#NewsBytesExplainer: भाजपा सरकार जातिगत जनगणना करवाने से क्यों कतरा रही?
क्या है खबर?
बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े जारी हो गए हैं। विपक्ष इसी तर्ज पर पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है, ताकि पता चल सके कि किस जाति की कितनी आबादी है और उस हिसाब से राजनीति समेत अन्य क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
दूसरी ओर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार नहीं है।
आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भाजपा जातिगत जनगणना करवाने से पीछे हट रही है।
डर
क्या है भाजपा सरकार का डर?
भाजपा को डर है कि अगर उसने विपक्ष की मांग पर जातिगत जनगणना करवाई और विपक्ष ने आबादी के हिसाब से आरक्षण का मुद्दा उठा दिया तो एक बार फिर से मंडल आयोग के बाद जैसी परिस्थितियां खड़ी हो सकती हैं।
अगर ऐसा हुआ तो ये उसकी हिंदुत्व और सोशल इंजीनियरिंग, दोनों तरह की राजनीति के लिए खतरनाक साबित होगा।
भाजपा को ये भी आशंका है कि इसके कारण अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का वोटबैंक भी उससे छिटक सकता है।
वोटबैंक
भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति के लिए क्या खतरा?
भाजपा के लिए OBC बहुत अहम हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे पूर्ण बहुमत दिलाने में OBC मतदाताओं ने निर्णायक भूमिका निभाई थी और ये अब उसका मुख्य वोटबैंक बन चुका है।
2019 चुनाव में 40 प्रतिशत OBC मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था। इससे पहले 2014 चुनाव में भी भाजपा को 34 प्रतिशत OBC वोट मिले थे।
भाजपा को डर है कि जातिगत जनगणना के सहारे विपक्ष इस वोटबैंक में सेंध लगा सकता है।
चुनाव
हिंदुत्व की राजनीति पर क्या असर पड़ सकता है?
1990 के दशक से लेकर आज तक भाजपा को मंडल राजनीति से मुकाबला करने में कई साल लगे हैं और भाजपा को इस बात का आभास है कि हिंदुत्व की राजनीति की काट जाति की राजनीति से हो सकती है।
ऐसे में अगर जातिगत जनगणना और OBC को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के सहारे विपक्ष लोकसभा चुनाव से पहले बहस को जाति पर ले जाने में कामयाब रहा तो इससे OBC वोटबैंक वाली क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
सवर्ण राजनीति
OBC के मुख्य वोटबैंक होने के बावजूद क्यों जातिगत जनगणना नहीं करा रही भाजपा?
दरअसल, OBC से अलग भाजपा का एक दूसरा मुख्य वोटबैंक सवर्ण जातियों का है। ये जातियां 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के जमाने से ही उसका समर्थन करती आ रही हैं।
इसी कारण जातिगत जनगणना भाजपा के लिए दुधारी तलवार है। अगर वो OBC को खुश करने के लिए ऐसा जातिगत जनगणना कराती है तो इससे उसका सवर्ण वोटबैंक नाराज हो सकता है। दूसरी तरफ अगर वो जातिगत जनगणना नहीं कराती तो OBC उससे नाराज हो सकते हैं।
कांग्रेस
विपक्ष की क्या रणनीति?
इन्हीं कठिनाइयों के कारण कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों को लगता है कि भाजपा जातिगत जनगणना नहीं कराएगी और ऐसे में वे इस मुद्दे को उठाकर लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को OBC विरोधी साबित करना चाहती हैं।
उन्हें पता है कि अगर वो भाजपा के OBC वोटबैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहीं तो 2024 में भाजपा से टक्कर ली जा सकती है।
महिला आरक्षण विधेयक में OBC आरक्षण की उनकी मांग भी इसी रणनीति का हिस्सा है।
क्षेत्रीय पार्टियां
न्यूजबाइट्स प्लस
1990 में मंडल आयोग की सिफारिश पर नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत OBC आरक्षण ने भारतीय राजनीति को बदल कर रख दिया था।
इसके कारण बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसी पार्टियों का उदय हुआ, जिनका मुख्य वोटबैंक OBC है।
इन पार्टियों ने दशकों तक भाजपा को सत्ता से दूर रखा और अगर दोबारा चुनावी बहस जाति पर आई तो ये भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती हैं।