#NewsBytesExplainer: मंदी की चपेट में न्यूजीलैंड; ये क्या होती है, कैसे चलता है मंदी का पता?
न्यूजीलैंड में आर्थिक मंदी का दौर शुरू हो गया है। ताजा जारी आंकड़ों के मुताबिक, न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई है। न्यूजीलैंड के वित्त मंत्री ग्रांट रॉबर्टसन ने भी कहा है कि देश मंदी की चपेट में आ गया है। बता दें कि न्यूजीलैंड में 4 महीने के बाद आम चुनाव होने हैं। उससे पहले मंदी की खबर चिंतित करने वाली है। आज समझते हैं मंदी क्या होती है और कैसे इसका पता चलता है।
क्या होती है मंदी?
आसान भाषा में समझें तो लंबे समय तक जब देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी और सुस्त पड़ जाती है, तो उस स्थिति को आर्थिक मंदी कहा जाता है। यानी किसी देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार अगर बढ़ने की बजाय घटने लगे और ऐसा लंबे समय तक होता रहे तो इसे आर्थिक मंदी माना जाता है। मंदी की अवधि छोटी या बड़ी रह सकती है, लेकिन अक्सर इसका प्रभाव दीर्घकालीन ही रहता है।
कैसे की जाती है मंदी की घोषणा?
तकनीकी तौर पर देखा जाए तो किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार 2 तिमाही तक गिरावट आती है तो इसे आधिकारिक तौर पर मंदी माना जाता है। न्यूजीलैंड की GDP में दिसंबर, 2022 की तिमाही में 0.7 प्रतिशत और मार्च, 2023 में खत्म हुई तिमाही में 0.1 प्रतिशत की गिरावट हुई थी। इस आधार पर देखा जाए तो न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है।
क्या मंदी को मापने के और पैमाने भी हैं?
GDP की रफ्तार के अलावा भी कई और संकेतक होते हैं, जिनसे मंदी का पता लगाया जाता है। इनमें उत्पादन, खुदरा बिक्री, आय और रोजगार जैसे दूसरे तत्व भी शामिल हैं। अगर इन संकेतकों में गिरावट आती है, तो इसका असर सीधा-सीधा GDP पर पड़ता है, जो अंतत: मंदी के होने या न होने की ओर इशारा करता है। इन आंकड़ों के आधार पर तिमाही रिपोर्ट आने से पहले ही मंदी का अंदाजा लगाया जा सकता है।
क्यों आती है मंदी?
मंदी आने के कई कारण होते हैं और हर बार अलग-अलग कारणों से मंदी आ सकती है। इनमें महंगाई, मुद्रा का अवमूल्यन, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, राजकोषीय घाटे में वृद्धि जैसे कारण शामिल हैं। कई बार मंदी वित्तीय बाजार की समस्याओं से भी आ जाती है जैसा कि साल 2008 में हुआ था। इसके अलावा तात्कालिक कारणों जैसे कोरोनावायरस की वजह से लगे लॉकडाउन भी मंदी का कारण बन जाते हैं।
मंदी और स्टैगफ्लेशन में अंतर
मंदी के साथ ही अर्थव्यवस्था के संदर्भ में स्टैगफ्लेशन शब्द का भी खूब इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों शब्दों में बारीक सा अंतर होता है। स्टैगफ्लेशन वो स्थिति होती है, जब अर्थव्यवस्था स्थिर हो जाती है। यानी अर्थव्यवस्था न घटती है न बढ़ती है। ऐसी स्थिति में वृद्धि न सकारात्मक और न नकारात्मक होकर शून्य पर आ जाती है। इसके उलट मंदी में अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की जाती है।
भारत में कब-कब आई मंदी?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 1958, 1966, 1973 और 1980 में मंदी का सामना किया है। 1957-58 में GDP की रफ्तार नकारात्मक 1.2 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई थी। 1966 में भयंकर सूखे की वजह से देश में मंदी आई थी। 1973 में तेल संकट की वजह से देश को मंदी का सामना करना पड़ा था। 1980 में ईरानी क्रांति की वजह से कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से भारत में मंदी आई थी।