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    महात्मा गांधी पुण्यतिथि: जब दक्षिण अफ्रीका में दो बार बापू पर हुए जानलेवा हमले, जानिए कहानी

    महात्मा गांधी पुण्यतिथि: जब दक्षिण अफ्रीका में दो बार बापू पर हुए जानलेवा हमले, जानिए कहानी

    लेखन मुकुल तोमर
    Jan 30, 2020
    04:33 pm

    क्या है खबर?

    आज से ठीक 71 साल पहले 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे ने तीन गोली मारकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी।

    इस हत्या की कहानी लगभग हर भारतीय को पता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले भी कम से कम छह बार महात्मा गांधी पर जानलेवा हमले हुए थे।

    इनमें से दो हमले दक्षिण अफ्रीका में हुए थे और आज हम आपको इन्हीं दो हमलों की पूरी कहानी बताते हैं।

    पहला हमला

    डरबन में हुआ था पहला जानलेवा हमला

    महात्मा गांधी पर सबसे पहला जानलेवा हमला 1897 में दक्षिण अफ्रीका के शहर डरबन में हुआ था।

    तब तक दक्षिण अफ्रीका का गठन नहीं हुआ था और डरबन नटाल नामक प्रांत में आता था जो अंग्रेजों के अधीन था।

    नटाल की सरकार ने वहां रहने वाले भारतीय मूल के निवासियों से वोटिंग का अधिकार छीन लिया था और गांधी के नेतृत्व में उनके इस अधिकार को वापस हासिल करने की लड़ाई चल रही थी।

    विरोध

    गांधी के जबरदस्त विरोध में थे डरबन के गोरे

    संघर्ष लंबा चलने की संभावनाओं को देखते हुए गांधी अपने परिवार को लेने भारत आये और जनवरी 1897 में उन्हें वापस लेकर डरबन पहुंचे।

    वहां पहुंचने पर उन्हें गोरों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा और भारतीयों से भरे दो जहाजों- कोर्टलैंड और नादेरी, को कई दिनों तक तट पर खड़ा रखना पड़ा।

    गोरे इस बात से नाराज थे कि गांधी ने भारत जाकर नटाल की बुराई की और अब "भारतीयों की फौज" को लेकर वापस आ रहे हैं।

    हमला

    ऐसा नहीं होता तो गांधी की लिंचिंग कर देती भीड़

    सुरक्षा का आश्वासन मिलने के बाद गांधी अपने एक साथी के साथ जहाज से उतरे और भीड़ से बचते हुए बाहर निकलने लगे।

    इस दौरान दोनों ने रिक्शा लिया, लेकिन तभी एक गोरे ने उन्हें पहचान लिया। इसके बाद भीड़ ने उन्हें रिक्शे से नीचे खींच लिया और बुरी तरह से पीटा।

    भीड़ गांधी को पीट-पीट कर मार ही डालती अगर इलाके के मुख्य पुलिस अधिकारी रिचर्ड एलेक्जेंडर की पत्नी मौके पर पहुंच कर उन्हें भीड़ से नहीं बचातीं।

    दूसरा हमला

    ट्रांस्वाल में हुआ दूसरा जानलेवा हमला

    महात्मा गांधी पर दूसरा जानलेवा हमला भी दक्षिण अफ्रीका में हुआ।

    ये घटना 1908 की है। तब गांधी नटाल प्रांत से निकलकर ट्रांस्वाल प्रांत में रहने लगे थे और यहां के सबसे मुख्य शहर जोहांसबर्ग को अपना ठिकाना बना लिया था।

    ट्रांस्वाल में एशियाई लोगों के खिलाफ एक नस्लीय कानून बनाया गया था जिसके अनुसार सभी एशियाई लोगों को रजिस्ट्रेशन कराना था और इससे बने पहचान पत्र को हमेशा अपने साथ रखना था।

    नस्लीय कानून

    क्या था नस्लीय कानून में?

    इस कानून में ये अनिवार्य किया गया था कि जब भी एशियाई लोगों से ये पहचान पत्र दिखाने को कहा जाए, वो ऐसा करें और अगर उनके पास पहचान पत्र नहीं मिलता तो उन्हें सजा दी जाएगी।

    गांधी ने इसके खिलाफ सत्याग्रह आरंभ किया था और उनके नेतृत्व में भारतीयों ने रजिस्ट्रेशन कराने के बजाय जेल जाना पसंद किया।

    इस टकराव के बीच जनवरी 1908 में गांधी और ट्रांस्वाल के मंत्री जनरल जैन स्मट्स के बीच एक समझौता हुआ।

    समझौता

    समझौते में कही गई मर्जी से रजिस्ट्रेशन कराने की बात

    इस समझौते में तय हुआ था कि एशियाई (भारतीय और चीनी) लोग अपनी मर्जी से रजिस्ट्रेशन करा सकेंगे और ऐसा करना अनिवार्य नहीं होगा।

    गांधी के अनुसार, जनरल स्मट्स ने उनसे वादा किया था कि भारतीयों और चीनियों के रजिस्ट्रेशन कराने के बाद इस नस्लीय कानून को वापस ले लिया जाएगा।

    समझौते के तहत सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को जेल से रिहा करने पर भी रजामंदी बनी।

    हमला

    पठान ने लाठी से किया गांधी पर हमला

    समझौते के बाद गांधी और अन्य सत्याग्रहियों को जेल से रिहा कर दिया गया और फरवरी में रजिस्ट्रेशन की तारीख तय की गई।

    गांधी जब तय तारीख को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए निकले तो मीर आलम नामक एक पठान ने एक समूह के साथ उन पर हमला कर दिया।

    मीर की लाठी के एक ही प्रहार से गांधी लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़े। उनके साथी थंबी नायडू ने अपने छाते से हमलावरों का मुकाबला कर उनकी जान बचाई।

    जानकारी

    समझौते से नाराज था मीर आलम

    मीर आलम गांधी और जनरल स्मट्स के बीच हुए समझौते से नाराज था और उसका मानना था कि ऐसा करके गांधी ने सत्याग्रह के साथ धोखा किया है। हालांकि, बाद के सालों में उसने गांधी के नेतृत्व में काम भी किया।

    रंगभेद के शिकार

    बेहद चर्चित है गांधी को ट्रेन से फेंके जाने की कहानी

    इससे पहले जुलाई 1893 में गांधी को उनके रंग के कारण एक ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे से नीचे फेंकने की घटना भी हुई थी।

    गांधी प्रथम श्रेणी की टिकट लेकर डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे, तभी कुछ अंग्रेजों ने इसकी शिकायत ट्रेन में मौजूद अधिकारी से कर दी जिसने उन्हें काले लोगों के लिए बने डिब्बे में जाने को कहा।

    गांधी के टिकट दिखाने पर भी वो नहीं माना और पीटरमैरिट्सबर्ग स्टेशन पर उन्हें नीचे फेंक दिया।

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