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    कोरोना: 'गेम चेंजिंग' दवा खरीदने में आगे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देश, पिछड़ सकते हैं गरीब मुल्क

    कोरोना: 'गेम चेंजिंग' दवा खरीदने में आगे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देश, पिछड़ सकते हैं गरीब मुल्क
    लेखन प्रमोद कुमार
    Oct 17, 2021, 04:57 pm 1 मिनट में पढ़ें
    कोरोना: 'गेम चेंजिंग' दवा खरीदने में आगे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देश, पिछड़ सकते हैं गरीब मुल्क
    अमेरिकी कंपनी मर्क ने बनाई है कोरोना की दवा

    कोरोना वायरस वैक्सीन खरीदने में पीछे रहे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कई देश गलती सुधारते हुए नजर आ रहे हैं। इस क्षेत्र के देशों ने कोरोना की 'गेम-चेंजिंग' दवा खरीदने के लिए ऑर्डर दे दिए हैं, जबकि इस दवा को अभी इस्तेमाल की मंजूरी नहीं मिली है। दूसरी तरफ फिर से यह आशंका मजबूत होने लगी है कि वैक्सीन की तरह गरीब देश यह दवा खरीदने में भी पीछे रह जाएंगे और इसके वितरण में भारी असमानता देखने को मिलेगी।

    किस 'गेम चेजिंग' दवा को खरीदने की हो रही बात

    अमेरिकी कंपनी मर्क की 'मोलनुपिरावीर' दवा को कोरोना से मौत और अस्पताल में भर्ती होने से रोकने में 50 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। इसका मतलब ये दवा कोरोना संक्रमितों के मरने या अस्पताल में भर्ती होने की आशंका को लगभग आधा कर देती है। विशेषज्ञों ने इसे गेम-चेंजिंग दवा बताया है। कंपनी ने कहा कि अभी तक के ट्रायल और वायरस सीक्वेंसिंग में मोलनुपिरावीर को कोरोना वायरस के सभी वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी पाया गया है।

    ये देश कर चुके हैं डील

    CNN की रिपोर्ट के अनुसार, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया समेत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के आठ देश इस दवा के लिए डील कर चुके हैं या इसकी प्रक्रिया में हैं। ये वो देश हैं, जो वैक्सीन खरीदने में पीछे रह गए थे। जानकारों का कहना है कि यह दवा फायदेमंद साबित हो सकती है। हालांकि, कुछ लोगों की यह भी चिंता है कि इसे वैक्सीन की विकल्प के तौर पर पेश किया जाएगा, जो संक्रमण के खिलाफ बेहतर सुरक्षा देती है।

    क्या वैक्सीन की जगह काम आएगी यह दवा?

    इस दवा के लिए ऑर्डर देने वाले देशों में काफी देर के बाद वैक्सीनेशन अभियान ने रफ्तार पकड़ी है। अभी भी यहां करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं, जो वैक्सीन लगवाने के पात्र नहीं हैं या जिनके लिए खुराकें उपलब्ध नहीं हैं। सिडनी के स्कूल ऑफ फार्मेसी के एसोसिएट प्रोफेसर नियल व्हाइटे ने बताया कि बहुत से लोग वैक्सीनेट नहीं हो सकते। उनके लिए यह दवा समाधान के तौर पर काम करेगी और वो बीमार नहीं पड़ेंगे।

    दवा को लेकर ये चिंता जाहिर कर रहे विशेषज्ञ

    इस दवा को लेकर कई वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि इसके आने से लोग वैक्सीन को प्राथमिकता नहीं देंगे। कई रिसर्च में पता चला है कि लोग इंजेक्शन लगवाने की बजाय दवा खाना ज्यादा पसंद करते हैं। यह दवा कैप्सूल के रूप में आएगी।

    एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देश क्यों दिलचस्पी दिखा रहे?

    यह दवा खरीदने में अभी तक 10 देशों ने दिलचस्पी दिखाई है, जिसमें से आठ एशिया-प्रशांत क्षेत्र हैं। इनमें से कुछ देश वैक्सीन खरीदने में पीछे रहने जैसी गलती नहीं दोहराना चाहते। अभी तक यह जानकारी सामने नहीं आई है कि ये देश इस दवा के लिए कितना भुगतान करेंगे। हालांकि, अमेरिका ने दवा को मंजूरी मिलने पर 17 करोड़ कोर्सेस के लिए 1.2 बिलियन डॉलर देने पर सहमति जताई है। यानी उसके लिए एक कोर्स 700 डॉलर का पड़ेगा।

    गरीब देश फिर रह सकते हैं पीछे

    कोरोना वैक्सीन पाने में पिछड़ रहे गरीब देश इस दवा के मामले में भी पिछड़ सकते हैं। दवा को मंजूरी मिलने पर यह निर्धारित होगा कि संक्रमण के लक्षण वाले लोगों को इसकी खुराक दी जाएगी या टेस्ट में संक्रमण की पुष्टि होने पर खुराक देनी होगी। इसके लिए बड़े स्तर पर टेस्टिंग की जरूरत पड़ेगी और जानकारों का कहना है कि गरीब देश यहां आकर पिछड़ जाएंगे। उनके लिए तेजी से टेस्ट करना मुश्किल होगा।

    जल्द मंजूरी पाने के प्रयास में है मर्क

    इसके अलावा मर्क के पास इस दवा का पेटेंट है। इसे बनाना बेशक आसान है, लेकिन पेटेंट के कारण कंपनी ही फैसला करेगी कि किस देश में और कितने दाम पर यह दवा बेची जाएगी। मर्क ने कहा है कि वह अमेरिका में जल्द से जल्द अपनी दवा के आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी लेने की योजना बना रही है। अधिकारियों ने कहा कि उन्हें नहीं पता इसमें कितना समय लगेगा, लेकिन वो बेहद तेजी से इस पर काम करेंगे।

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