#NewsBytesExplainer: मसूद पेजेश्कियान के राष्ट्रपति बनने से भारत-ईरान संबंधों पर क्या होगा असर?
ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में सुधारवादी नेता मसूद पेजेश्कियान ने जीत दर्ज की है। उन्होंने कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को हरा दिया है। चुनावों में पेजेश्कियान को 1.64 करोड़, जबकि जलीली को 1.36 करोड़ वोट मिले हैं। पेजेश्कियान को सुधारवादी नेता माना जाता है और वे पश्चिमी देशों के साथ संबंध बहाल करने की बात कह चुके हैं। आइए जानते हैं उनकी जीत से भारत-ईरान संबंधों पर क्या असर पड़ सकता है।
सबसे पहले भारत-ईरान संबंधों का इतिहास जानिए
भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं। 15 मार्च, 1950 को दोनों देशों ने एक मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए थे। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में ईरान की यात्रा की थी। उनके बाद से 6 भारतीय प्रधानमंत्री ईरान जा चुके हैं। 1956 में शाह मोहम्मद रजा पहलवी भारत आने वाले पहले ईरानी प्रधानमंत्री थे। इसके बाद से दोनों देशों के नेताओं के बीच लगातार आना-जाना लगा हुआ है।
कैसे हैं भारत-ईरान के आर्थिक संबंध?
वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत-ईरान के बीच 19 हजार करोड़ रुपये का द्विपक्षीय व्यापार हुआ, जो बीते वर्ष की तुलना में 21.76 प्रतिशत ज्यादा है। इस दौरान ईरान को भारत का निर्यात 13 हजार करोड़ रुपये ईरान से भारत का आयात 6 हजार करोड़ रुपये का रहा। बीते कुछ सालों से भारत ईरान के 5 सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है। दोनों के बीच चावल, चाय, चीनी, दवाइयां, मशीनरी, सूखे मेवे और रसायन का आयात-निर्यात होता है।
पेजेश्कियान के राष्ट्रपति बनने से क्या होगा असर?
पेजेश्कियान के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत-ईरान संबंधों के और मजबूत होने की संभावना है। पेजेश्कियान पश्चिमी देशों से संबंध बढ़ाने के पक्षधर हैं। ऐसे में वह भारत के साथ भी संबंधों को प्राथमिकता देंगे। रणनीतिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह पर दोनों देशों का ध्यान रहेगा। भारत ने इस परियोजना में भारी निवेश किया है, जो भारत को मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करेगी। भारत ने ईरान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए भी मदद की पेशकश की है।
ईरान की विदेश नीति में ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं- विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की विदेश नीति में बड़े बदलाव की ज्यादा संभावना नहीं है, चाहे सत्ता किसी के भी हाथ में हो। जानकारों का कहना है कि किसी भी महत्वपूर्ण मामले पर अंतिम फैसला सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली खमैनेई का ही रहता है। ऐसे में पेजेश्कियान के हाथ में ज्यादा कुछ नहीं है। पेजेश्कियान को खमैनेई के हाथ के नीचे ही काम करना होगा। ऐसे में बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं है।
ईरान के राजदूत बोले- विदेश नीति में बदलाव नहीं होगा
भारत के साथ रिश्तों पर भारत में ईरान के राजदूत इराज इलाही ने चुनाव परिणाम आने से पहले ही बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा, "ईरान और भारत के बीच विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होगा, चाहे सत्ता में कोई भी आए। ईरान-भारत एक प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना चाबहार बंदरगाह में शामिल हैं और उस समझौते का हमेशा सम्मान किया जाएगा। बुनियादी ढांचे का विकास हमारे दोनों देशों के बीच सहयोग के आधारों में से एक है।"
कौन हैं पजश्कियान?
29 सितंबर, 1954 को जन्में पजश्कियान पेशे से ह्रदय चिकित्सक हैं। 1997 में वे ईरान के स्वास्थ्य मंत्री चुने गए। वे 2006 से तबरीज के सांसद हैं। उनकी पहचान सबसे उदारवादी नेता के रूप में रही है और उन्हें पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी का करीबी माना जाता है। वे कई बार हिजाब और ईरान की मोरल पुलिस का विरोध कर चुके हैं। उन्होंने चुनावों में पश्चिमी देशों के साथ संबंध पुनर्स्थापित करने का वादा किया था।