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    राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की रिहाई के फैसले के खिलाफ केंद्र ने दायर की पुनर्विचार याचिका
    केंद्र सरकार ने किया राजीव गांधी के दोषियों की रिहाई के फैसले का विरोध

    राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की रिहाई के फैसले के खिलाफ केंद्र ने दायर की पुनर्विचार याचिका

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 18, 2022
    10:47 am

    क्या है खबर?

    केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है।

    सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में केंद्र ने कहा कि उसे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था। दोषियों ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार को पार्टी नहीं बनाया था। उनकी इस गलती के कारण सुनवाई के दौरान भारत सरकार अपना पक्ष नहीं रख पाई।

    आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

    पृष्ठभूमि

    पिछले सप्ताह रिहा किए गए थे दोषी

    सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल रही नलिनी श्रीहरण समेत छह दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया था। जेल में अच्छे आचरण और तमिलनाडु सरकार की सिफारिश के आधार पर उन्हें रिहा किया गया था।

    इन दोषियों में नलिनी के अलावा उसका पति मुरुगन, संथन, जयकुमार, रविचंद्रन और रॉबर्ट पायस शामिल हैं।

    मई में एक अन्य दोषी एजी पेरारिवलन को भी इसी आधार पर रिहा किया गया था।

    पुनर्विचार याचिका

    सरकार ने की फैसले पर पुनर्विचार की मांग

    केंद्र ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करते हुए कहा कि भारत सरकार इस मामले में पक्ष नहीं रख पाई है। इससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। रिहा किए गए दोषियों में दो श्रीलंका के नागरिक है।

    सरकार ने कहा कि विदेशों के आतंकवादी को छूट देने का अंतरराष्ट्रीय असर होगा। इसलिए यह मामला भारत सरकार के तहत आता है और उसका पक्ष जानना जरूरी है।

    जानकारी

    सरकार ने बताया संवेदनशील मामला

    सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि यह संवेदनशील मामला है और इसमें भारत सरकार की मदद अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इससे सार्वजनिक व्यवस्था, शांति, स्थिरता और देश के आपराधिक न्याय तंत्र पर असर पड़ता है।

    प्रतिक्रिया

    कांग्रेस ने कहा- देर से जारी सरकार

    केंद्र से इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इस मामले में देर से जागी है। भाजपा सरकार जानबूझकर इस मामले में उदासीन बनी रही। जब सभी लोग बाहर आ गए हैं तो फिर कोर्ट जाने का क्या मतलब है।

    बता दें कि कांग्रेस ने भी इस दोषियों की रिहाई के फैसले की आलोचना की थी। पार्टी ने फैसले को गलत करार देते हुए अस्वीकार्य बताया था।

    जानकारी

    जेल से रिहा हो चुके हैं सभी दोषी

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही हत्याकांड के सभी दोषियों को जेल से रिहा कर दिया गया था। इन सभी दोषियों ने 30 साल से अधिक समय जेल में गुजारा है।

    पहले ही पैरोल पर बाहर चल रही नलिनी रिहाई की औपचारिकता पूरी करने के लिए वेल्लोर जेल पहुंची थी।

    इसके बाद वह केंद्रीय जेल पहुंची जहां से उसके पति मुरुगन और संथन को रिहा किया गया। ये दोनों ही श्रीलंकाई नागरिक हैं।

    फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रिहा किए दोषी?

    पिछले शुक्रवार को जारी किए गए राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल तमिलनाडु सरकार के उस फैसले को मानने के लिए बाध्य हैं, जिसमें उसने दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की थी।

    कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल मामले को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते और चूंकि उन्होंने फैसला लेने में देरी की, इसलिए वह दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी कर रहा है।

    मामला

    क्या है राजीव गांधी की हत्या का मामला?

    श्रीलंका के लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के आतंकवादियों ने 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में आत्मघाती हमला कर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी थी।

    वह यहां एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे थे। इसी दौरान लिट्टे की धनु नाम की सदस्य माला पहनाने के बहाने राजीव के पास आई और बम धमाका कर दिया। इस हमले में राजीव समेत 18 लोगों की मौत हुई थी।

    घटना के समय राजीव प्रधानमंत्री नहीं थे।

    जानकारी

    26 को सुनाई गई थी फांसी की सजा, किसी को नहीं हुई

    TADA कोर्ट ने मामले में कुल 26 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन अक्टूबर, 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने 19 दोषियों को बरी कर दिया।

    उसने तीन दोषियों (जयकुमार, रविचंद्रन और रॉबर्ट पायस) की सजा को फांसी से कम करके उम्रकैद भी कर दिया।

    बाकी चार दोषियों में से नलिनी की सजा को सोनिया गांधी के दखल पर 2000 में और पेरारिवलन, मुरुगन और संथन की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में उम्रकैद में तब्दील कर दिया।

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