'बवाल' रिव्यू: इतिहास की तर्ज पर रिश्तों और जीवन की सीख दे जाती फिल्म
पिछले काफी समय से वरुण धवन और जाह्नवी कपूर की फिल्म 'बवाल' चर्चा में है। अब यह फिल्म रिलीज हो गई है। पहले यह सिनेमाघरों में आने वाली थी, लेकिन दुनियाभर के दर्शकों तक अपनी कहानी पहुंचाने के लिए फिल्म के निर्देशक नितेश तिवारी ने इसे अमेजन प्राइम वीडियो पर लाने का फैसला किया। फिल्म के निर्माता साजिद नाडियाडवाला हैं। नितेश ने अपनी पत्नी अश्विनी अय्यर तिवारी के साथ मिलकर फिल्म की कहानी लिखी है। आइए जानें कैसी है 'बवाल'।
कहानी है अज्जू भैया और उनकी भौकाली छवि की
कहानी अज्जू भैया (वरुण) की है, जिसने अपनी छवि चमकाने के लिए इतने झूठ बोले हुए हैं कि पूरे शहर में उसकी वाहवाही होती है। हीरो जैसी कद-काठी वाले इतिहास के मास्टर अज्जू भैया को अपनी शान से इतना प्यार है कि उसकी बातें लोगों पर हावी हैं। काबिल और खूबसूरत लड़की निशा (जाह्नवी) से उसकी शादी भी दिखावा मात्र है। उसके झूठ और फरेब से अगर कोई वाकिफ है तो एक वो खुद और दूसरा उसका परिवार है।
द्वितीय विश्व युद्ध से पलटती है कहानी
यह जानते हुए कि निशा को बचपन से मिर्गी की बीमारी रही है, अज्जू उससे शादी रचाता है, लेकिन जब शादी वाले दिन निशा को मिर्गी का दौरा पड़ता है तो अज्जू समाज में अपनी छवि खराब होने के डर से उससे किनारा करने लगता है। इसी बीच अज्जू की नौकरी पर तलवार लटकती है और मजबूरन उसे निशा का सहारा लेना पड़ता है। फिर कहानी कैसे द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़ती है, जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
अभिनय के विभाग में कौन रहा अव्वल?
अज्जू का दोहरा जीवन जीने का चरित्र वरुण ने सधे अंदाज में दर्शाने की कोशिश तो की, लेकिन वह इसकी गहराई में उतरने से चूक गए। कहीं-कहीं पर उनके हाव-भाव पूरी तरह से नदारद रहे, लेकिन हां, जान्हवी के साथ उनकी केमिस्ट्री कमाल की लगी। जाह्नवी अपने किरदार के हर भाव से जुड़ी हैं। फिल्म दर फिल्म उनके अभिनय में सुधार आ रहा है। वरुण के पिता बने मनोज पाहवा तो मास्टर आदमी हैं। उनकी अदाकारी का कोई तोड़ नहीं।
अलहदा लेखन और बेजोड़ निर्देशन
नितेश तिवारी ने जिस तरह से विश्व युद्ध को मन में चल रहे युद्ध से जोड़ा है और विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर एक प्रेम कहानी बुनी है, वो सचमुच काबिल-ए-तारीफ है। कहानी खूबसूरत है, जिसे बेहतरीन ढंग से परोसा गया है। यह सीधे दिल में उतर आती है। अज्जू और निशा के रिश्ते में उपजी भावनाओं, बारीकियों और कश्मकश को इतनी संजदीगी से नितेश ने दिखाया है कि ढाई घंटे की यह फिल्म भी बोझिल नहीं लगती।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म के गाने स्थिति के हिसाब से फिट बैठते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक एकदम सटीक है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दृश्यों में चार चांद लगा देता है। फिल्म के गाने सुनने के बाद गुनगुनाने का मन करता है। दूसरी तरफ सिनेमैटोग्रफी भी सराहनीय है।
कहां खा गई मात?
फिल्म अच्छी है, लेकिन कुछेक कमियां हैं, जो इसके बेहतरीन बनने में आड़े आती हैं। फिल्म में जो वॅाइस ओवर चलता है, उसे सुन यह फिल्म कम डॉक्यूमेंट्री ज्यादा लगने लगती है। फर्स्ट हॉफ में फिल्म भावनात्मक स्तर पर अगर थोड़ी ऊपर-नीचे न होती तो बात कुछ और होती, वहीं दूसरा हिस्सा खींचा हुआ लगता है। फिल्म में वरुण कहीं-कहीं बहुत खटकते हैं। वह अगर कुछ दृश्यों में अपने अंदर का गोविंदा निकाल देते तो मौज हो जाती।
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- अगर आप ऐसा सिनेमा पसंद करते हैं, जो मनाेरंजन के साथ कोई संदेश या सबक छोड़ जाए तो बेशक 'बवाल' आप ही के लिए बनी है, वहीं अगर किसी साफ-सुथरी फिल्म की तलाश है, जिसका लुत्फ आप अपने परिवार के साथ उठा सकें तो भी यह आपके लिए एक बेहतर विकल्प है। क्यों न देखें?- अगर आपको इमाेशंस या ड्रामे से लबरेज फिल्में पसंद नहीं हैं तो शायद यह आपकी कसौटी पर खरी न उतरे। न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5
फिल्म से मिलते हैं ये सबक
कई दफा हम छोटी-छोटी परेशानियों में धैर्य खो बैठते हैं। 'बवाल' जीवन में छोटी-छोटी खुशियों को खोजने और अपनाने की सीख देती है। बीता हुआ कल हमें नई सीख दे जाता है। इतिहास का मतलब ही अपनी गलतियों से सीखना है, चाहे मामला रिश्ते का हो या कुछ और, यह बात फिल्म बिना किसी भाषणबाजी के समझा जाती है। इससे सबक ये भी मिलता है कि झूठ भले ही तेजी से आगे बढ़े, लेकिन मंजिल तक सिर्फ सच जाता है।