भारत की इन महिला निर्देशकों ने दुनियाभर में कमाया नाम, बदल दी भारतीय सिनेमा की तस्वीर
क्या है खबर?
अब वो जमाना गया , जब हिंदी सिनेमा में महिलाओं के किरदार केंद्र में होते हुए भी सहायक होते थे। आज कई फिल्में अभिनेत्रियों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं।
न सिर्फ पर्दे पर, बल्कि पर्दे के पीछे भी भारत की कई महिला निर्देशकों ने विश्व पटल में भारत का नाम रोशन किया है।
आइए अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जानें उन भारतीय महिला निर्देशकों के बारे में, जिन्होंने नायक प्रधान हो चले भारतीय सिनेमा का चलन तोड़ा।
#1
फातमा बेगम
शुरुआत फातमा बेगम से, जो भारत की पहली महिला निर्देशक थीं। उन्होंने उस दौर में निर्देशन की कमान संभाली, जब महिलाओं को लेकर तमाम रूढ़िवादी विचार थे।
उस दौर में महिलाएं कैमरे का सामना करने से कतराती थीं, लेकिन फातमा ने सबकी सोच को दरकिनार करते हुए कइयों को अपने इशारों पर नचाया ।
साल 1926 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'बुलबुले परिस्तान' निर्देशित की। इसी के साथ उनकी सोच और हिम्मत ने भारतीय सिनेमा का रुख बदलकर रख दिया।
#2
शोभना समर्थ
फातमा के बाद बॉलीवुड महिला निर्देशकों में अभिनेत्री शोभना समर्थ का नाम सामने आया, जिन्होंने अपनी बेटी नूतन और तनुजा को इंडस्ट्री में लॉन्च किया।
सई परांजपे को उन चुनिंदा फिल्म निर्देशकों में गिना जाता है, जिन्होंने आर्ट सिनेमा की गरिमा को बनाए रखा, वहीं अरुणा राजे ने अपने निर्देशन और संपादन से इंडस्ट्री में एक अलग आयाम स्थापित किया।
उनके बाद बॉलीवुड में तमाम वो महिला निर्देशक आईं, जिन्होंने अपने काम से लोगों की बोलती बंद कर दी।
#3 और #4
मीरा नायर और दीपा मेहता
मीरा नायर की 'सलाम बॉम्बे' ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म की श्रेणी में नामांकित हुई थी और कान्स फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म ने पुरस्कार जीता था। यही नहीं, उनकी फिल्म 'मॉनसून वेडिंग' गोल्डन ग्लोब में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा के लिए नामांकित हुई थी।
उधर दीपा मेहता की फिल्म 'वॉटर' को ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म की श्रेणी में नामांकन मिला था। उनकी फिल्म 'फायर और अर्थ' ने भी विश्व स्तर के फिल्मोत्सवों में खूब चर्चा जगाई थी।
#5 और #6
जोया अख्तर और रीमा काग्ती
जोया अख्तर और रीमा काग्ती की जोड़ी ने कई बार धमाल मचाया है। उनकी जोड़ी बॉलीवुड में हिट है। वे साथ में न सिर्फ निर्देशन करती हैं, बल्कि कहानियां लिखती भी हैं।
'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' से लेकर 'सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव' तक, दोनों की फिल्में अक्सर चर्चा का विषय बनती हैं।
जोया-रीमा की फिल्म 'गली बॉय' ने तो ऑस्कर तक में एंट्री पाई थी, वहं उनकी हालिया रिलीज 'सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव' को टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में स्टैंडिंग ओवेशन मिला था।
बोलबाला
पिछले साल इन महिला निर्देशकों ने बढ़ाया भारत का मान
बीते साल पायल कपाड़िया, किरण राव, संध्या सूरी, आरती कदव सरीखी महिला निर्देशकों ने साबित कर दिया कि महिलाओं को रचनात्मक बागडोर दी जाएगी तो भारतीय सिनेमा का विश्व स्तर पर प्रतिनिधित्व बढ़ेगा।
पायल की 'ऑल वी इमेजिन एज लाइट', संध्या की फिल्म 'संतोष' और किरण की 'लापता लेडीज' ने दुनियाभर में धूम मचाई।
उधर आरती कदव की फिल्म 'कार्गो' 25 फिल्म महोत्सवों में दिखाई गई थी। उनकी पिछली फिल्म 'मिसेज' का प्रीमियर इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ मेलबर्न में हुआ।