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अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले को सेनाध्यक्ष नरवणे ने बताया ऐतिहासिक कदम

अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले को सेनाध्यक्ष नरवणे ने बताया ऐतिहासिक कदम

Jan 15, 2020
01:19 pm

क्या है खबर?

भारत के सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकंद नरवणे ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को खत्म करने को एक ऐतिहासिक कदम बताया है। बुधवार को सेना दिवस के मौके पर दिल्ली छावनी में हुए कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के खत्म होने से मुख्यधारा के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण में मदद मिलेगी। ये पहली बार है जब सेनाध्यक्ष बनने के बाद जनरल नरवणे ने अनुच्छेद 370 को लेकर कोई बयान दिया है।

बयान

सेनाध्यक्ष नरवणे ने और क्या-क्या कहा?

दिल्ली छावनी में सेना दिवस की परेड में शामिल हुए सेनाध्यक्ष नरवणे ने इस दौरान ये भी कहा कि अनुच्छेद 370 के खत्म होने से हमारे पश्चिमी पड़ोसी (पाकिस्तान) के छद्म युद्ध को झटका लगा है। आतंकवाद पर बोलते हुए उन्होंने कहा, "आतंकवाद के प्रति हमारा जीरो टॉलरेंस है। जो आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उन्हें रोकने के लिए हमारे पास कई विकल्प हैं और हम उनका इस्तेमाल करने में हिचकिचाएंगे नहीं।"

पृष्ठभूमि

1 जनवरी को सेनाध्यक्ष बने थे नरवणे

बता दें कि नरवणे 1 जनवरी, 2020 को सेनाध्यक्ष बने थे। उन्होंने जनरल बिपिन रावत से ये पद संभाला था। जनरल रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बनाया गया है। नरवणे ने हाल ही में बयान देते हुए कहा था कि देश की सेना सीमा पर इसलिए खड़ी है ताकि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दर्ज न्याय, स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के सिद्धातों की रक्षा की जा सके।

अनुच्छेद 370

क्यों विवादित था अनुच्छेद 370?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा मिला हुआ था। इसके कारण भारतीय संविधान के सभी प्रावधान सीधे तौर पर जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे और राज्य में उन्हें लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा की मंजूरी की जरूरत होती थी। अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान भी था। ये एक अस्थाई प्रावधान था और ये दशकों तक एक बड़ा विवादित मुद्दा रहा है।

बड़ा फैसला

पिछले साल 5 अगस्त को हटाया गया था अनुच्छेद 370

पिछले साल 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए अनुच्छेद 370 में बदलाव करते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। इसके अलावा राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में बांटने का फैसला भी लिया गया था जो 31 अक्टूबर से प्रभावी हो गया। केंद्र सरकार के इस फैसले पर सवाल भी उठते रहे हैं क्योंकि बिना जम्मू-कश्मीर विधानसभा की मंजूरी के ये फैसला लिया गया था।

जानकारी

केंद्र सरकार ने दी राष्ट्रपति शासन लागू होने की दलील

इस सवाल पर केंद्र सरकार का कहना है कि जिस समय अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला लिया गया, उस समय जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था, इसलिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा की मंजूरी की जरूरत नहीं थी।