क्या होता है विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव, जो प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ संसद में हुआ पेश?
कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने शुक्रवार को संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किया। संसद के सभी सदस्यों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए कुछ अधिकार दिए गए हैं। ऐसे में जब कोई लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य इसकी अवहेलना करता है तो यह एक अपराध है, जिसे 'विशेषाधिकार का उल्लंघन' कहा जाता है, जो संसद के कानूनों के तहत दंडनीय है। आइए इसके पीछे की पूरी प्रक्रिया और नियमों को जानते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ यह प्रस्ताव क्यों?
शुक्रवार को राज्यसभा में वेणुगोपाल ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया। वेणुगोपाल ने राज्यसभा के सभापति को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान मोदी ने अपने भाषण में उनके शीर्ष नेताओं पर सरनेम को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की है।
सदन में कौन दे सकता है प्रस्ताव?
लोकसभा या राज्यसभा का कोई भी सदस्य सदन में प्रस्ताव के रूप में उस सदस्य के खिलाफ नोटिस दे सकता है, जिसे वह विशेषाधिकार के उल्लंघन का दोषी मानता या मानती है। संसद के दोनों सदनों को अवमानना की किसी भी कार्रवाई (केवल विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं) को दंडित करने का अधिकार है, जो कानूनों के अनुसार इसके अधिकार और गरिमा के खिलाफ है। ऐसे में कोई भी सदस्य दोनों सदनों के अध्यक्ष या सभापति को प्रस्ताव सौंप सकता है।
विशेषाधिकार प्रस्ताव किन नियमों के तहत लाया जा सकता है?
विशेषाधिकार को नियंत्रित करने वाले नियमों का दोनों सदनों की नियम पुस्तिका में उल्लेख है। यह नियम स्पष्ट करते हैं कि सदन का कोई भी सदस्य अध्यक्ष या सभापति की सहमति से ऐसी घटना से संबंधित प्रश्न उठा सकता है, जिसे वह किसी सदस्य या सदन या विशेषाधिकार का उल्लंघन मानता है। ये नोटिस हाल की घटना के बारे में होना चाहिए, जिनमें सदन के हस्तक्षेप की आवश्यकता होनी चाहिए। सुबह 10 बजे से पहले यह प्रस्ताव देना होता है।
लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की क्या होती है भूमिका?
लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति संसद के दोनों सदनों में विशेषाधिकार प्रस्ताव की जांच के पहले स्तर हैं। वे या तो विशेषाधिकार प्रस्ताव पर निर्णय ले सकते हैं या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति को भी भेज सकते हैं। नियम 222 के तहत एक बार सदन के अध्यक्ष की सहमति देने के बाद इस प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है, जिसमें संबंधित सदस्य को अपने पर लगे आरोपों की सफाई देने की अनुमति दी जाती है।
क्या होती है विशेषाधिकार समिति?
लोकसभा अध्यक्ष प्रत्येक पार्टी से संसद के 15 सदस्यों वाली विशेषाधिकार समिति को नामित करता/करती है। समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट सदन में पेश की जाती है। यह रिपोर्ट सदन के पटल पर रखने से पहले बहस की अनुमति होती है, जिसके बाद एक संकल्प पारित किया जाता है। लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष भाजपा के सांसद सुनील कुमार सिंह हैं। राज्यसभा में उपसभापति विशेषाधिकार समिति का प्रमुख होता है, जिसमें 10 सदस्य होते हैं।