हक, लेकिन कुछ प्रतिबंध भी- अदालत
ASJ रावत ने अपने आदेश में कहा कि देश के सभी नागरिक किसी भी कानून को लेकर अपनी राय रख सकते हैं और उनको किसी भी कानून का विरोध करने का हक है, लेकिन इस पर कुछ पाबंदियां भी हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस मामले में यह देखा जाना चाहिए कि क्या इसमें कोई साजिश थी, जिस वजह से नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों की आड़ में दंगे हुए या ऐसा नहीं था।