राजीव गांधी हत्याकांड: धमाके से लेकर दोषियों की रिहाई तक, कब क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल रहे छह दोषियों को जेल से रिहा करने का आदेश दिया। इसी के साथ मामले के सभी सात दोषियों के जेल से रिहा होने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के ही आदेश पर सातवें दोषी एजी पेरारिवलन को मई में जेल से रिहा कर दिया गया था। आइए आपको विस्तारपूर्वक बताते हैं राजीव गांधी हत्याकांड में कब क्या हुआ।
1991 में हुई थी राजीव गांधी की हत्या
श्रीलंका के लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के आतंकवादियों ने 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में आत्मघाती हमला कर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी थी। वह यहां एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे थे। इसी दौरान लिट्टे की धनु नाम की सदस्य माला पहनाने के बहाने राजीव के पास आई और बम धमाका कर दिया। इस हमलेे में राजीव समेत 18 लोगों की मौत हुई थी। घटना के समय राजीव प्रधानमंत्री नहीं थे।
CBI और SIT ने की मामले की जांच
हत्या के अगले ही दिन केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और इसकी जांच के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के IG डीआर कार्तिकेयन के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया। SIT ने कुछ ही महीनों में हत्या की साजिश में शामिल रहे लिट्टे के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन मुख्य आरोपी शिवरासन और उसके साथियों ने गिरफ्तार होने से पहले ही साइनाइड खा लिया।
TADA कोर्ट ने 26 को सुनाई थी मौत की सजा
SIT ने मामले में 41 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इनमें से 12 आरोपियों की धमाके के समय ही मौत हो गई थी, वहीं बाकी तीन आरोपी फरार थे। बचे हुए सभी 26 आरोपियों को जनवरी, 1998 में चेन्नई की एक स्पेशल कोर्ट ने आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (TADA) के तहत मौत की सजा सुनाई। आरोपियों ने इस सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने अक्टूबर, 1998 में 19 आरोपियों को बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी थी चार दोषियों की मौत की सजा
सुप्रीम कोर्ट ने बाकी बचे हुए सात दोषियों में से चार दोषियों (एजी पेरारिवलन, नलिनी श्रीहरण, मुरुगन और संथन) की फांसी की सजा को बरकरार रखा, वहीं बाकी तीन दोषियों (जयकुमार, रविचंद्रन और रॉबर्ट पायस) की सजा को फांसी से कम करके उम्रकैद कर दिया।
1999 में चारों दोषियों ने दाखिल की दया याचिका
अक्टूबर, 1999 में मौत की सजा पाए चारों दोषियों ने तमिलनाडु के राज्यपाल के सामने दया याचिकाएं दायर कीं, लेकिन उन्होंने इन्हें खारिज कर दिया। नवंबर, 1999 में मद्रास हाई कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को रद्द करते हुए उनसे राज्य सरकार से विचार-विमर्श करके फैसला लेने को कहा। अप्रैल, 2000 में तत्कालीन DMK सरकार ने सोनिया गांधी के कहने पर नलिनी की सजा को उम्रकैद में बदलने और बाकी दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखने की सिफारिश की।
2000 में राष्ट्रपति को भेजी गईं दया याचिकाएं, 2011 में हुईं खारिज
तमिलनाडु सरकार की सिफारिश को स्वीकार करते हुए राज्यपाल ने नलिनी की सजा को कम करके उम्रकैद कर दिया, वहीं बाकी तीन दोषियों की मौत की सजा को बरकरार रखा। अप्रैल, 2000 में बाकी तीनों दोषियों, पेरारिवलन, मुरुगन और संथन, की दया याचिकाओं को राष्ट्रपति को भेज दिया गया। लंबे इंतजार के बाद अगस्त, 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। फैसला लेने में हुई यही देरी दोषियों की रिहाई का कारण बनी है।
मद्रास हाई कोर्ट ने लगाई फांसी पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने सजा को कम किया
11 साल बाद दया याचिकाओं पर फैसले का हवाला देते हुए पेरारिवलन, मुरुगन और संथन ने राष्ट्रपति के फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसने अगस्त, 2011 में उनकी फांसी पर आठ हफ्ते के लिए रोक लगा दी। मई, 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को अपने पास ट्रांसफर कर लिया और फरवरी, 2014 में दया याचिकाओं पर फैसला लेने में देरी के कारण तीनों दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।
2018 में राज्य सरकार ने की सभी दोषियों की रिहाई की सिफारिश
2014 में ही जयललिता के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार ने सभी दोषियों को रिहा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी और 2018 में उसने राज्यपाल से दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की। हालांकि राज्यपाल ने सिफारिश को मंजूरी देने की बजाय इसे जनवरी, 2021 में राष्ट्रपति के पास भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस कदम को संविधान के खिलाफ बताया और मई, 2022 में पेरारिवलन और शुक्रवार को बाकी दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी किया।
दोषियों को क्यों रिहा किया गया है?
राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल तमिलनाडु सरकार के फैसले को मानने के लिए बाध्य हैं। उसने कहा कि राज्यपाल मामले को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते और चूंकि उन्होंने फैसला लेने में देरी की, इसलिए दोषियों को रिहा किया जा रहा है। लगभग 30 साल जेल में बिताना और जेल में अच्छा आचरण दोषियों की रिहाई का प्रमुख कारण है।