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मिशन मजनू: देशभक्ति और प्यार का जज्बा भरपूर, लेकिन जासूसी की गंभीरता में कमजोर पड़ी फिल्म
जानें कैसी है सिद्धार्थ मल्होत्रा की 'मिशन मजनू'

मिशन मजनू: देशभक्ति और प्यार का जज्बा भरपूर, लेकिन जासूसी की गंभीरता में कमजोर पड़ी फिल्म

Jan 20, 2023
06:18 pm

क्या है खबर?

सिद्धार्थ मल्होत्रा और रश्मिका मंदाना की फिल्म 'मिशन मजनू' शुक्रवार को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। फिल्म की रिलीज डेट कई बार आगे बढ़ाई गई थी और आखिरकार फिल्म को सीधा OTT पर लाने का फैसला किया गया। यह फिल्म पाकिस्तान में भारतीय जासूसों की होशियारी की सच्ची घटनाओं पर आधारित है। नाम की ही तरह फिल्म में देशभक्ति और मोहब्बत का मिलाजुला अनुपात है। आपको बताते हैं कि कैसी है निर्देशक शांतनु बागची की 'मिशन मजनू'।

जानकारी

न्यूजबाइट्स प्लस

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में करारी हार के बाद पाकिस्तान अवैध तरीके से परमाणु बम बनाने में जुट गया था। उसके इस मिशन को वहां मौजूद भारतीय जासूसों की होशियारी और बहादुरी ने दुनिया के सामने उजागर कर दिया था।

कहानी

गद्दारी का दाग मिटाते भारतीय जासूस की कहानी

फिल्म में अमनदीप (सिद्धार्थ) पाकिस्तान में जासूस के तौर पर नियुक्त है। पिता की गद्दारी की वजह से अमन को उम्रभर ताने मिलते रहे। यह दाग मिटाने के लिए वह अपने देश के लिए कुछ भी करने को तैयार है। उसे पाकिस्तान के परमाणु फैसिलिटी के बारे में पता करने का काम सौंपा जाता है। एक तरफ वह इस खुफिया मिशन पर है, दूसरी तरफ अपनी पत्नी नसरीन और होने वाले बच्चे से बेहद प्यार करता है।

अभिनय

'शेरशाह' का अनुभव लेकर आए सिद्धार्थ, हिंदी में कमजोर दिखीं रश्मिका

सिद्धार्थ कुछ दृश्यों में शानदार तो कुछ दृश्यों में कमजोर दिखे। उनके हिस्से कुछ कॉमेडी भी है, जिनमें उनका हाथ साफ नहीं है। हालांकि, एक्शन और देशभक्ति के मामले में 'शेरशाह' का उनका अनुभव दिखता है। उनके हावभाव भले ही औसत हैं पर अपनी ऊर्जा और व्यक्तित्व से उन्होंने फिल्म को दमदार बनाया है। रश्मिका मंदाना ने दृष्टिहीन लड़की का अभिनय बेहतरीन किया है, लेकिन संवाद बोलने में वह कमजोर पड़ गईं।। हिंदी बोलने में रश्मिका सहज नहीं दिखीं।

अभिनय

कुमुद मिश्रा और शारिब हाशमी अलग चमके

सिद्धार्थ के साथ कुमुद मिश्रा और शारिब हाशमी भी मुख्य भूमिका में हैं। दोनों ही मंझे हुए कलाकार हैं। वे जब पर्दे पर आते हैं तो उन्हें और देखते रहने का मन करता है। कुमुद का किरदार एक मौलवी के रूप में जासूसी कर रहा है तो वहीं शारिब का किरदार एक ढाबे वाले के रूप में। कुमुद की संजीदगी और शारिब का अल्हड़पन फिल्म को रोचक बनाए रखता है।

स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले

मनोज मुंतशिर ने फिर छेड़ा देशभक्ति का तार

प्लॉट ठोस न होने के बावजूद स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले इसे मजबूत बनाता है। फिल्म में सस्पेंस, देशभक्ति, एक्शन और रोमांस सबकुछ है। इन सबको सही अनुपात में रखना एक चुनौती थी। फिल्म इस चुनौती को काफी हद तक पूरा करती है और रोचक बनी रहती है। फिल्म की सिनेमटोग्राफी में सादगी दिखाई देती है। मनोज मुंतशिर देशभक्ति गाने लिखने में माहिर हैं। फिल्म देशभक्ति के इमोशन में कहीं ढीली पड़ती भी है तो मनोज के लिरिक्स उसे बांध लेते हैं।

जानकारी

गानों से मिला 'मिशन' और 'मजनू' का इमोशन

फिल्म का गाना 'माटी को मां कहते हैं' देशभक्ति का जज्बा बरकरार रखता है। इसे सोनू निगम ने गाया है। वहीं फिल्म की शुरुआत जुबिन नौटियाल के लव सॉन्ग 'रब जानता' से होती है। पूरी फिल्म इन्ही दोनों इमोशन के इर्द-गिर्द है।

निर्देशन

यहां ढीले पड़े निर्देशक

फिल्म के प्लॉट में कई राजनीतिक घटनाओं का जिक्र जरूरी था, लेकिन इन्हें सहजता से शामिल करने की बजाय निर्देशक इन्हें फिट करने की मजबूरी में दिखे। न्यूकलियर प्लांट की जासूसी के हिसाब से कुछ दृश्य बिल्कुल बचकाने हैं। रोमांस, रोमांच, एक्शन सबकुछ दिखाने के फिराक में फिल्म अपनी गंभीरता खो बैठती है। एक रॉ एजेंट का आसानी से न्यूकलियर प्लांट को देख लेना और पकड़े जाने के बाद भी आराम से छूट जाने जैसी चीजें इसे बचकानी बनाती हैं।

जानकारी

दमदार, लेकिन जबरदस्ती का लगता है क्लाइमैक्स

फिल्म का क्लाइमेक्स काफी इमोशनल है जो जासूसों की शहादत को दिखाता है। हालांकि, यह एक इमोशनल एंडिंग का प्रयास भर लगता है। एक तय बिंदु के बाद लगता है फिल्म बस दर्शकों को भावुक करने के लिए बढ़ाई जा रही है।

निष्कर्ष

देखें या न देखें

क्यों देखें- देशभक्ति और जासूसी वाली फिल्में पसंद हैं तो इसे देख सकते हैं। फिल्म दो घंटे आपको बेहतरीन बांधकर रखती है। ऐसे में इसे यूं ही समय दे दिया तो भी आप पछताएंगे नहीं। क्यों न देखें- अगर स्पाई थ्रिलर फिल्म की गंभीरता को ढूंढेंगे तो यह फिल्म आपको निराश करेगी। सच्ची घटना पर आधारित होते हुए भी यह बॉलीवुड के मेलोड्रामा से भरी हुई है। न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5