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    असम: नागरिकता कानून को लेकर गठबंधन सरकार में मतभेद, कई नेताओं का इस्तीफा

    असम: नागरिकता कानून को लेकर गठबंधन सरकार में मतभेद, कई नेताओं का इस्तीफा

    लेखन प्रमोद कुमार
    Dec 14, 2019
    11:16 am

    क्या है खबर?

    नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में असम में भारतीय जनता पार्टी और उसकी सहयोगी पार्टी असम गण परिषद (AGP) के कई पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है।

    इनका कहना है कि लोगों में नए कानून के खिलाफ गुस्सा है और सरकार इन भावनाओं को समझने में विफल रही है।

    बता दें कि संशोधित कानून का विधेयक लोकसभा में पेश होते ही असम में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने शुरू हो गए थे।

    कानून

    क्या है नागरिकता संशोधन कानून?

    हाल ही में संशोधित हुए नागरिकता कानून से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार का सामना कर रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को आसानी से भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ होगा।

    इन धार्मिक शरणार्थियों को छह साल भारत में रहने के बाद ही भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी।

    विपक्षी पार्टियां इस कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर देश के संविधान के खिलाफ बता रही हैं।

    इस्तीफा

    भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का इस्तीफा

    शुक्रवार को असम भाजपा के वरिष्ठ नेता और असम पेट्रोकेमिकल लिमिटेड के चेयरमैन जगदीश भुयन ने पार्टी और पद से इस्तीफा दे दिया।

    उन्होंने कहा, "जब मुझे पता लगा कि नागरिकता संशोधन कानून असम के लोगों के खिलाफ है, मैंने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया। अब मैं इस कानून के विरोध में होने वाले प्रदर्शनों में हिस्सा लूंगा।"

    इससे एक दिन पहले मशहूर अभिनेता जतिन बोरा और भाजपा के रवि शर्मा ने इस्तीफा देकर प्रदर्शनों में भाग लिया था।

    इस्तीफा

    पूर्व विधानसभा स्पीकर का भी इस्तीफा

    असम स्टेट फिल्म फाइनेंस एंड डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने वाले जतिन बोरा ने कहा, "मैं आज जो कुछ भी हूं, असम के लोगों की वजह से हूं। मैंने लोगों के लिए पार्टी और पद से इस्तीफा देने का फैसला किया है।"

    इनके अलावा विधानसभा के पूर्व स्पीकर और भाजपा नेता पुलकेश बरुआ ने शुक्रवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। वहीं जमगुरीहाट से भाजपा विधायक पदम हजारिका ने भी इस्तीफा देने की बात कही है।

    पुनर्विचार याचिका

    विधानसभा स्पीकर बोले- कानून पर पुनर्विचार की जरूरत

    संशोधित कानून को लेकर असम विधानसभा स्पीकर हितेंद्र नाथ गोस्वामी ने सरकार से पुनर्विचार की बात कही थी।

    उन्होने कहा कि सरकार को ब्रह्मपुत्र घाटी में इस कानून को लागू करने से पहले इस पर दोबारा विचार करना चाहिए। आगे चलकर हालात खराब हो सकते हैं और असामाजिक तत्व ऐसे हालातों का गलत फायदा उठा सकते हैं।

    उन्होंने कहा कि यह कानून राज्य के समुदायों में नफरत की भावना को बढ़ाता है।

    आरोप

    भाजपा का आरोप- कांग्रेस लोगों को उकसा रही है

    असम भाजपा के नेताओं का मानना है कि उनकी पार्टी कानून के प्रति लोगों में गुस्से की भावना को समझने में असफल रही है।

    एक भाजपा नेता ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "उन इलाकों को नागरिकता कानून के तहत रखा गया है, जहां पर बड़ी तादाद में बांग्लादेशी शरणार्थी आते हैं। इसी वजह से लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।"

    हालांकि, भाजपा ने आधिकारिक तौर पर ऐसी चिंताओं से इनकार करते हुए कहा कि कांग्रेस लोगों को उकसा रही है।

    AGP

    AGP के कई पदाधिकारियों का इस्तीफा

    वहीं भाजपा की सहयोगी पार्टी AGP के भी कई पदाधिकारियों ने कानून के विरोध में इस्तीफा दिया है।

    एक पार्टी नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि उनकी पार्टी का आधार अवैध शरणार्थियों का विरोध रहा है ऐसे में उनका नागरिकता कानून के समर्थन में होने का कोई सवाल ही नहीं है।

    उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी के जिला स्तर के कई पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दिया है।

    विरोध की वजह

    असम में कानून के विरोध की वजह क्या है?

    असम में लंबे समय से अवैध घुसपैठ की समस्या रही है। यहां पर घुसपैठ को धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाता।

    असम के लोगों का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून 1985 में हुए असम समझौते को अमान्य कर देगा, जिसमें 1971 के बाद असम में आने वाले हर धर्म के विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई है।

    नए कानून के बाद असम के लोगों को भाषाई और सांस्कृतिक पहचान खोने का डर सता रहा है।

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