#NewsBytesExplainer: बॉलीवुड की पहली महिला निर्देशक फातमा बेगम से मिलिए, जिन्होंने बदली भारतीय सिनेमा की तस्वीर
हाल-फिलहाल में निर्देशक सोनल जोशी ने शिल्पा शेट्टी को लेकर फिल्म 'सुखी' का निर्देशन किया था। आने वाले दिनों में जहां मेघना गुलजार 'सैम बहादुर' लेकर आ रही हैं, वहीं जोया अख्तर 'द आर्चीज'। उधर किरण राव फिल्म 'लापता लेडीज' पेश करने वाली हैं। हम महिला निर्देशकों का जिक्र इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज हम आपको बॉलीवुड की पहली महिला निर्देशक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा की दिशा और दशा दोनों बदलकर रख दी।
बदलते समय में बॉलीवुड में भी आया बदलाव
अब वो दिन गए, जब बॉलीवुड में महिलाओं के किरदार अबला, मजबूर मां, सीधी सादी पत्नी और अपनी हद में रहने वाली एक बेटी तक सीमित थे। बदलते वक्त के साथ बॉलीवुड भी बदला है और अब इंडस्ट्री में महिलाएं, पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। चाहे फिल्म अपने कंधो पर ढोने की बात हो, बिना बॉडी डबल किए खतरनाक स्टंट करने की बात हो फिर निर्माता-निर्देशक के तौर पर जिम्मेदारी उठाने की।
रुढ़िवादी धारणाओं को तोड़ निर्देशक बनीं फातमा
बॉलीवुड की पहली महिला निर्देशक फातमा बेगम थीं, जिन्होंने उस दौर में निर्देशन की कमान संभाली, जब महिलाओं को लेकर तमाम रूढ़िवादी विचार थे। उस दौर में महिलाएं कैमरे का सामना करने से कतराती थीं, लेकिन फातमा ने सबकी सोच को दरकिनार करते हुए कइयों को अपने इशारों पर नचाया । 1926 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'बुलबुले परिस्तान' का निर्देशन किया और इसी के साथ उनकी सोच और हिम्मत ने भारतीय सिनेमा का रुख बदलकर रख दिया।
कराया VFX तकनीक से रूबरू
खास बात यह है कि उनकी पहली फिल्म का बजट उस समय के हिसाब से काफी बड़ा था। वो भी तब, जब एक मामूली सी फिल्म बनाने में निर्माताओं-निर्देशकों के पसीने छूट जाते थे। इसके अलावा उसमें कई तकनीकों का भी इस्तेमाल किया गया था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फातमा ने अपनी फिल्म के VFX भी खुद ही तैयार किए थे। कहा जाता है कि भारतीय फिल्मों में VFX का इस्तेमाल पहली बार फातमा ने ही किया था।
पहली ही फिल्म से छा गईं फातमा
फातमा न सिर्फ एक उम्दा निर्देशक, बल्कि एक बेहतरीन अभिनेत्री और स्क्रीनराइटर भी रहीं। 1892 में एक मुस्लिम परिवार में जन्मीं फातमा ने थिएटर और उर्दू की पढ़ाई की और 1922 में साइलेंट फिल्म 'वीर अभिमन्यु' से उन्होंने अभिनय जगत का रुख किया। उस दौर में महिलाओं के अभिनय करने पर बड़ी पाबंदी थी। लिहाजा ज्यादातर फिल्मों में हीरो ही महिलाओं के कपड़े पहनते थे, लेकिन फातमा ने इस परंपरा को तोड़ा और पहली ही फिल्म से स्टार बन गईं।
महिलाओं के लिए अभिनय जगत में दरवाजे खोलने के बाद बनीं निर्देशक
फातमा एक अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थीं, लेकिन वह सिर्फ हीरोइन बनकर ही नहीं रहना चाहती थीं और सिनेमा में कुछ हटकर करना चाहती थीं। कुछ ऐसा, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाए। फातमा ने हीरोइन बनकर अन्य महिलाओं के लिए अभिनय की दुनिया के दरवाजे खोल दिए थे। फिर उनकी नजर निर्देशन पर थी। दरअसल, जिस समय फातमा ने फिल्मों में कदम रखा, उस समय भारतीय सिनेमा में एक भी महिला निर्देशक नहीं थी।
अपना प्रोडक्शन हाउस भी खोला
फातमा ने अपने प्रोडक्शन हाउस 'फातमा फिल्म्स' की भी शुरुआत की, जिसके बैनर तने बनने वाली फिल्मों की वह न सिर्फ कहानी लिखती थीं, बल्कि उनका निर्माण, निर्देशन और उनमें एक्टिंग भी करती थीं। फातमा ने फिल्मों में अपनी तीनों बेटियों जुबैदा, सुल्ताना और शहजादी को लॉन्च किया। तीनों ही उस दौर की सुपरस्टार रहीं। फातमा ने आखिरी बार 1929 में फिल्म 'गॉडेस ऑफ लक' का निर्देशन किया था। 1983 में 91 की उम्र में उनका निधन हो गया था।
फातमा के बाद शोभना ने देशभर में अपनी प्रतिभा का मनवाया लोहा
फातमा के बाद बॉलीवुड महिला निर्देशकों में अभिनेत्री शोभना समर्थ का नाम सामने आया, जिन्होंने अपनी बेटी नूतन और तनुजा को इंडस्ट्री में लॉन्च किया। सई परांजपे को उन चुनिंदा फिल्म निर्देशकों में गिना जाता है, जिन्होंने आर्ट सिनेमा की गरिमा को बनाए रखा, वहीं अरुणा राजे ने अपने निर्देशन और संपादन से इंडस्ट्री में एक अलग आयाम स्थापित किया। उनके बाद बॉलीवुड में तमाम वो महिला निर्देशक आईं, जिन्होंने अपने काम से लोगों की बोलती बंद कर दी।
इन महिला निर्देशकों का भी रहा वर्चस्व
जोया की 2019 में आई फिल्म 'गली बॉय' ने ऑस्कर तक में एंट्री पाई। उनके बाद मेघना से लेकर दीपा मेहता, कल्पना लाजमी, अपर्णा सेन, पूजा भट्ट और फराह खान जैसी कई महिलाओं ने अपने नाम बॉलीवुड की महिला निर्देशक के तौर पर दर्ज कराए।