बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक बहिष्कार क्यों कर रहे हैं अमेरिका समेत कई देश?
चीन की राजधानी बीजिंग अगले साल फरवरी में शीतकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन करेगी। आयोजन शुरू होने से पहले ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा समेत कई देश इन खेलों के कूटनीतिक बहिष्कार का ऐलान कर चुके हैं और इन्होंने इसके लिए कई वजहें बताई हैं। दूसरी तरफ चीन ने कहा है कि उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस सब के बीच आइये जानते हैं कि कूटनीतिक बहिष्कार का क्या मतलब है और इससे जुड़ा इतिहास क्या है।
कूटनीतिक बहिष्कार का क्या मतलब हुआ?
अमेरिका ने इसी सप्ताह ऐलान किया था कि वह बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक बहिष्कार करेगा। उसके बाद ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा ने भी ऐसे ऐलान कर दिए। इन देशों की घोषणा की मतलब हुआ है कि ये बीजिंग में आयोजित होने वाले खेलों में अपने अधिकारियों को नहीं भेजेंगे। आमतौर पर इन खेलों के महत्व को देखते हुए कई देश अपने खिलाड़ियों के साथ-साथ उच्च स्तर के अधिकारियों को भी भेजते हैं।
टोक्यो ओलंपिक में पहुंची थीं अमेरिका की प्रथम महिला
इसी साल हुए टोक्यो ओलंपिक में अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडन प्रतिनिधिमंडल के साथ पहुंची थी। वहीं 2018 में दक्षिण कोरिया में हुए शीतकालीन ओलंपिक में तत्कालीन अमेरिकी उप राष्ट्रपति माइक पेंस मौजूद रहे थे।
कूटनीतिक बहिष्कार क्यों किया जा रहा है?
अमेरिका और दूसरे देशों ने मानवाधिकारों के हनन का हवाला देकर शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का फैसला किया है। दरअसल, चीनी सरकार लंबे समय से शिनजियांग प्रांत में उईगर मुस्लिमों के खिलाफ बर्ताव को लेकर आलोचनाओं के घेरे में रहे हैं। शी जिनपिंग सरकार पर उईगर और दूसरे मुस्लिम जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ बर्बरता के आरोप लगे हैं। इसके अलावा टेनिस खिलाड़ी पेंग शुआई के गायब होने के मामले को भी इस फैसले से जोड़ा जा रहा है।
चीन बोला- कीमत चुकानी पड़ेगी
खेलों के बहिष्कार की घोषणाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने कहा कि इन देशों को 'अपने गलत कामों' की 'कीमत चुकानी पड़ेगी।' चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने ओलंपिक के मंच को राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है।
अमेरिका में इस फैसले को कैसे देखा जा रहा है?
चीन में आयोजित हो रहे खेलों के कूटनीतिक बहिष्कार का अमेरिका में मोटे तौर पर समर्थन किया जा रहा है। हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि जो बाइडन प्रशासन का यह कदम पर्याप्त नहीं है और अमेरिका को पूरी तरह इन खेलों को बहिष्कार करना चाहिए। अमेरिका के कई बड़े खिलाड़ियों ने भी चीन में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाई है। हालांकि, किसी खिलाड़ी ने खेलों का बहिष्कार नहीं किया है।
क्या इससे खेलों पर कोई असर पड़ेगा?
अमेरिका समेत कई देशों के कूटनीतिक बहिष्कार की घोषणा से शीतकालीन ओलंपिक खेलों पर असर पड़ने की संभावना नहीं है। चीन कह चुका है कि कोरोना संबंधी पाबंदियों के चलते उसकी विदेशी प्रतिनिधिमंडलों को बुलाने की कोई योजना नहीं थी। दूसरी तरफ किसी भी खिलाड़ी या स्पॉन्सर ने अभी तक अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं। अमेरिका भी कह चुका है कि वह खिलाड़ियों को खेलों में शामिल होने से नहीं रोकेगा। ऐसे में खेलों पर असर नहीं पड़ेगा।
क्या इन खेलों को पहले बहिष्कार हुआ है?
2014 में रूस के सोची में हुए शीतकालीन खेलों में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, प्रथम महिला मिशेल ओबामा और उप राष्ट्रपति जो बाइडन नहीं पहुंचे थे। इसी तरह जर्मनी और फ्रांस ने भी अपने उच्च अधिकारियों को भी आयोजन में शामिल होने के रूस नहीं भेजा था। हालांकि, यह औपचारिक कूटनीतिक बहिष्कार नहीं था, लेकिन इन कदमों को रूस के समलैंगिक अधिकारों पर पाबंदी लगाने और एडवर्ड स्नोडेन को शरण देने के खिलाफ देखा गया था।
ग्रीष्मकालीन खेलों का भी हो चुका है बहिष्कार
सबसे बड़े बहिष्कार का मामला 1980 में सामने आया था, जब अमेरिका के नेतृत्व में 60 से अधिक देशों ने मॉस्को में हुए ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था। इन्होंने 1979 में रूस द्वारा अफगानिस्तान में सेना भेजने के खिलाफ ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का ऐलान किया था। इससे अगले यानी 1984 में लॉस एंजिल्स में हुए ओलंपिक में रूस समेत एक दर्जन से अधिक देशों ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए शामिल होने से इनकार कर दिया था।
क्या बहिष्कार से फर्क पड़ता है?
अमेरिका और दूसरे देशों द्वारा मॉस्को ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का रूस पर कोई असर नहीं हुआ और उसकी सेना लगभग 1989 तक अफगानिस्तान में रही। बहिष्कार से नीतियां नहीं बदली, लेकिन जैसा 1984 में देखा गया, बदले की भावना रह गई थी। उसके बाद से एक राय यह बन रही है कि इन खेलों के पूर्ण बहिष्कार से सबसे ज्यादा नुकसान खिलाड़ियों को होता है, जब वो सालों की कड़ी मेहनत के बाद खेलों में शामिल नहीं हो पाते।
बहिष्कार के पक्ष में क्या राय है?
कुछ लोगों का कहना है कि बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बहिष्कार की बातों से दुनिया का ध्यान चीनी अत्याचारों की तरफ आकर्षित होगा और यह एक छोटी, लेकिन अहम जीत साबित होगी। साथ ही इससे खेल संस्थाओं पर भविष्य में अपने फैसलों पर विचार करने का दबाव बढ़ेगा। इनका तर्क है कि इन कदमों से चीन की तानाशाही नीतियां भले ही न बदलें, लेकिन उसे संकेत मिल रहा है कि दुनिया उसका यह रवैया स्वीकार नहीं कर रही है।
ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन ओलंपिक खेलों में क्या अंतर है?
ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन ओलंपिक में मोटे तौर पर मौसम और स्थान का फर्क होता है। ग्रीष्मकालीन ओलंपिक का आयोजन गर्मियों में होता है। वहीं शीतकालीन ओलंपिक सर्दियों में ऐसी जगहों पर आयोजित किए जाते हैं, जहां कड़ाके की ठंड और बर्फ पड़ती हो। शीतकालीन ओलंपिक का मुख्य आकर्षण आइस स्केटिंग, फिगर स्केटिंग, स्नोबोर्डिंग, आइस हॉकी और स्कीइंग जैसे खेल होते हैं। दोनों का ही आयोजन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) करती है।