
जातिगत जनगणना से जुड़े सवालों के जवाब; कब-कैसे की जाएगी, आखिरी बार कब हुई थी?
क्या है खबर?
केंद्र सरकार ने एक अहम और बड़े फैसले में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है। ये मूल जनगणना के साथ ही की जाएगी। 30 अप्रैल को हुई राजनीतिक मामलों की संसदीय समिति (CCPA) की बैठक के दौरान ये फैसला लिया गया है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जातिगत जनगणना को मुख्य जनगणना के साथ ही किया जाएगा।
आइए जातिगत जनगणना से जुड़े अहम सवालों के जवाब जानते हैं।
जनगणना
सबसे पहले जानिए क्या होती है जातिगत जनगणना
जातिगत जनगणना का सीधा से मतलब है कि जनगणना के दौरान जाति से जुड़े आंकड़े भी इकट्ठा करना। दरअसल, अभी जो जनगणना होती है, उसमें कुल जनसंख्या के साथ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के आंकड़े जुटाए जाते हैं। अब अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से जुड़े आंकड़े भी जुटाए जाएंगे।
इसका उद्देश्य अलग-अलग जाति समूहों के वितरण, उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति और दूसरी जानकारियों को जुटाना है, ताकि प्रभावकारी नीतियां बनाई जा सके।
आखिरी जनगणना
आखिरी बार कब हुई थी जातिगत जनगणना?
भारत में ब्रिटिश काल के दौरान जनगणना की शुरुआत 1872 में की गई थी। तब जातियों की गिनती भी होती थी।
ये सिलसिला साल 1931 तक चला। इस दौरान सभी जनगणनाओं में जाति के आंकड़े भी इकट्ठे किए गए।
1941 में आखिरी जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए।
आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई। इसमें केवल SC और ST समुदाय की गिनती हुई।
SC/ST
सिर्फ SC और ST की जातिगत जनगणना क्यों होती है?
दरअसल, SC और ST समुदायों के लिए उनकी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा में सीटों का आरक्षण मिलता है। अगर सही जनसंख्या ही पता नहीं होगी तो आरक्षण कैसे दिया जाएगा, इसलिए हर जनगणना में SC/ST समुदाय के आंकड़े जारी किए जाते हैं।
भारत में आखिरी जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना वायरस और दूसरी वजहों के चलते ये नहीं हो पाई।
ऐसे में SC/ST के लिए 2011 की जनगणना के आधार पर सीटें आरक्षित हैं।
आंकड़ों पर रोक
आजादी के बाद जातिगत जनगणना क्यों बंद कर दी गई थी?
आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं का मानना था कि जातिगत जनगणना करवाने से समाज में बंटवारा होगा।
तब से सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज किया।
वक्त-वक्त पर न्यायपालिका ने भी कहा कि कानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं।
मांग
दोबारा कैसे उठने लगी जातिगत जनगणना की मांग?
1980 के दशक में कई राजनीतिक पार्टियों का उदय हुआ, जिनकी राजनीति मुख्यत: जाति पर आधारित थी।
इन पार्टियों ने कथित निचली जातियों को सरकारी संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया।
1979 में सरकार ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मामले पर मंडल कमीशन का गठन किया।
2010 में फिर जातिगत जनगणना की मांग उठी। 2011 में सरकार ने सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई, लेकिन इसके आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए।
समय
कब और कैसे की जाएगी जातिगत जनगणना?
बिहार में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार इसी साल जातिगत जनगणना का काम शुरू कर सकती है। इसे पूरा होने में कम से कम एक साल लगेगा। इस हिसाब से जनगणना के आंकड़े 2026 या 2027 तक आ सकते हैं।
जनगणना के लिए सरकारी कर्मचारी घर-घर जाकर पहले घरों की गिनती और बाद में लोगों की गिनती करते हैं। 2011 की जनगणना के दौरान लोगों से 29 सवाल पूछे गए थे।