श्रीलंका सरकार और अडाणी समूह के बीच करोड़ों का ऊर्जा समझौता रद्द होने की खबरें
क्या है खबर?
अडाणी समूह और श्रीलंका के बीच हुए पवन ऊर्जा समझौते के लेकर अलग-अलग खबरें सामने आ रही हैं।
पहले एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि गौतम अडाणी पर अमेरिका में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद श्रीलंका ने इस समझौते को रद्द कर दिया है।
वहीं, अब अडाणी समूह ने बयान जारी कर इन रिपोर्टों को भ्रामक बताया है। समूह ने कहा कि वो श्रीलंका में निवेश के लिए प्रतिबद्ध है।
समझौता रद्द
रिपोर्ट में किया गया था समझौता रद्द करने का दावा
AFP ने सूत्रों के हवाले से कहा था कि श्रीलंका सरकार ने इस समझौते को रद्द कर दिया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार ने बिजली खरीदने से मना किया है, लेकिन परियोजना बंद नहीं की गई है। परियोजना की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की गई है। बता दें कि श्रीलंका में कई कार्यकर्ताओं ने इस समझौते का विरोध किया था।
राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने सत्ता में आने से पहले परियोजना का विरोध किया था।
बयान
अडाणी समूह ने क्या कहा?
अडाणी समूह ने एक बयान में कहा, "मन्नार और पूनरी में अडाणी समूह की 484 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना को रद्द करने की खबरें झूठी और भ्रामक हैं। हम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि बिजली खरीद समझौते को रद्द नहीं किया गया है। मई 2024 में स्वीकृत टैरिफ का पुनर्मूल्यांकन करने का 2 जनवरी को श्रीलंकाई मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया निर्णय एक सामान्य समीक्षा प्रक्रिया का हिस्सा है।"
समझौता
क्या है समझौता?
फरवरी 2023 में अडाणी ग्रीन एनर्जी को श्रीलंका के उत्तरी प्रांत में स्थित मन्नार और पूनरी में 484 मेगावाट पवन ऊर्जा प्लांट को विकसित करने के लिए करीब 3,800 करोड़ रुपये का निवेश करने की मंजूरी मिली थी।
समझौते के अनुसार, श्रीलंका सरकार यहां से करीब 7.12 रुपये प्रति किलोवाट के हिसाब से बिजली खरीदेगी। ये समझौता 20 सालों के लिए था और तत्कालीन राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यकाल में हुआ था।
विवाद
विवादों में है समझौता
ये समझौता शुरू से ही विवादों में है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश की ही कई छोटी कंपनियां अडाणी की तुलना में दो-तिहाई कीमत पर बिजली बेच रही हैं।
इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों और मूल्य में पारदर्शिता को लेकर श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर हुई है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस परियोजना को रद्द करने का वादा किया था।