कोरोना वायरस: लॉकडाउन के बिना हांगकांग ने कैसे लगाई संक्रमण पर रोक?
अधिकतर देश इन दिनों कोरोना वायरस (COVID-19) की चुनौती का सामना कर रहे हैं। कई देशों में संक्रमण को रोकने के लिए सरकारों ने लॉकडाउन लागू किए हैं, जिससे अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। भारत भी उन देशों में है, जहां लॉकडाउन लागू है। इनके उलट हांगकांग ने बिना लॉकडाउन किए संक्रमण की गति पर भी रोक लगाई है और मामलों की संख्या पर भी काबू रखा है। आइये, जानते हैं कि हांगकांग ने ऐसा कैसे किया।
हांगकांग में अब तक केवल चार मौतें
लगभग 7.5 करोड़ की जनसंख्या वाले हांगकांग में 715 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई है, जिनमें से चार की मौत हो चुकी है। शुरुआत में यहां संक्रमण फैलने का काफी खतरा था क्योंकि यहां पहुंच रहे पर्यटक चीन होते हुए आ रहे थे।
हांगकांग ने दिया टेस्टिंग पर जोर
संक्रमण फैलने के बढ़ते खतरे को देखते हुए हांगकांग ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की बताई राह चुनी। यहां उन सब लोगों का टेस्ट किया गया, जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण देखे गए थे। जो लोग संक्रमित पाए गए उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। उनके संपर्क में आए लोगों की एक-दो दिन में पहचान कर उन्हें आइसोलेट किया गया। मार्च की शुरुआत में यहां रोजाना 1,000 से ज्यादा लोगों के टेस्ट हो रहे थे।
संक्रमण फैलने से रोकने के लिए उठाए गए ये कदम
विदेशों से संक्रमित लोग हांगकांग न आ सके, इसलिए सीमाओं पर सख्ती की गई। चीन या कोरोना वायरस से प्रभावित किसी भी देश से पहुंचने वाले व्यक्ति को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन करना शुरू किया गया। हांगकांग में मौजूद हॉलीडे कैंप्स और खाली पड़े रिहायशी इलाकों को क्वारंटाइन फैसिलिटी में बदला गया। स्कूल और दूसरे संस्थान बंद कर दिए गए और जो लोग घर से काम कर सकते थे, उन्हें घर से काम करने को कहा गया।
बिना लॉकडाउन घर में रहने लगे लोग
इंग्लैंड और यूरोपीय देशों ने भी शुरुआत में ऐसे कदम उठाए थे, लेकिन मामलों की संख्या बढ़ने के साथ ही इन देशों ने लॉकडाउन का ऐलान कर दिया ताकि कहीं भी भीड़ इकट्ठी न हो और संक्रमण न फैलें। हांगकांग ने ऐसे किसी लॉकडाउन का ऐलान नहीं किया। यहां लोगों को घरों में रहने के लिए नहीं कहा गया था, लेकिन लोगों ने अपनी आदतों में बदलाव करते हुए घर पर रहना और दूसरे ऐहतियात बरतने शुरू कर दिए।
संक्रमण से बचने के लिए लोगों ने बरते पूरे ऐहतियात
मार्च में हुए सर्वे में भाग लेने वाले 85 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो भीड़भाड़ वाली जगह पर जाने से बचते हैं। वहीं 99 प्रतिशत ने कहा कि वो मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलते थे। यानी लोग संक्रमण को लेकर सजग थे।
फरवरी से ही लगी रही संक्रमण की गति पर लगाम
वैज्ञानिकों का कहना है कि हांगकांग में वायरस की रिप्रोडक्टिव रेट फरवरी में एक रही। रिप्रोडक्टिव रेट का मतलब है कि औसतन एक संक्रमित व्यक्ति अपने संपर्क में आने वाले एक ही व्यक्ति को संक्रमित करेगा। फरवरी की शुरुआत से लेकर लगातार आठ सप्ताह तक यह रेट एक पर बनी रही। इस दौरान हांगकांग में संक्रमण रोकने के लिए उपाय लागू किए जा चुके थे, जिससे महामारी के फैलने की गति पर लगाम लग गई।
हांगकांग के प्रयासों पर क्या कहते हैं जानकार?
हांगकांग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बेंजामिन कॉवलिंग कहते हैं कि हांगकांग ने दिखा दिया कि यूरोपीय देशों और अमेरिका की तरह आर्थिक और सामाजिक नुकसान किए बिना भी किसी बीमारी को काबू में रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जन स्वास्थ्य मानदंडो का कड़ाई से पालन कर कोरोना वायरस के संक्रमण पर प्रभावी तरीके से काबू पाया जा सकता है, जबकि चीन, अमेरिका और अधिकतर यूरोपीय देश ऐसा करने में असफल रहे हैं।
स्कूल और बाकी संस्थान बंद होने से कम हुआ संक्रमण
हांगकांग में एक स्टडी यह हुई कि क्या सोशल डिस्टैंसिंग और आदतों में बदलाव होने से वायरस का असर कम हुआ है। इसके लिए कोरोना वायरस और स्वाइन फ्लू में तुलना की गई क्योंकि दोनों बीमारियां एक तरह से फैलती हैं। स्टडी में पता चला कि फरवरी में स्कूल बंद करने के बाद बीमारी का प्रसार 44 प्रतिशत कम हो गया। 2009 में स्वाइन फ्लू के दौरान भी स्कूल बंद हुए थे, लेकिन तब यह प्रतिशत 10-15 तक रहा था।
संक्रमण से बचने के लिए लोगों ने बदली आदतें- डॉक्टर वु
स्टडी करने वाली टीम में शामिल हांगकांग यूनिवर्सिटी की डॉक्टर पेंग वु ने द गार्डियन को कहा कि इस बार इंफ्लूएंजा की गतिविधियों की रफ्तार में कमी देखी गई। इसका मतलब यह है कि सोशल डिस्टैंसिंग समेत दूसरे कदम उठाने से वायरस का प्रसार कम होता है। उन्होंने कहा कि स्वाइन फ्लू और SARS जैसे वायरस का प्रकोप झेल चुके हांगकांग के लोग इस बात से वाकिफ थे कि उन्हें संक्रमण से बचने के लिए अपनी आदतें बदलनी होंगी।
हांगकांग के तरीके से कम की जा सकती हैं लॉकडाउन की बंदिशे- डॉक्टर वु
डॉक्टर वु ने कहा, "यह जरूरी नहीं है कि जो तरीका एशियाई देशों में काम करता है वह यूरोपीय देशों में काम करे, लेकिन हांगकांग का प्रयास यह दिखाता है कि हम संक्रमण को काबू में रखते हुए भी लॉकडाउन की बंदिशें कम कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि वायरस से लड़ाई में टेस्टिंग और अस्पतालों की बेहतर सुविधा, लोगों में साफ-सफाई और सोशल डिस्टैंसिंग की आदतें किसी भी देश को आगे रखती हैं।
टेस्टिंग, आईसोलेशन और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग देते हैं बेहतर नतीजे- कॉवलिंग
जब प्रोफेसर कॉवलिंग से पूछा गया कि ज्यादा टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आईसोलेशन में से सबसे बेहतर उपाय कौन सा है तो उन्होंने कहा कि इस सवाल का जवाब मुश्किल है। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि इन सबको मिला दिया जाए तो बेहतर नतीजे मिलते हैं। सोशल डिस्टैंसिंग संक्रमण की गति कम कर देती है, जिससे उसका दायरा कम हो जाता है। कम दायरे में ज्यादा टेस्ट और बेहतर तरीके से कॉन्टैक्ट ट्रेस कर सकते हैं।"