ओमिक्रॉन: अफ्रीका में वैक्सीनेशन धीमा, नए वेरिएंट के बाद फिर चर्चा में वैक्सीन वितरण में असमानता
एक तरफ अमेरिका और जर्मनी जैसे देश अपने नागरिकों को तीसरी खुराक लगा रहे हैं, वहीं अफ्रीका के लगभग एक चौथाई स्वास्थ्यकर्मी ही पूरी तरह वैक्सीनेट हो पाए हैं। दक्षिण अफ्रीका की इतनी ही आबादी को दोनों खुराकें लग पाई हैं। अब कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन ने दुनिया का ध्यान अफ्रीका की तरफ खींचा है और एक बार फिर से वैक्सीन वितरण में असमानता पर बात होने लगी है।
वैक्सीन वितरण में असमानता कैसे?
कई अमीर देशों ने वैक्सीनों को मंजूरी मिलने से पहले ही उन्हें बनाने वाली कंपनियों से करोड़ों खुराकों का सौदा कर लिया था। जब वैक्सीनों को मंजूरी मिली तो सबसे पहले उन देशों के पास खुराकें पहुंचीं। दूसरी तरफ गरीब देश ऐसे सौदे नहीं कर पाए और वैक्सीन आपूर्ति के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कुछ दूसरी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा बनाए गए कोवैक्स कार्यक्रम पर निर्भर रहे। कोवैक्स से भी उन्हें समय पर पर्याप्त खुराकें नहीं मिल पाईं।
आंकड़े क्या कहते हैं?
एक रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका महाद्वीप की कुल 11 प्रतिशत आबदी को कोरोना वायरस वैक्सीन की एक और 7.2 प्रतिशत आबादी को ही दोनों खुराकें लग पाई हैं। दूसरी तरफ यूरोप और उत्तरी अमेरिका की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी पूरी तरह वैक्सीनेट हो चुकी है। इसी तरह एशिया की बात करें तो यहां की 60 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या को पहली और करीब आधी आबादी को दोनों खुराकें लग चुकी हैं।
वैक्सीनेशन का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगे अधिकतर अफ्रीकी देश
WHO के अनुसार अफ्रीका के 54 देशों में से केवल 5-6 देश ही इस साल के अंत तक 40 फीसदी आबादी को वैक्सीनेट करने का लक्ष्य हासिल कर पाएंगे। अधिकतर देश सितंबर तक 10 फीसदी आबादी को वैक्सीनेट करने का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए थे। अफ्रीका में अभी तक लगभग 23 करोड़ खुराकें लगाई गई हैं, जबकि अमेरिका 45 करोड़ से अधिक, यूरोप 90 करोड़ से अधिक और भारत 121 करोड़ से अधिक खुराकें लगा चुका है।
क्या वैक्सीन की कमी है कारण?
अफ्रीका में कम वैक्सीन कवरेज का कारण खुराकों की कमी न होकर असमान वितरण है। WHO की तकनीकी प्रमुख मारिया वेन खेर्खोव ने हाल ही में कहा था, "हमारे पास पर्याप्त वैक्सीन हैं। अगर उनका उचित वितरण किया जाता है तो हम अधिक खतरे का सामना करने वाले और स्वास्थ्यकर्मियों को बचा सकते हैं।" WHO और संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से दुनिया का ध्यान इस असमानता की तरफ आकर्षित करते आए हैं।
संयुक्त राष्ट्र और WHO कर चुके हैं आलोचना
फरवरी में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने असमान वितरण की आलोचना करते हुए कहा था कि पूरी दुनिया तक वैक्सीन पहुंचाने की योजना बनाने की जरूरत है। इसी तरह सितंबर में WHO महानिदेशक डॉ टेड्रोस अधेनोम गैब्रेयसस ने G20 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में कहा था कि वैक्सीन वितरण में इस तरह की असमानता 'अस्वीकार्य' है। दुनियाभर में तब तक पांच अरब खुराकें लगाई थीं, जिनमें से 75 प्रतिशत केवल 10 देशों में लगाई गई थीं।
"नैतिक आक्रोश पैदा कर रहे अमीर देश"
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने अमीर देशों पर कोरोना वैक्सीन की खुराकों का भंडारण कर 'नैतिक आक्रोश' पैदा करने आरोप लगाया था। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के तौर पर ब्राउन ने G7 देशों से खुराकें अफ्रीका में भेजने की अपील की है। वैज्ञानिक कहते हैं कि जब तक पूरी दुनिया में लोगों को संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा नहीं मिलेगी, तब तक नए वेरिएंट सामने आने का खतरा बना रहेगा।