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    यूरोप में अपने नोट क्यों छपवाते हैं अफ्रीका के ज्यादातर देश?
    यूरोप में अपने नोट क्यों छपवाते हैं अफ्रीका के ज्यादातर देश?

    यूरोप में अपने नोट क्यों छपवाते हैं अफ्रीका के ज्यादातर देश?

    लेखन प्रमोद कुमार
    Mar 26, 2022
    02:14 pm

    क्या है खबर?

    भारत और अमेरिका जैसे देश अपना पैसा खुद छापते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया के बहुत से देश दूसरे देशों से अपना मुद्रा छपवाते हैं?

    कुल 54 देशों वाले अफ्रीका की बात करें तो यहां के दो तिहाई से भी ज्यादा देश यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों से अपनी मुद्रा छपवाते हैं।

    अफ्रीकन सेंट्रल बैंक के प्रमुख प्रिटिंग साझेदारों में ब्रिटिश फर्म डे ला रयू, स्वीडन की क्रेन और जर्मनी की गियेसेका+डेवरियेंट का नाम शामिल है।

    जानकारी

    किन देशों में छपता है पैसा?

    DW के अनुसार, दक्षिण सूडान और तंजानिया समेत 6-7 देश जर्मनी से और इथोपिया, लिबिया और अंगोला समेत 14 देश ब्रिटेन में अपनी मुद्रा प्रिंट करवाते हैं, वहीं फ्रेंच भाषी अफ्रीकी देश इसके लिए फ्रांस के सेंट्रल बैंक और वहां की एक प्रिंटिंग कंपनी पर निर्भर हैं।

    इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है कि इसकी लागत कितनी आती होगी, लेकिन माना जा सकता है कि अफ्रीका की 40 मुद्राओं की छपाई में काफी पैसा खर्च होता होगा।

    चुनौतियां

    शिपिंग फीस भी डालती है भार

    2018 में घाना के केंद्रीय बैंक के एक अधिकारी ने बताया था कि उनके देश को मुद्रा छपवाने के लिए ब्रिटेन को बड़ी रकम देनी पड़ती है।

    इसके अलावा ये देश लाखों की संख्या में नोट ऑर्डर करते हैं। इन्हें अपने देश में लाने के लिए भी भारी शिपिंग फीस चुकानी पड़ती है।

    2016 में सत्ता परिवर्तन के बाद गांबिया ने नए नोट छपवाए थे। उसके लिए उसे 70,000 पाउंड (लगभग 70 लाख रुपये) की शिपिंग फीस चुकानी पड़ी थी।

    कारण

    इसके पीछे की वजह क्या है?

    अफ्रीकन सेंटर फॉर इकॉनोमिक रिसर्च से जुड़े ममा अमारा एकेरुके ने बताया कि जब किसी देश की मुद्रा की मांग नहीं होती और वह डॉलर या पाउंड की तरह वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल नहीं होती तो इसे देश में छापने वित्तीय रूप से महंगा पड़ता है क्योंकि इसकी लागत बहुत आती है। पैसा छापने वाली मशीनें एक साथ लाखों नोट प्रिंट करती हैं और कम जनसंख्या वाले देशों में इतना पैसा उनकी जरूरत से ज्यादा हो जाएगा।

    लागत

    लागत का सवाल सबसे बड़ा

    उन्होंने यह भी कहा कि अगर एक नोट को छापने में किसी देश को 10 यूरो की लागत आती है और अगर वही वोट कहीं आठ यूरो में छप जाए तो कौन ज्यादा पैसा लगाना चाहेगा।

    लाइबेरिया जैसे कई देश अपने यहां नोट छापने की कोशिश भी नहीं कर रहे क्योंकि यह बेहद महंगी पड़ती है और इसे चलाने के लिए विशेष तकनीकी दक्षता की जरूरत होती है।

    हालांकि, केन्या, नाइजीरिया और मोरक्को अपने नोट खुद छापते हैं।

    सवाल

    क्या विदेशों में पैसा छपवाना सुरक्षित है?

    बाहर से पैसा छपवाकर आयात करने के अपने कुछ जोखिम हैं, लेकिन कई जानकार इसे अपेक्षाकृत सुरक्षित मानते हैं।

    दूसरी तरफ डे ला रयू जैसी कंपनियां दुनियाभर के बैंकों के लिए सैकड़ों सालों से नोट छाप रही हैं। उनके पास पैसा छापने से लेकर पहुंचाने तक के लिए जरूरी सामान और दक्षताएं हैं। इसके अलावा ये कंपनियां नोटों के लिए पॉलीमर और प्लास्टिक आदि इस्तेमाल करती हैं, जिससे नोट की सुरक्षा और जीवनकाल बढ़ जाता है।

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