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    क्या होता है कोरोना वायरस एंटीबॉडी टेस्ट और कितने सटीक होते हैं इसके परिणाम?
    देश में कोरोना महामारी के खिलाफ सुरक्षा का पता लगाने के लिए लोग करा रहे हैं एंटीबॉडी टेस्ट।

    क्या होता है कोरोना वायरस एंटीबॉडी टेस्ट और कितने सटीक होते हैं इसके परिणाम?

    लेखन भारत शर्मा
    Jul 01, 2021
    06:42 pm

    क्या है खबर?

    इस समय कोरोना महामारी के खिलाफ वैक्सीनेशन अभियान चलाया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार वैक्सीन लगने के बाद शरीर में एंटीबॉडी बनेगी और उसके बाद लोग संक्रमण से सुरक्षित रहेंगे।

    ऐसे में वैक्सीन लगवा चुके लोगों के मन में बड़ा सवाल यह है कि क्या उनके शरीर में एंटीबॉडी बन गई? इसके लिए अब लोगों ने एंटीबॉडी टेस्ट भी करना शुरू कर दिया है।

    यहां जातने हैं कि आखिर क्या होता है एंटीबॉडी टेस्ट और यह कितना सटीक है।

    अनिवार्य

    कई देशों ने अनिवार्य किया एंटीबॉडी टेस्ट

    बता दें कि पाबंदियों में ढील के बाद लोग सामान्य जीवन में प्रवेश करने के लिए एंटीबॉडी टेस्ट करा रहे हैं। वह जानना चाहते हैं कि वह कोरोना वायरस के खिलाफ 100 प्रतिशत सुरक्षित है।

    इसी तरह कई देशों ने यह जानने के लिए एंटीबॉडी टेस्ट अनिवार्य कर दिया है कि वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति सुरक्षित हुए हैं या नहीं।

    इसी तरह कई कार्यालयों में भी काम पर लौटने वाले कर्मचारियों से एंटीबॉडी रिपोर्ट मांगी जा रही है।

    सवाल

    क्या होती है एंटीबॉडी?

    एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है।

    कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है।

    जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनती हैं। यह वायरस से लड़ती हैं। ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आमतौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनती हैं।

    टेस्ट

    क्या होता हैं एंटीबॉडी टेस्ट?

    अगर कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है और वह जानना चाहता है तो उसे यह बात RT-PCR और रैपिड टेस्ट के जरिए पता चलती है।

    वहीं मरीज ने कोरोना वायरस को मात दी है या फिर उसने वैक्सीनेशन करा लिया हो, तो उसके बाद एंटीबॉडी टेस्ट किया जाता है।

    इस एंटीबॉडी टेस्ट के जरिए पता चलता है कि क्या आपके शरीर ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बना ली है और यह उससे लड़ने के लिए पर्याप्त है।

    कार्य

    कैसे काम करता है एंटीबॉडी टेस्ट?

    इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमित हुए व्यक्ति के शरीर में पांच प्रकार की एंटीबॉडी बनती है।

    इस एंटीबॉडी टेस्ट में उनमें से इम्यूनोग्लोबिन-A (IgA), इम्यूनोग्लोबिन-M (IgM) और इम्यूनोग्लोबिन-G (IgG) की पहचान की जाती है।

    श्वेत रक्त कोशिकाएं पहले बाहरी एंटीजन के आने पर IgM बनाती हैं, लेकिन बाद में IgG या IgA एंटीबॉडी बनाती है। इनमें IgG सबसे आम हैं और बैक्टीरिया या वायरस के खिलाफ बड़ी भूमिका निभाती है।

    विकास

    दो से तीन सप्ताह के बीच विकसित हो जाती है IgM और IgG एंटीबॉडी

    रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के अनुसार, SARS-CoV-2 एंटीजन के लिए IgM और IgG एंटीबॉडी आमतौर पर संक्रमण के दो से तीन सप्ताह के बीच विकसित होती है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि यह कितने समय तक खून में रहती है।

    एक पॉजिटिव एंटीबॉडी टेस्ट से पता चलता है कि व्यक्ति पहले संक्रमित हो चुका या वैक्सीन लगवा ली है।

    इसी तरह निगेटिव एंटीबॉडी टेस्ट में उसके संक्रमित नहीं होनेे या वैक्सीन नहीं लगवाने का पता लगता है।

    जानकारी

    झूठी रिपोर्ट आने का भी रहता है खतरा

    विशेषज्ञों के अनुसार एंटीबॉडी टेस्ट में शरीर में एंटीबॉडी विकसित हुए बिना भी रिपोर्ट के पॉजिटिव आने और एंटीबॉडी के होने के बाद रिपोर्ट के निगेटिव आने की संभावना रहती है। हालांकि, यह संभावना बहुत कम होती है और इसे झूठी रिपोर्ट माना जाता है।

    प्रकार

    कितने प्रकार के होते हैं एंटीबॉडी टेस्ट?

    एंटीबॉडी टेस्ट दो प्रकार के होते हैं। पहले टेस्ट में मरीज के रक्त का सैंपल जांच के लिए उसे लैब में भेजा जाता है।

    दूसरा रैपिड पॉइंट-ऑफ-केयर टेस्ट होता है। इसमें मरीज की उंगली से स्टि्रप पर रक्त का सैंपल लिया जाता है।

    यह टेस्ट घर पर भी हो सकता है, लेकिन इसकी विश्वसनियता लैब में किए जाने वो टेस्ट के तुलना में कम होती है। यही कारण है कि लैब टेस्ट को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

    सटीक

    कितने सटीक होते हैं एंटीबॉडी टेस्ट के परिणाम?

    चार देशों के 38 एंटीबॉडी टेस्ट सटीकता अध्ययनों की समीक्षा में सामने आया कि जिन टेस्ट में IgM और IgG एंटीबॉडी की तलाश की गई उनमें कम संवेदनशीलता थी।

    इसमें लक्षणों की शुरुआत के बाद से पहले सप्ताह में जांच करने पर सटीकता 30.1 प्रतिशत, दूसरे सप्ताह में 72.2 प्रतिशत और तीसरे सप्ताह में 91.4 प्रतिशत रही है।

    इससे साफ होता है कि लक्षण की शुरुआत के 15 दिन बाद टेस्ट कराने पर रिपोर्ट ज्यादा सटीक होगी।

    सवाल

    क्या पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर खुद को सुरक्षित समझा जाए?

    विशेषज्ञों के अनुसार कुछ बीमारियों में एंटीबॉडी बनने का मतलब होता है कि आप बीमारी से बच सकते हैं और भविष्य में संक्रमण से भी सुरक्षित रहेंगे। आपके शरीर ने वायरस को पहचानना सीख लिया और उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी तैयार कर ली है।

    इसी तहर कोरोना महामारी के मामले में एंटीबॉडी से आप गंभीर स्थिति में जाने से बच सकते हैं। हालांकि, इसके खिलाफ बनने वाली एंटीबॉडी के स्थायित्व को लेकर अभी भी और अध्ययन की आवश्यकता है।

    खतरा

    अमेरिका के FDA ने एंटीबॉडी टेस्ट को बताया अविश्वसनीय

    इधर, अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने एंटीबॉडी टेस्ट को अनावश्यक और अविश्वसनीय बताया है।

    उसके अनुसार इसका उपयोग यह जानने के लिए नहीं किया जाना चाहिए कि किसी को वैक्सीन से कितनी सुरक्षा मिली है। यदि टेस्ट परिणाम गलत होते हैं तो लोग वायरस को लेकर कम सावधानी का जोखिम उठा सकते हैं।

    FDA के अनुसार इस टेस्ट का उपयोग केवल लोगों के संक्रमण का पता लगाने के लिए ही किया जाना चाहिए।

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