
कोवैक्सिन और कोविशील्ड की अलग-अलग खुराकें लेने वालों में मिलीं ज्यादा एंटीबॉडीज- शुरुआती अध्ययन
क्या है खबर?
पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के 18 लोगों पर किए शुरुआती अध्ययन में सामने आया है कि कोविशील्ड और कोवैक्सिन की अलग-अलग खुराकें लेने वाले लोगों में इम्युनोजेनसिटी (प्रतिरक्षाजनकता) एक ही वैक्सीन की खुराक लेने वाले लोगों से अधिक होती है।
यह अध्ययन उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में गलती से अलग-अलग वैक्सीन लगवाने वाले लोगों पर किया गया था। अभी तक इसे पीयर रिव्यू नहीं किया गया है।
आइये, पूरी खबर जानते हैं।
उत्तर प्रदेश
गलती से लाभार्थियों को लगी थी अलग-अलग वैक्सीनें
इस साल मई में सिद्धार्थनगर जिले के 18 लोगों को गलती से अलग-अलग वैक्सीनों की खुराक लगा दी गई थी। पहले इन लोगों को कोविशील्ड की खुराक लगाई गई और फिर कोवैक्सिन की खुराकें लगा दी गई।
अधिकारियों ने बताया कि वैक्सीनेशन केंद्र पर मौजूद स्वास्थ्यकर्मियों की गलती के चलते ऐसा हुआ था और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
उस वक्त लाभार्थियों में भी इसे लेकर डर बैठ गया था और वो किसी अनहोनी से डरे हुए थे।
कोरोना वैक्सीन
अध्ययन में क्या सामने आया?
न्यूज18 के अनुसार, NIV ने इन 18 लोगों पर अध्ययन किया और इनकी इम्युनोजेनसिटी की एक ही वैक्सीन की दोनों खुराक लेने वाले लोगों से तुलना की।
अध्ययन में सामने आया कि अलग-अलग वैक्सीन लगवाने वाले लोगों का इम्युनोजेनसिटी प्रोफाइल अल्फा, बीटा और डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा मजबूत था। साथ ही इनमें एंटीबॉडीज की संख्या भी ज्यादा थी।
इसमें बताया गया है कि दोनों वैक्सीनों की खुराकें अधिक सुरक्षा देने के साथ-साथ सुरक्षित भी हैं।
इंटरचेंजेबल डोज रिजीम
बड़े स्तर के ट्रायल की सिफारिश
29 जून को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने भारत में अलग-अलग वैक्सीन की खुराक देने (इंटरचेंजेबल डोज रिजीम) का ट्रायल शुरू करने की सिफारिश की थी।
कमेटी ने कहा था कि वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज को कोवैक्सिन और कोविशील्ड की अलग-अलग खुराकें देने का ट्रायल करने की इजाजत दी जाए।
भारत में अभी तक एक ही वैक्सीन की दोनों खुराक दी जा रही हैं और इंटरचेंजेबल डोज रिजीम की अनुमति नहीं है।
जानकारी
क्यों दी जाती हैं अलग-अलग वैक्सीनों की खुराकें?
देश में वैक्सीनेशन पर सलाह के लिए बने तकनीकी सलाहकार समूह के प्रमुख एनके अरोड़ा ने कहा कि इंटरचेंजेबल डोज रिजीम में अलग-अलग वैक्सीन की खुराकों को मिलाया नहीं जाता है।
उन्होंने बताया कि लाभार्थी को वैक्सीनेशन का शेड्यूल पूरा करने के लिए अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीनों की खुराकें दी जाती हैं। इसका मकसद वैक्सीन की प्रभावकारिता और इससे मिलने वाली सुरक्षा को बढ़ाना होता है। इसे इंटरचेंजेबिलिटी भी कहा जाता है।
इंटरचेंजेबल डोज रिजीम
विशेषज्ञ कर चुके ट्रायल की बात
अप्रैल में इंटरचेंजेबल डोज रिजीम के ट्रायल के बारे में बताते हुए देश की कोरोना टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ वीके पॉल ने कहा था कि इस मुद्दे पर वैज्ञानिक समझ बढ़ रही है और भारत को भी इस दिशा में सोचना चाहिए।
उन्होंने कहा था कि इससे वैक्सीन की प्रभावकारिता बढ़ने की संभावना है और अगर ऐसा होता है तो यह देश के वैक्सीनेशन अभियान में तेजी लाएगा और लोगों को बेहतर बूस्टर शॉट मिल सकेगा।