#NewsBytesExplainer: कनाडा में भारतीयों समेत 70,000 छात्रों पर क्यों मंडराया निर्वासन का खतरा?
कनाडा में भारतीयों समेत करीब 70,000 छात्रों पर निर्वासन का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में प्रवासन नीति में बदलाव का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री ट्रूडो ने कहा कि सरकार कम वेतन वाले अस्थायी विदेशी कर्मचारियों की संख्या कम करने जा रही है। इसके बाद कनाडा के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है।
सरकार ने क्या कदम उठाया?
नई नीति के अनुसार, कनाडा में कम वेतन वाले अस्थायी विदेशी कर्मचारियों की संख्या को कम किया जाना है। अब कम वेतन वाले क्षेत्र में कंपनियां अपने कुल कर्मचारियों में से केवल 10 प्रतिशत विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रख सकती है। पहले ये सीमा 20 प्रतिशत थी। हालांकि कृषि, खाद्य और मछली प्रसंस्करण जैसे खाद्य सुरक्षा क्षेत्र और स्वास्थ्य सेवाओं में ये लागू नहीं होगा, क्योंकि इन क्षेत्रों में कर्मचारियों की कमी है।
विदेशी कामगारों के लिए रोजगार अवधि आधी हुई
अब कनाडा उन क्षेत्रों में विदेशी कामगारों को परमिट नहीं देगा, जहां बेरोजगारी दर 6 प्रतिशत या उससे ज्यादा है। टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि इसका असर टोरंटो, ओटावा, कैलगरी और एडमोंटन जैसे शहरों में कंपनियों पर पड़ेगा, जहां बड़ी संख्या में भारतीय कामगार काम करते हैं। इसके अलावा कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारियों को अधिकतम एक साल के लिए नौकरी पर रखा जा सकेगा। पहले ये सीमा 2 साल थी।
कनाडा ने क्यों लिया ये फैसला?
रिपोर्ट्स के अनुसार, कनाडा में तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण यह फैसला लिया गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल की जनसंख्या वृद्धि में करीब 97 प्रतिशत हिस्सा अप्रवासियों का था। कनाडा सरकार पर आरोप लगते हैं कि विदेशियों कामगारों के आने से स्थानीय लोगों को नौकरी मिलने में परेशानी आ रही है। कनाडा में अगले साल चुनाव से पहले अप्रवासियों को बढ़ती आबादी और रोजगार की कमी ट्रूडो सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
क्या होगा फैसले का असर?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार के इस फैसले से करीब 70,000 छात्रों पर निर्वासन का खतरा मंडरा रहा है। आव्रजन विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा में भारतीय कामगार मुख्य रूप से ट्रक चलाने, रेस्तरां उद्योग, कृषि और देखभाल करने वालों के रूप में काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर क्षेत्रों में प्रतिबंध का ऐलान किया गया है, ऐसे में इसका असर बड़ी संख्या में भारतीयों पर भी पड़ना तय है।
छात्रों का क्या कहना है?
कनाडा के कई शहरों में छात्र रैलियां निकाल रहे हैं। छात्रों का कहना है कि ये समस्याएं व्यापक नीति विफलताओं का परिणाम हैं, न कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आने की वजह से सामने आई हैं। एक पूर्व अंतरराष्ट्रीय छात्र महकदीप सिंह ने सिटी न्यूज टोरंटो से कहा, "मैंने कनाडा आने के लिए 6 साल जोखिम उठाया। मैंने पढ़ाई की, काम किया, टैक्स चुकाया और कॉम्प्रिहेंसिव रैंकिंग सिस्टम (CRS) अंक अर्जित किए, लेकिन सरकार ने हमारा फायदा उठाया है।"
कनाडा में कितने भारतीय कामगार हैं?
कनाडा ने कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन के दौरान अस्थायी विदेशी कामगार नीति का ऐलान किया था। 2023 में इस नीति के तहत मैक्सिको के सबसे ज्यादा 45,500 लोगों को परमिट जारी किया गया। इसके बाद भारत के 26,495, फिलीपींस के 20,635, ग्वाटेमाला के 20,000, जमैका के 11,335, ट्यूनीशिया के 3,930, फ्रांस के 3,485, चीन के 2,930 वियतनाम के 2,505 और कोरिया के 2,200 कामगारों को वर्क परमिट जारी किया गया था।
न्यूजबाइट्स प्लस
रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल भारत से करीब 2 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए कनाडा जाते हैं। इनकी फीस के तौर पर करीब 75,000 करोड़ रुपये कनाडा को मिलते हैं। कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की है। आंकड़ों के अनुसार, 2022 में कनाडा में 5.5 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 2.26 लाख छात्र अकेले भारत से थे। पढ़ाई के साथ-साथ ये छात्र पार्ट टाइम काम कर कनाडा की अर्थव्यवस्था में भी योगदान देते हैं।