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    केंद्र ने दो दिन के अंदर सु्प्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून पर रुख बदला, पुनर्विचार करेगा

    केंद्र ने दो दिन के अंदर सु्प्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून पर रुख बदला, पुनर्विचार करेगा
    लेखन मुकुल तोमर
    May 09, 2022, 05:06 pm 1 मिनट में पढ़ें
    केंद्र ने दो दिन के अंदर सु्प्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून पर रुख बदला, पुनर्विचार करेगा

    केंद्र सरकार ने मात्र दो दिन के अंदर सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून पर अपना रुख बदल लिया है। दो दिन पहले इस कानून का बचाव करते हुए इसके खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करने की मांग करने वाली सरकार ने आज नए हलफनामे में कहा कि उसने कानून के प्रावधानों पर फिर से पुनर्विचार करने का फैसला लिया है। उसने आजादी का अमृत महोत्सव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को देखते हुए ऐसा करने का फैसला लिया है।

    पिछले हलफनामे में सरकार ने क्या कहा था?

    इससे पहले शनिवार को दायर किए गए अपने पुराने हलफनामे में केंद्र सरकार ने राजद्रोह के कानून का बचाव करते हुए 1962 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया था। उसने कहा था कि राजद्रोह का कानून और ये फैसला समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और इसका दुरुपयोग कभी भी इस पर पुनर्विचार को जायज नहीं ठहरा सकता। उसने कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाने का सुझाव दिया था।

    क्या था 1962 का महत्वपूर्ण फैसला?

    1962 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124A को लेकर बड़ा फैसला दिया था। केदारनाथ सिंह पर बिहार सरकार ने राजद्रोह का मामला दर्ज किया था जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने इस पर सुनवाई की थी। बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि किसी भाषण या अभिव्यक्ति की तभी राजद्रोह माना जाएगा, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।

    पुराने फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच गठित करने पर विचार कर रही सुप्रीम कोर्ट

    ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने सुनाया था, इसलिए मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट सात सदस्यीय संवैधानिक बेंच गठित करने पर विचार कर रही है ताकि वो इस पुराने फैसले पर पुनर्विचार कर सके। मुद्दे पर कल बहस होगी।

    क्या है राजद्रोह का कानून?

    भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को राजद्रोह का कानून कहा जाता है। इसके तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के विरोध में कुछ बोलता-लिखता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों और संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है। देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने और प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मामला हो सकता है।

    बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी पर लगी थी राजद्रोह की धारा

    आजादी से पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र केसरी में 'देश का दुर्भाग्य' शीर्षक से एक लेख लिखा था। इसके लिए 1908 में उन्हें धारा 124A के तहत छह साल की सजा सुनाई गई। 1922 में अंग्रेजी सरकार ने इसी धारा के तहत महात्मा गांधी के खिलाफ केस दर्ज किया था। उन्होंने भी अंग्रेज सरकार की आलोचना वाले लेख लिखे थे। गांधी ने कहा था कि यह कानून लोगों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाया गया है।

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