#NewsBytesExplainer: भाजपा पर चुनाव हेरफेर का आरोप लगाने वाले शोध पत्र से संबंधित मामला क्या है?
अशोक विश्वविद्यालय इन दिनों अपने एक शोध पत्र को लेकर विवादों में है। इस शोध पत्र में 2019 लोकसभा चुनाव में अनियमितताओं और धांधली का दावा किया गया है, जिसे लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने हैं। विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सब्यसाची दास ने 'डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' (दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र में गिरावट) शीर्षक से यह शोध पत्र लिखा है। आइए जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या है।
किस आधार पर तैयार किया गया शोध पत्र?
यह शोध पत्र सोमवार को सोशल मीडिया पर सामने आया। इसमें 2019 लोकसभा चुनाव में सामने आए कुछ अनियमित पैटर्न का विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण के जरिए ये देखा गया है कि ये अनियमितताएं चुनाव में होने वाली हेरफेर की वजह से हुईं या फिर सत्ताधारी पार्टी के प्रचार के जरिए सटीकता के साथ जीत के अंतर का अनुमान लगाने और उसे प्रभावित करने की क्षमता के कारण हुईं।
विश्लेषण में क्या पाया गया?
50 पन्नों के इस शोध पत्र में दास ने कहा कि उन्हें कई ऐसे डाटासेट और सबूत मिले, जो साबित करते हैं कि करीबी मुकाबले वाले क्षेत्रों में भाजपा की असंगत जीत चुनाव के वक्त उन राज्यों में भाजपा के शासन की वजह से हुई। शोध पत्र के अनुसार, भाजपा शासित प्रदेशों में चुनाव में बूथ स्तर पर गड़बड़ी हुई। चुनाव पर्यवेक्षकों द्वारा कमजोर निगरानी के कारण यह हेरफेर हुई और मुस्लिम मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए।
कितनी सीटों पर हुई गड़बड़ी?
दास ने अपने शोध पत्र में कहा है कि इस प्रकार के चुनावी हेरफेर के कारण भाजपा को लोकसभा चुनाव में कम से कम 11 अतिरिक्त सीटें अतिरिक्त मिलीं। उन्होंने कहा कि ये आंकड़ा बहुत अधिक नहीं है, लेकिन अगर एक भी सीट पर चुनावी हेरफेर संभव है तो इससे आशंका पैदा होती है कि सरकार कितनी भी सीटों पर ऐसा कर सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसी गड़बड़ियों के दूरगामी परिणाम चिंताजनक हो सकते हैं।
कांग्रेस ने मामले पर क्या कहा?
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शोध पत्र के निष्कर्षों को बेहद परेशान करने वाला बताते हुए ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा, 'अगर चुनाव आयोग और भारत सरकार के पास इन तर्कों का खंडन करने के लिए जवाब हैं तो उन्हें विस्तार से जवाब देना चाहिए। प्रस्तुत साक्ष्य किसी गंभीर विद्वान पर राजनीतिक हमले के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, वोटों की संख्या में विसंगति को स्पष्ट करने की जरूरत है क्योंकि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।'
भाजपा ने मामले में क्या जवाब दिया?
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस शोध पत्र की वैधता पर सवाल खड़े करते हुए एक ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा, 'नीतिगत मामलों पर भाजपा से मतभेद होना ठीक है, लेकिन यह कुछ ज्यादा ही हो गया है। कोई आधे-अधूरे शोध के नाम पर भारत की जीवंत चुनाव प्रक्रिया को कैसे बदनाम कर सकता है? कोई विश्वविद्यालय इसकी इजाजत कैसे दे सकता है? इसका जवाब देना चाहिए। यह कोई अच्छी प्रतिक्रिया नहीं है।'
अशोक विश्वविद्यालय ने मामले पर क्या कहा?
अशोक विश्वविद्यालय ने मामले पर ट्वीट किया है। उसने कहा कि व्यक्तिगत क्षमता में किसी भी शिक्षक की सोशल मीडिया गतिविधि विश्वविद्यालय के विचार नहीं दर्शाती है। विश्वविद्यालय ने कहा कि वो ऐसे शोध को महत्व देती है, जिसकी समीक्षा हो चुकी हो और जो किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हो चुका हो। उसने कहा कि उनकी जानकारी में विवादित शोध पत्र की समीक्षा अभी पूरी नहीं हुई है और ये किसी अकादमिक पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है।