इंसानी ट्रायल में पहुंच चुकी हैं कोरोना वायरस की कई वैक्सीन, जानें कब तक होंगी तैयार
दुनिया पर कोरोना वायरस का कहर जारी है और इससे प्रभावित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इसकी वैक्सीन को दुनिया के फिर से पटरी पर लौटने का एकमात्र तरीका माना जा रहा है और इन पर बेहत तेजी से काम हो रहा है। दुनियाभर में इसकी लगभग 120 वैक्सीन पर काम चल रहा है जिनमें से छह इंसानी ट्रायल में पहुंच चुकी हैं और एक पहुंचने वाली है। आइए आपको इनके बारे में बताते हैं।
पहले जानिए वैक्सीन काम कैसे करती हैं?
आमतौर पर वैक्सीन के जरिये हमारे इम्युन सिस्टम में कुछ मॉलिक्यूल्स, जिन्हें वायरस का एंटीजंस भी कहा जाता है, भेजे जाते हैं। आमतौर पर ये एंटीजंस कमजोर या निष्क्रिय वायरस होता है ताकि हमें बीमार न कर सकें। इनके शरीर में दाखिल होने पर इम्युन सिस्टम इन्हें असली वायरस समझ एंटीबॉडीज बनाना शुरू कर देता है। आगे चलकर अगर हम असली वायरस से संक्रमित होते हैं तो एंटीबॉडीज वायरस को मार देती हैं और हम बीमारी से बच जाते हैं।
चीन की AD5-NCOV इंसानी ट्रायल में सबसे आगे
इंसानी ट्रायल में पहुंची सात वैक्सीन में AD5-NCOV वैक्सीन सबसे आगे है और ट्रायल के दूसरे चरण में पहुंच चुकी है। चीन की बायोटेक कंपनी कैनसाइनो बायोलॉजिक्स और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीनी सेना) मिलकर ये वैक्सीन बना रही हैं। इस वैक्सीन के ट्रायल का दूसरा चरण पूरा होने में छह महीने लग सकते हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ ये प्रभावी है या नहीं, इसका सबूत अगले साल की शुरूआत तक मिल सकता है।
अक्टूबर तक बाजार में आ सकती है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ChAdOx1 वैक्सीन
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई जा रही ChAdOx1 वैक्सीन पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। अभी ये पहले और दूसरे चरण के मिश्रित चरण में है। वैज्ञानिक इसकी सफलता को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर सितंबर तक इसकी 10 लाख डोज एडवांस में बनाने का फैसला लिया है। अगर ट्रायल फेल होते हैं तो ये डोज बर्बाद जाएंगी और अगर सफल रहते हैं तो अक्टूबर तक ये बाजार में होगी।
ट्रायल के पहले चरण में INO-4800 वैक्सीन
अमेरिका की बायोटेक कंपनी 'इनोवियो फार्मास्यूटिकल्स' भी INO-4800 नाम की वैक्सीन पर काम कर रही है और अभी ये इंसानी ट्रायल के पहले चरण में है। कंपनी के अनुसार, पहले चरण का ट्रायल 2021 के मध्य तक पूरा हो सकता है। INO-4800 को वैक्सीन रिसर्च के गठबंधन 'कॉलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेर्डनेस इनोवेशन्स' का समर्थन हासिल है जिसे भारत और नॉर्वे सरकार और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने शुरू किया था।
मात्र 10 साल पुरानी कंपनी 'मोडर्ना' भी बना रही वैक्सीन
अमेरिकी की मात्र 10 साल पुरानी बायोटेक कंपनी 'मोडर्ना' भी mRNA-1273 नाम से वैक्सीन पर काम कर रही है। इस वैक्सीन के लिए वायरस के RNA का प्रयोग किया जा रहा है और ये बेहद नई तकनीक है। नई तकनीक के कारण इस वैक्सीन पर तेजी से काम हो रहा है और ये इंसानी ट्रायल के पहले चरण में है। अगले दो महीनों में इसके दूसरे चऱण के ट्रायल में पहुंचने की उम्मीद है।
चीन में इन दो वैक्सीन पर भी हो रहा काम
चीन की बायोफार्मा कंपनी 'साइनोवैक' PiCoVacc नामक वैक्सीन पर काम कर रही है। इसमें निष्क्रिय कोरोना वायरस का प्रयोग किया गया है और इस निष्क्रिय वायरस को शरीर में दाखिल करके इम्युन सिस्टम में एंटीबॉडीज बनाने का लक्ष्य है। अभी ये पहले और दूसरे चरण के मिश्रित ट्रायल में है। चीनी सरकार की एक कंपनी भी निष्क्रिय वायरस के जरिए वैक्सीन बना रही है और अप्रैल के अंत तक इसका दूसरा चरण पूरा हो सकता है।
इस वैक्सीन का इंसानी ट्रायल होने वाला है शुरू
जर्मनी की बायोटेक कंपनी 'बायो एन टेक' और अमेरिका की बड़ी फार्मा कंपनी 'फाइजर' साथ मिलकर BT162 वैक्सीन बना रहे हैं। ये वैक्सीन चार संभावित वैक्सीन का समूह है और इनमें RNA की अलग-अलग तकनीक का प्रयोग किया गया है। जर्मनी में वैक्सीन का पहले और दूसरे चरण का मिश्रित ट्रायल शुरू होने वाला है और अमेरिका में भी जल्द ट्रायल शुरू हो सकते हैं। इसके शुरूआती ट्रायल पूरा होने में एक साल का समय लग सकता है।