1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को पतन से बचाने वाली मनमोहन सिंह की टीम में कौन-कौन था?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश में व्यापक आर्थिक सुधारों के लिए याद किया जाएगा। 1991 में जब वे वित्त मंत्री बने, तब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कुछ हफ्तों के आयात के लिए ही पर्याप्त था। तब आर्थिक संकट के दौरान मनमोहन ने उदारीकरण और निजीकरण जैसी कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोला। इस पूरे काम में अर्थशास्त्रियों और सलाहकारों की एक कुशल टीम मनमोहन के साथ थी। आइए इस टीम के बारे में जानते हैं।
मोंटेक सिंह अहलूवालिया
विश्व बैंक में काम करने के बाद मोंटेक सिंह अहलूवालिया 1979 में भारत लौटे थे। 1990-91 में वे वाणिज्य सचिव, 1991-93 में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव और 1993-98 में वित्त मंत्रालय के वित्त सचिव रहे। 2004 से 2014 तक जब मनमोहन प्रधानमंत्री थे, तब अहलूवालिया को योजना आयोग का उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। 2011 में भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अहलूवालिया को पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
एसपी शुक्ला
1991 में मनमोहन के वित्त मंत्री बनने के वक्त एसपी शुक्ला वित्त सचिव थे। वाणिज्य सचिव के रूप में शुक्ला ने टैरिफ और व्यापार ढांचे पर सामान्य समझौते के तहत भारत की वार्ता की देखरेख की थी। शुक्ला ने मुख्य आर्थिक सलाहकार दीपक नैयर के साथ मिलकर कुछ व्यापार सुधारों पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, इसके बाद जुलाई 1991 में एसपी शुक्ला की जगह केपी गीताकृष्णन को वित्त सचिव बनाया गया।
केपी गीताकृष्णन
शुक्ला के बाद जुलाई 1991 में केपी गीताकृष्णन को वित्त सचिव बनाया गया। इससे पहले वे राजस्व सचिव थे। वित्त सचिव के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने राजस्व संग्रह बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की शर्तों को पूरा करने के लिए रचनात्मक कदम उठाए थे। इन्हें 'गीताकृष्णन प्रभाव' के रूप में जाना जाता है। 1993 में वित्त सचिव पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे IMF के कार्यकारी निदेशक बने।
दीपक नैयर
दीपक नैयर 3 सरकारों के कार्यकाल में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे हैं। उन्होंने वीपी सिंह, चंद्रशेखर और नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार में ये पद संभाला है। राव की सरकार के समय वित्त मंत्रालय बड़ी उठापटक में लगा हुआ था, क्योंकि सरकार पर डिफॉल्ट होने का खतर मंडरा रहा था। उस समय नैयर ही IMF और विश्व बैंक के साथ सरकार की ओर से बातचीत की अगुवाई कर रहे थे।
एस वेंकटरमणन
एस वेंकटरमणन 1990 से 1992 तक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर थे। बतौर RBI गवर्नर उन्होंने RBI अधिनियम में संशोधन का समर्थन किया, जिससे केंद्रीय बैंक को 30 दिनों से अधिक की अवधि के लिए और केंद्रीय बैंकों के अलावा अन्य एजेंसियों से भी उधार लेने की अनुमति मिली। उन्होंने सोने को गिरवी रख कई अंतरराष्ट्रीय बैंकों से करीब 3,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। उनके कार्यकाल में ही रुपये के अवमूल्यन सहित आर्थिक उदारीकरण कार्यक्रम की शुरुआत हुई।