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'श्रीकांत' रिव्यू: राजकुमार राव पर्दे पर चमके, निर्देशक से यहां हुई चूक
जानिए कैसी है राजकुमार राव की 'श्रीकांत'

'श्रीकांत' रिव्यू: राजकुमार राव पर्दे पर चमके, निर्देशक से यहां हुई चूक

लेखन पलक
May 10, 2024
02:16 pm

क्या है खबर?

किरदार कैसा भी हो अपने अभिनय से उसको दमदार बनाने के लिए मशहूर राजकुमार राव लौट आए हैं। इस बार एक दम नए रूप और नए अंदाज में 'श्रीकांत' के साथ। तुषार हीरानंदानी निर्देशित फिल्म की चर्चा जोरों पर थी क्योंकि सभी देखना चाहते थे कि बॉलीवुड में मची बायोपिक बनाने की होड़ में एक आम आदमी श्रीकांत बोला की कहानी सबको कितना लुभाती है। चलिए जानते हैं कि 10 मई को रिलीज हुई 'श्रीकांत' ने कैसी है।

कहानी

दृष्टिबाधित लड़के के बड़े सपनों की कहानी

'श्रीकांत' आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में रहने वाले जन्म से दृष्टिबाधित बोला (राजकुमार) की कहानी कहती है। एक ऐसा लड़का, जो आंखें ना होते हुए भी पिता की आंखों का तारा होता है। आंखों की रोशनी ना होने के बावजूद बोला के सपने बड़े थे, जिनमें से एक भारत का पहला दृष्टिबाधित राष्ट्रपति बनना था। एक छोटे से गांव के बोला को दृष्टिबाधितों के लिए बने स्कूल भेजा जाता है, जहां उसकी मुलाकात अपनी शिक्षिका देविका (ज्योतिका) से होती है।

विस्तार

कठिनाईयों का सामना कर व्यवसायी बने बोला

देविका की मदद से बोला जीवन के तौर-तरीके सीखता है और गुजरते सालों के साथ वह क्लास टॉपर बन जाता है। अहंकार उसके सिर चढ़ जाता है। इसके बाद उसके जीवन में कई कठिनाईयां आती हैं, जिनमें से एक विज्ञान पढ़ने के लिए न्यायालय जाना भी है। हालांकि, सभी मुश्किलों को पार करके वह अपने दोस्त रवि (शरद केलकर) के साथ एक व्यवसाय शुरू करता है, लेकिन.... इस लेकिन का जवाब ढूंढने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना होगा।

अभिनय

राजकुमार के अभिनय का नया शिखर

दृष्टिबाधित बोला की लड़ाई और अपने चाहने वालों की मदद से हर मुश्किल पार करके एक सफल कारोबारी बनने का सफर दिखाती 'श्रीकांत' में राजकुमार ने बेमिसाल अभिनय किया है। राजकुमार ने अपने भाव-भंगिमाओं से पर्दे पर बोला को जीवंत करने का काम किया है, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। किसी भी फ्रेम से अगर राजकुमार गायब रहते हैं तो उन्हें वापस देखने का मन होता है। ऐसे में बोला के रूप में उनका काम काबिल-ए-तारीफ है।

कलाकार

ज्योतिका सहित बाकी कलाकारों ने भी किया कमाल अभिनय

शिक्षिका बनीं ज्योतिका ने देविका के निस्वार्थ भाव को बखूबी पेश किया। उनकी सादगी उनकी सबसे बड़ी मददगार बनती है। वह पर्दे पर अपनी भूमिका के साथ न्याय करती हैं। केलकर की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। 'श्रीकांत' ने उन्हें अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का बेहतरीन मौका दिया, जिसमें उन्होंने कमाल का काम किया। बोला की प्रेमिका स्वाति के किरदार में अलाया एफ अलग से चमकीं। कम स्क्रीन टाइम के बावजूद वह अपनी छाप छोड़ने में सफल रहीं।

निर्देशन

निर्देशन में सफल रहे हीरनंदानी

हीरानंदानी ने अपने निर्देशन से सिनेमाघर की सीट पर बैठते ही दर्शकों को बाहरी दुनिया से अलग करने का काम किया है। मतलब साफ है, फिल्म को कुछ इस ढंग से निर्देशित किया गया है कि दर्शक बोला की कहानी में खो जाते हैं और उससे जुड़ने लगते हैं। निर्देशक का काम ऐसा है कि वह किसी भी भावना के साथ दर्शकों को ज्यादा देर तक नहीं रहने देते। 'श्रीकांत' आपको मुस्कुराने, रोने और सोचने पर मजबूर कर देती है।

लेखन

लेखन-संगीत पर किया जा सकता था और काम 

जगदीप सिद्धू और सुमित पुरोहित ने फिल्म का पहला भाग शानदार ढंग से लिखा है, जिसमें बोला के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाया गया है। हालांकि, उनका लेखन दूसरे भाग तक जाते-जाते सुस्त लगने लगता है। फिल्म का पूरा संगीत 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा' पर आधारित है, जो इसके साथ भावनात्मक पहलू जोड़ता है। इसके अलावा शायद ही कोई गाना होगा, जो कानों में मधुरता लाने का काम करे और दर्शकों को याद रहे।

खूबी

ये रही फिल्म की खूबियां

हीरानंदानी ने बोला का स्तुति गान नहीं किया है। फिल्म में अगर उनकी शख्सियत की काबिलियत दिखाई गई है तो साथ ही उनके अहंकार को भी दर्शाया गया है। निर्देशक ने कहीं भी प्रवचन/ज्ञान देने की कोशिश नहीं की है, लेकिन फिर भी यह दर्शकों को बहुत कुछ सिखाती है। फिल्म भारतीय शैक्षिक प्रणाली और पश्चिम के बीच अंतर को भी उजागर करती है। यह भारत में सड़क सुरक्षा की कमी और खराब बुनियादी ढांचे को भी प्रस्तुत करती है।

कमी

दूसरा भाग बांधने में रहा नाकामयाब

फिल्म पहले भाग की गति को दूसरे भाग के शुरुआती कुछ मिनटों में भी जारी रखती है। हालांकि, दूसरे भाग में इसकी कहानी खिंचने लगती है, जिससे सभी भ्रमित हो जाते हैं कि आखिर यह किस ओर जा रही है। राजकुमार, केलकर और ज्योतिका का अभिनय भी क्लाइमेक्स के करीब आते-आते फिल्म को बांधकर नहीं रख पाता। फिल्म के संगीत और लेखन को और मजबूत किया जा सकता था। अलाया के किरदार को भी और गहराई दी जा सकती थी।

निष्कर्ष

देखें या ना देखें?

क्यों देखें?- 'श्रीकांत' आपको आपकी जिंदगी के किसी ना किसी मोड़ में प्रेरित करने का काम करेगी। राजकुमार के अभिनय के मुरीद हैं तो आपको सिनेमाघरों का रुख करना चाहिए। फिल्म एक बार देखी जा सकती है। क्यों ना देखें?- बायोपिक फिल्मों की दुनिया अगर आपको रास नहीं आती है तो आप इस फिल्म से दूरी बना सकते हैं। इस 2 घंटे 14 मिनट लंबी फिल्म का दूसरा भाग भी दूरी बनाने की वजह हो सकता है। न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5